सार
माझा में 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 25 में से 22 सीटें जीती मगर इस बार उसका ये गढ़ दरकता दिख रहा है। तरनतारन जिले की चार सीटों को छोड़ दें तो अमृतसर, पठानकोट और गुरदासपुर जिलों की 21 सीटों में से 5-6 सीटों पर बीजेपी कमाल कर सकती है।
अमृतसर : बसंत पंचमी गुजर चुकी है लेकिन पंजाब (Punjab) में धूप निकलने के बावजूद ठंडी हवाओं के बीच सुबह-शाम धुंध छा रही है। कुछ ऐसा ही कुहासा पंजाब की राजनीति में भी छाया है एकबारगी लगता है कि विधानसभा चुनाव (Punjab Chunav 2022) में वोटिंग से 2 हफ्ते पहले तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है, मगर इस भ्रम के पार जाकर यदि देखने की कोशिश करें तो कई चीजें एकदम साफ नजर आती हैं। मसलन पांच साल सत्ता में रही कांग्रेस (Congress) कड़े मुकाबले में फंसी है। अकाली दल अपने कैडर के बूते परफार्मेंस सुधारने की जुगत में है, वहीं BJP नए साथियों के साथ सीटें और वोट परसेंटेज बढ़ाने जा रही है। इन सबके बीच पांच साल पहले मालवा में अच्छा प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) माझा और दोआबा में एंट्री लेती दिख रही है।
माझा-दोआबा में चौकोणीय मुकाबला
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी इस बार बॉर्डर स्टेट पंजाब में सत्ता की दौड़ में शामिल हैं। अकालियों के अलग होने के बाद बीजेपी नए क्षत्रपों के साथ मुकाबला चोकौणीय बना रही है। वहीं 3-4 सीटों पर किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा इस टक्कर को पांच-कोणीय भी बनाता दिख रहा है। पंजाब की सियासत पर नजर रखने वाले राजनीतिक पंडित कहते हैं कि प्रदेश में इस तरह के वोट डिवीजन वाला चुनाव पहले कभी नहीं हुआ। शायद यही वजह है कि भले ही यूपी समेत देश के 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हों मगर चर्चा के केंद्र में पंजाब है। हालांकि इन सबके बीच भी अगर कुछ गायब हैं तो वो है पंजाब और पंजाबियों के मुद्दे।
मालवा में किसानों का असर नहीं, AAP मजबूत
नई दिल्ली-अमृतसर नेशनल हाइवे पर शंभू बॉर्डर और राजस्थान साइड से अबोहर से लुधियाना तक-सतलुज दरिया से नीचे का इलाका मालवा कहलाता है। पंजाब विधानसभा की 117 में से 69 सीटों के साथ यही एरिया 'प्रदेश की सत्ता की चाबी' है। नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद मौजूदा हालात की बात करें तो यहां आम आदमी पार्टी खुद को मजबूत करती दिख रही है। इसकी वजह है- वोटर के मन में घर कर चुकी बदलाव की इच्छा। हालांकि इसे शुरुआती रिएक्शन भी कहा जा सकता है क्योंकि पंजाब में असल मायनों में इलेक्शन अभी शुरू ही हुआ है और आने वाले दिनों में समीकरण बदल सकते हैं। दरअसल पंजाब के इस इलाके का वोटर 70 साल से बदल-बदलकर सत्तासुख भोग रहे कांग्रेस-अकाली दल की जगह तीसरे विकल्प पर जाना चाहता है और इस खांचे में AAP फिट बैठ रही है।
मालवा में कांटे की टक्कर
मालवा की 69 में से 30 सीटों पर चौकोणीय मुकाबला है जबकि 39 सीटों पर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल में टक्कर है। किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा यहां 30 सीटों पर थोड़ा-बहुत असर डाल सकता है। उसके लिए यहां फिलहाल कोई सीट जीतना दूर की कौड़ी लगता है। इस रीजन में कांग्रेस और अकालियों की लड़ाई में AAP खुद को सेफ जोन में मान रही थी मगर उसके इसी जोन में किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा सेंध लगाता दिख रहा है। इस तथ्य से AAP के रणनीतिकार भी वाकिफ हैं। मालवा खेती-किसानी वाला ग्रामीण इलाका है इसलिए यहां बीजेपी कमजोर स्थिति में नजर आती है। 2017 में अकालियों से गठजोड़ के बावजूद बीजेपी को यहां सिर्फ एक सीट अबोहर मिली थी। इस बार भी पार्टी को यहां सीटें निकालने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा।
माझा में ढह रहा कांग्रेस का गढ़, बीजेपी-अकालियों की सीटें बढ़ेंगी
माझा में 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 25 में से 22 सीटें जीती मगर इस बार उसका ये गढ़ दरकता दिख रहा है। तरनतारन जिले की चार सीटों को छोड़ दें तो अमृतसर, पठानकोट और गुरदासपुर जिलों की 21 सीटों में से 5-6 सीटों पर बीजेपी कमाल कर सकती है। पिछली बार शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) को यहां सिर्फ 2 सीटें (मजीठा व बटाला) मिली थी। इस बार यहां से पार्टी के विधायक बढ़ेंगे। बाकी पंजाब की तरह माझा के वोटर भी बदलाव की बंसी बजाते नजर आ रहे हैं और अगर आखिर तक उनका यही मूड रहा तो यहां सबसे चौंकाने वाला फैक्टर आम आदमी पार्टी साबित होगी। किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा का यहां असर नहीं है।
सिद्धू-मजीठिया आमने-सामने
माझा में अमृतसर जिले की अमृतसर ईस्ट सीट पर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) और अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया (Bikram Singh Majithia) आमने-सामने हैं।आज तक कोई चुनाव न हारने वाले इन दोनों नेताओं के बीच इस बार का चुनाव मूंछ की लड़ाई बन चुका है। इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी पूर्व आईएएस अफसर और तमिलनाडू के एसीएस डॉ. जगमोहन सिंह राजू और आम आदमी पार्टी की जीवनजोत कौर फिलहाल मुकाबले से बाहर नजर आ रहे हैं। हालांकि यहां एक तरह का अंडर करंट भी है। मजीठा से पहली बार बिक्रम मजीठिया की पत्नी गुनीव कौर मैदान में उतरी हैं और गृहिणी से नेता बनी गुनीव कौर के मुकाबले में यहां कोई नहीं दिख रहा। चूंकि गुनीव कौर बाकी सियासतदानों से हटकर हैं इसलिए उनका घरेलू टाइप का स्वभाव हर आम और खास को प्रभावित कर रहा है।
दोआबा NRI बेल्ट में BJP की सीटें बढ़ेंगी
दोआबा पंजाब की NRI बेल्ट है और विदेश में रहने वालों का असर यहां दिख रहा है। इस बार आम आदमी पार्टी NRI से फंड जुटाने के कार्यक्रम नहीं कर रही लेकिन विदेश में रहने वाले पंजाबियों के दिल में अभी भी उसके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है। विदेश में रहने वाले बच्चे अपने बुजुर्गों से इस बार AAP को मौका देने की बात कर रहे हैं। 2017 में दोआबा की 23 सीटों में से 15 कांग्रेस ने जीती। बीजेपी को यहां सिर्फ एक सीट मिली तो अकाली पांच सीटों पर जीते। इस बार यहां बीजेपी की सीटें बढ़ेंगी। जालंधर शहर की अलग-अलग सीटों से मनोरंजन कालिया, केडी भंडारी और मोहिंदर भगत और फगवाड़ा से विजय सांपला फाइट में हैं और इसका नुकसान कांग्रेस को होगा।
दोआबा में किसानों का असर नहीं
अकाली दल को 2017 की तरह दोआबा में 5-6 सीटें मिलने के ही चांस है। नवांशहर में कांग्रेस ने अपने सीटिंग विधायक अंगद सिंह का टिकट काट दिया और इसका नुकसान पार्टी को होता नजर आ रहा है। यहां अंगद सिंह मुख्य मुकाबले में हैं। किसान आंदोलन का यहां गढ़शंकर और चब्बेवाल जैसी दो-तीन सीटों पर असर है मगर सीट निकालना फिलहाल दूर की कौड़ी है। उम्मीदवार की छवि, काम करने का तरीका और स्थानीय इश्यूज समीकरणों को रोचक बना रहे हैं।
बड़े चेहरों की स्थिति
चरणजीत सिंह चन्नी - चमकौर साहिब सीट से इनकी स्थिति मजबूत है। भदौड़ में AAP से टक्कर मिल सकती है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह - पटियाला अर्बन सीट पर फंसे हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि अंतिम क्षणों में बाजी मार सकते हैं।
सुखबीर बादल - जलालाबाद सीट पर मजबूत स्थिति में हैं। यहां इनके मुकाबले कोई बड़ा चेहरा या नाम नहीं है।
प्रकाश सिंह बादल - परंपरागत लंबी सीट पर इस बार AAP कैंडिडेट गुरमीत सिंह खुंडियां टक्कर दे सकते हैं।
भगवंत मान - धुरी सीट पर AAP के CM कैंडिडेट कांग्रेस के दविंदर गोल्डी के मुकाबले बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं।
नवजोत सिद्धू-बिक्रम मजीठिया - अमृतसर ईस्ट सीट पर दोनों के बीच कड़ा मुकाबला है। सिद्धू सांसद और MLA के तौर पर 18 साल से यहां का नेतृत्व कर रहे हैं मगर इलाके की हालत खराब है। मजीठिया इसी पर उन्हें घेर रहे हैं।
बलबीर सिंह राजेवाल - किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा के CM फेस राजेवाल समराला सीट पर कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं।
सिद्धू-चन्नी के सामने 'कैप्टन ईरा' से निकलने की चुनौती
पंजाब में इस चुनाव के दौरान कांग्रेस भी एक तरह से ट्रांसफोर्मेशन के दौर में हैं। पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पार्टी को 'कैप्टन ईरा' से निकालने की कोशिश में हैं, वहीं 80 साल की उम्र में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) नई पार्टी बनाकर उसे खड़ा करने की जोर-आजमाइश में लगे हैं। कैप्टन की पार्टी इस चुनाव में कांग्रेस के ही वोट काटेगी। ऐसे में सिदधू-चन्नी के सामने इस डैमेज को कम से कम करने की चुनौती हैं।
कांग्रेस के सामने बागियों की भी चुनौती
पंजाब में कांग्रेस के सामने अपने बागियों से निपटने की चुनौती भी है। सीटिंग विधायकों के टिकट काटने और कई सीटों पर एक से अधिक दावेदारों के होने के कारण टिकट नहीं मिलने वाले बागी होकर मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। इसका नुकसान पार्टी को हो रहा है। कुल मिलाकर मतदान से लगभग दो हफ्ते पहले के हालात में पंजाब में कोई दल बहुमत के आंकड़े तक पहुंचता नहीं दिख रहा लेकिन वोटर बदलाव के मूड में दिख रहा है। अगले दो हफ्ते में प्रचार के जोर पकड़ने के दौरान यह मूड बरकरार रह पाता है या नहीं? यह देखने वाली बात होगी।
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