सार

खेसारी लाल यादव ने बताया कि उन्होंने हर दिन कम से कम 6 घंटे जिम करके 'संघर्ष 2' के लिए बॉडी बनाई है। उन्होंने यह भी बताया कि यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा के लिए गेम चेंजर साबित होगी। खेसारी ने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अपने स्ट्रगल के बारे में भी बताया।

एंटरटेनमेंट डेस्क. भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav) इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म 'संघर्ष 2' (Sangharsh 2) को लेकर चर्चा में हैं। फिल्म में उनके ट्रांसफॉर्मेशन को लेकर हर कोई हैरान हैं। फिल्म को खेसारी के फैंस भोजपुरी सिनेमा के लिए गेम चेंजर बता रहे हैं। एशियानेट न्यूज़ हिंदी से बातचीत में खेसारी ने फिल्म के लिए बनाई गई अपनी बॉडी, फिल्म में चलाई गई मशीन गन, समंदर में मोटरबाइक की ड्राइविंग, अपने रियल लाइफ स्ट्रगल और अन्य मुद्दों पर खुलकर बात की। पढ़ें उनके इंटरव्यू के चुनिंदा अंश...

Q. जिस तरह का रिस्पॉन्स 'संघर्ष 2' को मिला है, उसे लेकर आप क्या कहना चाहेंगे?

A. यह अवसर बेहद एक्साइटमेंट वाला है। क्योंकि आज साउथ इंडस्ट्री के लोग इतने आगे बढ़ गए हैं। हिंदी पहले से ही आगे थे। मराठी सहित कई रीजनल सिनेमा ने अपने आपको प्रेजेंट किया है। अपनी भाषा को प्रेजेंट किया है। हमने भी पहली बार कोशिश की है। बिग बजट और अपने आप पर काम करके, अपने लुक पर काम करके, कहानी पर फोकस करके, हर कैरेक्टर को डिसाइड करके हमने कोशिश की है। इसमें सबसे बड़ा योगदान रतनाकर जी (प्रोड्यूसर) का है। क्योंकि उन्होंने कभी मुट्ठी बंद करके खर्चा नहीं किया। उन्होंने बोला कि जो बेहतर के लिए हो सकता है, आप लोग करिए। पराग पाटिल (डायरेक्टर) का अपना एक अलग स्टाइल है कि वो हमेशा सिनेमा में मुझे एक नया रूप देते हैं। हम सबने मिलकर भोजपुरी को एक बेहतर सिनेमा देने की कोशिश की है। मुझे ऐसा लगा कि गाने से हम अपनी भोजपुरी की पहचान नहीं बना सकते। हमारी पहचान 'नदिया के पार' जैसे सिनेमा से है। हमारी पहचान 'गंगा मईया तोहे पियरी चढाइब' से है, 'गंगा किनारे मोरे गांव से है, 'ससुरा बड़ा पईसा वाला' से है'। कहीं ना कहीं हमें उस दिशा में काम करना होगा। तब कहीं जाकर हम दुनिया को बता पाएंगे कि हम रीजनल सिनेमा के हैं।

Q.  रतनाकर जी के साथ आपकी दो फ़िल्में आ रही हैं। 'संघर्ष 2' और 'गॉड फादर'। दोनों फिल्मों के बारे में कुछ बताइए।

A. 'गॉड फादर' भी समाज का एक आईना है। हमारे जीवन में हमारे पिता तो होते हैं, लेकिन अगर कोई हमारी मजबूरियों में हमारा साथ देता है तो वह हमारा गॉड फादर हो जाता है। मुझे लगता है कि मेरे बहुत से गॉड फादर हैं, जिन्होंने मुझे रास्ता दिखाया है, जिन्होंने मेरे लिए मेहनत की है। मेरे लिए तो वह जनता भी गॉड फादर है, जिसने मुझे यहां तक पहुंचाया है। 'गॉड फादर' में एक नहीं, बल्कि तीन रोल में दिखाई दूंगा। तीनों का कैरेक्टर अलग है, तीनों का बोलने का तरीका अलग है, चलने का तरीका अलग है। कहीं ना कहीं अब हम खुद पर काम कर रहे हैं। 'संघर्ष 2' कहीं ना कहीं भोजपुरी के लिए गेम चेंजर है। एक बेस्ट साबित होने वाली सिनेमा है। हमें बेहतर काम करने की जरूरत है। हम बेहतर काम करेंगे तो हमारा सिनेमा अपने आप बुलंदियों को छुएगा और उसका उदाहरण है 'संघर्ष 2'। प्रोड्यूसर ने दिल खोलकर खर्च किया, हमने दिल खोलकर काम किया। जहां हमें मौत से लड़ना पड़ा, वहां हम उससे भी लड़ गए। हम तो हेलीकॉप्टर से लटककर आना चाहते थे, लेकिन ऐसी परमिशन पूरे हिंदुस्तान तो क्या आउट ऑफ़ इंडिया भी नहीं मिली। जिस मशीन गन को उठाकर मुझे मूवमेंट करना था, वह करीब 30 किलो की है। 30 हजार फीट गहरे समंदर में उतरकर मैंने मोटरबाइक चलाई है। इसे मुझे एक हाथ से चलाना था और एक हाथ से गोली चलानी थी। कहीं न कहीं यह खतरे वाला काम था। लेकिन मुझे लगता है कि अगर जनता का प्यार और आशीर्वाद मुझे मिल रहा है तो मैं उनके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं।

Q. फिल्म के लिए आपने बॉडी पर गजब का काम किया है। आपने यह ट्रांसफॉर्मेशन कैसे किया?

A. मैं सुबह 5 बजे उठता था। 7:30 तक जिम करता था और 8 बजे सेट पर पहुंच जाता था। कभी-कभी 7 बजे भी पहुंचना होता था, कभी 9 बजे पहुंचना होता था। तो टाइमिंग के हिसाब से 2 घंटे पहले उठ जाता था, ताकि मैं जिम कर सकूं। ब्रेक में सब लोग खाना खाते थे। मैं सिर्फ जूस पीता था और जूस पीते-पीते जिम चला जाता था। क्योंकि एक घंटे का ब्रेक होता है और मुझे लगता था कि कम से कम 45 मिनट जिम कर लूंगा। शॉट ख़त्म होने के बाद वैनिटी में जाकर डम्बल लगाने लगता था। शाम को फिर दो से ढाई घंटे जिम करता था। इस तरह मुझे लगता है कि मेरा जिम का रुटीन हर दिन लगभग 6 घंटे का था। लगातार मैंने इस रुटीन को फॉलो किया, तब कहीं जाकर यह रिजल्ट मिला, जो देखने को मिल रहा है।

Q. डाइट पर भी कुछ काम किया?

A. डाइट पर मैंने कोई विशेष काम नहीं किया। बस यह है कि मैं साग-भात ज्यादा खाता हूं। मड़ुआ की रोटी, सतुआ, लिट्टी-चौखा मेरे फेवरेट हैं। बस अंडा खाता था। बाकी डाइट में मैंने ऐसा कुछ शामिल नहीं किया। किसी तरह के सप्लीमेंट्स नहीं लिए। ये अंग्रेजी दवाइयां मुझे नहीं पचतीं। इसलिए ज्यादातर अपने देसी और घर के खाने पर मैं यकीन करता हूं। दूध पीता हूं, जो मेरे लिए फायदेमंद साबित हुआ। इसके साथ बस मेहनत की और चीजें होती चली गईं।

Q. बचपन का कोई संघर्ष, जिसे आप आज भी याद करते हों?

A.  मेरी जिंदगी के पीछे की बहुत बड़ी कहानी है। कहानी है, तभी मैं किताब बनकर उभरा हूं। दूध बेचने से लेकर लिट्टी-चौखा बेचने तक मेरे जीवन की बड़ी-बड़ी कहानियां हैं। किसी के घर जाकर बर्तन मांजना, झाड़ू-पोंछा करना, ऐसे मेरे जीवन के कई किस्से हैं। इन सबसे गुजर कर मैं आज यहां तक पहुंचा हूं। मेरे पास कोई टार्गेट था ही नहीं, क्योंकि मैं कैपेबल नहीं था। पैसे से भी ज्यादा मजबूत नहीं था। 7 भाई थे और पापा अकेले कमाने वाले थे। रहने का घर नहीं था। मैं पहले कमाने ही निकला था। ताकि घर की परिस्थिति सुधर सके। काम करते गए और नाम बनता चला गया। पूरा इंटरव्यू नीचे वीडियो में देखें…

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