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'शोले' को 45 साल हुए पूरे, फिल्म ने क्यों रचा था इतिहास, जानें 10 बड़ी वजहें
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स्वतंत्रता दिवस के दिन रिलीज हुई इस फिल्म ने शुरू में साधारण प्रदर्शन किया था। बाद में इसमें कुछ और रीलें जोड़ी गई थीं। फिर तो इसने इतिहास रच दिया था।
इस फिल्म ने तमिलनाडु के चेन्नई (तब मद्रास), कोयम्बटूर और मदुरै में गोल्डन जुबली मनाई थी। पूरे भारत में इस फिल्म ने 60 से अधिक शहरों में गोल्डन जुबली का रिकॉर्ड बनाया था।
125 से अधिक शहरों में लगातार 25 सप्ताह (सिल्वर जुबली) तक चली। बाद में फिल्म 'शोले' को लेकर कुछ रिसर्च ही हुए।
एक अनुमान के मुताबिक, रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि इस फिल्म को करीब 30 करोड़ लोगों ने देखा था।
फिल्म के गानों के बजाय डायलॉग्स के कैसेट्स बाजारों में आए और चाय के ठेलों और पान की गुमटियों पर दिनभर "तेरा क्या होगा कालिया" गूंजता रहे?
यह पहली ऐसी फिल्म थी, जिसके पटकथा लेखकों सलीम-जावेद को सितारा हैसियत हासिल हुई थी।
'शोले' के किरदारों के नाम लोगों की जुबान पर इस हद तक चढ़े कि जय-वीरू, ठाकुर और गब्बर बसंती की घोड़ी धन्नो तक का नाम लोगों को आज तक याद है। सांभा और कालिया याद हैं। पांच-दस मिनट के कैमियो वाले जेलर और सूरमा भोपाली भी याद हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस फिल्म के क्लाइमेक्स में असली बुलेट्स का इस्तेमाल किया गया था। बताया जाता है कि एक बुलेट अमिताभ बच्चन को लगने से रह गई थी।
बताया जाता है कि मुंबई के सिनेमाघरों से 'शोले' 5 सालों तक उतरी ही नहीं थी।
फिल्म को सिर्फ एक फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था और वो भी एडिटिंग के लिए।