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Coronavirus से देश को बचाएगा इन सात इंजीनियरों का काम, महज इतने हजार रुपए में तैयार किया वेंटीलेटर

बिजनेस डेस्क: भारत में लगातार कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं  जिससे भारत के अस्पतालों पर बोझ बढ़ना लगभग तय है। हालांकि, लॉकडाउन के चलते संक्रमण का असर कुछ धीमा है। लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण की जांच बढ़ रही है वैसे-वैसे पीड़ितों के मामले भी बढ़ रहे हैं। इस बीच पूरी दुनिया में भी कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहें हैं। जिन देशों में इस महामारी ने सबसे ज्यादा जानें ली हैं उनमें अमेरिका, स्पेन, इटली जैसे विकसित देश शामिल हैं। इन देशों में कोरोना से हजारों की मौत हुई हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें से कई जन बचाई जा सकती थी अगर इन देशों के पास अच्छी मात्रा में वेंटीलेटर्स होते। 

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Asianet News Hindi
Published : Apr 02 2020, 11:35 AM IST| Updated : Apr 02 2020, 11:59 AM IST
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अगर इन विकसित और कम आबादी वाले देशों में वेंटीलेटर्स की इतनी किल्लत है, तो भारत जैसे विकासशील और ज्यादा आबादी वाले देश में कोरोना से लड़ने के लिए भारी मात्रा में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। भारत में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और मास्क के बाद वेंटिलेटर की किल्लत पर ध्यान देने की काफी जरूरत है।
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ऐसे में सरकार ने वेंटिलेटर जुटाने की तैयारियां तेज कर दी है। अब तक कई बड़ी कंपनियों को 50 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर्स के ऑर्डर दिए जा चुके हैं। हालांकि, इन सबके बीच भारत की एक स्टार्टअप देश जरूरत के मुताबिक, कम कीमत के वेंटिलेटर के निर्माण में जुट गई है। ताकि जल्द से जल्द हजारों कोरोनावायरस पीड़ितों को इलाज मुहैया कराया जा सके।
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महाराष्ट्र के पुणे में स्थित एक स्टार्टअप कंपनी नोक्का रोबोटिक्स में कुछ इंजीनियर्स वेंटिलेटर बनाने की कोशिश में जुटे हैं, इन इंजीनियर्स की उम्र महज 26 साल है। इस ग्रुप में मैकेनिकल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और एयरोस्पेस स्ट्रीम के छात्र शामिल हैं। महज दो साल पुराने इस स्टार्टअप का टर्नओवर पिछले साल ही 27 लाख रुपए रहा था।
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कंपनी की तैयारी इस वक्त 50,000 रुपए में वेंटिलेटर विकसित करने की है। अब तक इन सात इंजीनियरों के समूह ने इस पोर्टेबल मशीन का तीन प्रोटोटाइप तैयार किया है। जिन्हें फिलहाल AI(आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस) टेक्नोलॉजी द्वारा फेफड़ो को सांस देने के लिए टेस्ट किया जा रहा है।
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इस मशीन में एक प्रोस्थेटिक डिवाइस है जो खून को ऑक्सीजन देने के साथ कार्बनडाइ ऑक्सइड निकालने के काम आता है। कंपनी के योजना के मुताबिक, स्टार्टअप 7 अप्रैल तक ऐसी मशीन बना लेगा, जिसके अप्रूवल के बाद असल मरीजों पर टेस्ट किया जाएगा।
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मालूम हो कि इससे पहले महिंद्रा ग्रुप ने भी एक सस्ता वेंटिलेटर का प्रोटोटाइप तैयार किया था। महिंद्रा के ये प्रोटोटाइप हल्के और अधिक कॉम्पैक्ट हैं। कंपनी के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने खुद इसकी जानकारी ट्वीटर पर दी थी। आम तौर पर वेंटीलेटर की लागत 5-10 लाख रुपये के बीच होती है, लेकिन इसकी लागत केवल 7,500 रुपये थी।
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इसके अलावा देश की प्रमुख ऑटो कंपनी मारुति ने अपने कार प्लांट में वेंटीलेटर बनाने के लिए AgVa कंपनी से करार किया था। मारुती ने कहा था कि वह देश में वेंटिलेटर उत्पादन बढ़ाने के लिए एग्वा हेल्थकेयर के साथ मिलकर काम करेगी। मारुति का कहना है कि हमारा इरादा वेंटिलेटर उत्पादन को 10 हजार यूनिट प्रति माह करने का है।
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अगर आंकड़ों की माने तो इस वक्त भारत में कुल 48 हजार वेंटिलेटर हैं। इनमें कितनों की ब्रीदिंग मशीन चालू है ये बात साफ नहीं है। हालांकि, इनमें से कई पहले से ही आईसीयू में दूसरे मरीजों की देखभाल में लगाए गए हैं। कोरोनावायरस के केस में यह देखा गया गया है की हर 6 संक्रमित में से 1 व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है। सांस की परेशानी के दौरान उसे वेंटिलेटर की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। ऐसे में वेंटिलेटरों की किल्लत के कारण डॉक्टरों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

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