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जब लोगों के पास है पैसे की कमी तो रिजर्व बैंक क्यों नहीं छाप सकता नोट? जानें इसके पीछे की वजह

बिजनेस डेस्क। अक्सर लोगों के मन में यह सवाल खड़ा होता है कि जब देश की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है और लोगों को गरीबी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो सरकार नोट छाप कर इस समस्या का समाधान क्यों नहीं करती है। फिलहाल, कोरोना महामारी के दौर में देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में, लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है। गूगल और क्वोरा जैसे प्लेटफॉर्म पर भी लोग यह सवाल पूछ रहे हैं। बता दें कि भारत में करंसी नोट छापने का अधिकार सिर्फ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को है।

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Asianet News Hindi
Published : May 23 2020, 02:20 PM IST
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रघुराम राजन की सलाह
आम लोगों की तो छोड़े, हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन तक ने यह कहा कि संकट की इस घड़ी में रिजर्व बैंक को नोट छाप कर हालात सुधारने में मदद करनी चाहिए। लेकिन क्या ऐसा करना आसान है? आखिर वे कौन-सी वजहें हैं जिनके चलते रिजर्व बैंक अतिरिक्त नोट छापने से बचता है। 

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क्या कहा रघुराम राजन ने
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में कहा था कि अभी के हालात में अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए नोट छापे जाने की जरूरत है। इससे बाजार में पैसा आएगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि गरीबों को सरकारी कर्ज देने के लिए भी रिजर्व बैंक की ओर से नोट छापे जाने चाहिए। उन्होंने राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की भी बात कही। 

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नोट छापने से बढ़ती है समस्या
अगर रिजर्व बैंक बेहिसाब नोट छापता है तो इससे कई तरह की समस्या पैदा हो सकती है। पहले जिन देशों ने ऐसा करने की कोशिश की है, उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं। बहुत ज्यादा नोट छपने से महंगाई बहुत बढ़ जाती है। बाजार में ज्यादा नोट आ जाने का अर्थव्यवस्था पर कोई अच्छा असर नही पड़ता है।

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नोट छापना कैसे तय होता है
किस फाइनेंशियल ईयर में कितने नोट सर्कुलेशन में हैं, नोट छापने के पहले यह देखा जाता है। इसके अलावा भी इकोनॉमी के दूसरे कई फैक्टर्स पर विचार किया जाता है। इसके बाद ही नोट छापे जाने का फैसला लिया जाता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019 में देश में 21.1 लाख करोड़ के नोटों का सर्कुलेशन था। 
 

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नोट छापने से बढ़ेगी महंगाई
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के पूर्व निदेशक और होरेसिस विजन कम्युनिटी नाम के थिंक टैंक के फाउंडर फ्रैंक जर्गन रिक्टर का कहना है कि अगर जरूरत से ज्यादा नोट छाप दिए जाएं तो महंगाई काफी बढ़ जाएगी। जब लोगों के पास ज्यादा पैसा आ जाएगा तो वे बेतहाशा खर्च करने लगेंगे और इससे बाजार में कीमतें काफी बढ़ जाएंगी। इससे नकली नोट भी प्रचलन में आने लगेंगे। ज्यादा नोटों के बाजार में आने से शेयर बाजार पर भी खराब असर पड़ेगा। 

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नोट छापने से इन देशों में बढ़ी समस्या
जिम्बाब्वे और वेनेजुएला में जब अर्तव्यवस्था चरमरा गई तो उसे संभालने के लिए वहां के केंद्रीय बैंक ने बेशुमार नोट छाप दिए। इसका परिणाम यह हुआ कि साल 2018 में वहां महंगाई 18 लाख फीसदी तक बढ़ गई। वेनेजुएला में एक करोड़ और एक खरब तक के नोट छापे गए। लेकिन बाजार में सामान नदारद हो गए। वहां के लोगों को एक लीटर दूध और अंडे खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते थे। हालत यहां तक आ गई कि 25 लाख बोलिवर की कीमत एक डॉलर के बराबर हो गई। इसी तरह जिम्बाब्वे में 2008 में महंगाई दर 79.6 अरब फीसदी तक पहुंच गई थी। 

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