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अमेरिका की नौकरी छोड़ गांव लौटी लड़की बन गई सरपंच, बिजली पानी के साथ गरीबों को दिए पक्के मकान

भोपाल.  हमारे समाज में आज महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी की अनोखी मिसाल पेश कर रहीं हैं। चाहे बिज़नेस का क्षेत्र हो या राजनीति का, या फिर समाजसेवा से लेकर प्रतियोगिता परीक्षा हर जगह महिलाओं ने बाज़ी मारी है। ऐसे ही अमेरिका में रहकर रिहाइशी जिंदगी जीने वाली लड़की अपने स्वदेश लौट आई। भारत आकर वो देश के लिए कुछ करना चाहती थी। इसलिए उसने महिलाओं की दीन-हीन दशा देख ठान लिया कि वो कुछ बड़ा करेगी। समाज व देश के सेवा की खातिर अमेरिका की नौकरी को अलविदा कर वो सरपंच बन गई। आज उनके नाम और काम के चर्चे देश के कोने-कोने तक हैं। इस महिला सरपंच ने न सिर्फ गांव को शहर से बेहतर बना दिया है। बल्कि बिजली पानी से लेकर 80 फीसदी पक्के मकान तक मुहैया करवाए हैं। इसके अलावा भी वो गांव में कई तरह के क्रांतिकारी काम करती हैं। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली सरपंच भक्ति शर्मा की। मोटिवेशन स्टोरी में हम भक्ति के लाखों लोगों की प्रेरणा बनने की कहानी सुना रहे हैं-

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Asianet News Hindi
Published : May 30 2020, 05:53 PM IST| Updated : May 30 2020, 06:30 PM IST
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भक्ति शर्मा की, महज़ 25 साल की उम्र से सरपंच बन अपने गांव की तरक्की में दिलोजान से लगी हैं। भारत की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक, इस युवा लड़की की जीवन-यात्रा सच में बेहद प्रेरणादायक है। भक्ति ने अपने गांव को विकास के हर मामले में अव्वल बना दिया है।  भोपाल से 20 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव कभी पिछड़ा कहलाता था। भक्ति ने सरपंच का पद पाया और कुछ ही साल में गांव का नक्शा बदल दिया।

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वो देश की एक जानी-मानी सरपंच हैं, जिन्होंने युवा वर्गों के भीतर अपने देश व समाज की खातिर कुछ कर गुजरने की प्रेरणा भरती हैं। राजनीति शास्त्र में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद साल 2012 में भक्ति ने अमेरिका का रुख किया। दरअसल, उसके परिवार के बहुत सारे लोग वहां रहते थे इसलिए भक्ति ने भी पढ़ाई पूरी कर सुनहरे भविष्य का सपना पाले अमेरिका के टैक्सस शहर पहुंची।

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भक्ति के पिता हमेशा से चाहते थे कि भक्ति पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत में रहे और यहां रहकर समाज में महिलाओं के विकास के लिए काम करें। उनके पिता अपनी बेटी की कामयाबी विदेश में नहीं, अपने गांव में देखना चाहते थे। उन्होंने भक्ति को अनगिनत बार समझाया और अंत में काफी सोचने के बाद भक्ति को पिता की राय बेहद अच्छी लगी। साल 2013 में भक्ति अपनी अच्छी-खासी नौकरी को अलविदा कर स्वदेश लौटने का फैसला किया।

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स्वदेश लौटने के बाद भक्ति अपने पिता के साथ मिलकर एक स्वंय सेवी संस्था बनाने के बारे में सोचा, जिसके माध्यम से उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों की उन महिलाओं को सहायता प्रदान की जाती, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं। लेकिन इसी बीच गांव में सरपंच के चुनाव की घोषणा हो गई। चुनाव में दिलचस्पी दिखाते हुए भक्ति ने अपने पिता से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी। घर वालों से लेकर गांव वालों तक सब ने भक्ति के फैसले का समर्थन किया।

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भक्ति बतातीं है कि जब मैं चुनाव लड़ने का फैसला कर ही रही थी उसी वक्त हमारे गांव के कुछ लोगों ने कहा कि वो भी चाहते हैं कि इस बार सरपंच के चुनाव में मैं उम्मीदवारी बनूं। क्योंकि गांव वाले चाहते थे कि चुनाव को कोई पढ़ी लिखी जीते। ताकि गांव का सही विकास हो। चुनाव परिणाम आते ही भक्ति मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 13 किलोमीटर दूर बसे बरखेड़ी गांव की पहली महिला सरपंच बनीं। चुनाव जीतने के पहले दिन से ही भक्ति में सारे रुके हुए कामों की समीक्षा की और युद्ध-स्तर पर काम शुरू कर दिया। आपको यकीन नहीं होगा दस महीने के अंदर गांव में सवा करोड़ रुपए खर्च करके नई सड़कें बनवाईं, शौचालयों का निर्माण कराया।

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भक्ति ने गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़कें बनवाईं और गांव के 80 प्रतिशत कच्चे मकानों को भी पक्के मकानों में तब्दील कराया। गांव में जहां पहले बिजली पानी और गरीबी की समस्या थी वहीं अब हर घऱ में बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा है। इतना ही नहीं भक्ति ने सभी गांव के लोगों को सरकारी योजनाओँ का लाभ दिलवाकर उन्हें सशक्त और आर्थिक रूप से मज़बूत भी किया है।

 

भक्ति अपने कार्यकाल में हर दिन कुछ न कुछ अनोखा काम करती रहीं। अगले चुनाव में इनके खिलाफ गांव की कई अन्य महिलाएं चुनाव में खड़ी हो गई, लेकिन लोगों ने एक बार फिर भक्ति को ही चुना। सरपंच पद को एक राजनितिक पद से ज्यादा एक सामाजिक जिम्मेदारी से पूर्ण पद के रूप में देखने वाली भक्ति ने ‘सरपंच मानदेय’ नाम से एक अनोखी स्कीम की शुरुआत की।

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इस स्कीम के तहत उस महिला को सम्मानित किया जाता, जिसके घर बेटी पैदा होती है। इसके तहत बरखेड़ी, अब्दुल्ला पंचायत के जिस घर में लड़की पैदा होती है, उसकी मां को वे अपनी 2 महीने की तनख्वाह यानी 4 हजार रुपए देती हैं। साथ ही उस बेटी के नाम से गांव में एक पेड़ लगाया जाता है। ये कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के तहत आता है।

 

बरखेड़ी अबदुल्ला गांव में कम ही लोग ऐसे थे जो शिक्षित थे। भक्ति ने गांव के लोगों के घर-घर जाकर शिक्षा का महत्व समझाया। गांव की हर सड़क अब स्कूलों से जुड़ी हुई है जहां पहुंचने के लिए बच्चों को साइकिल भी मुहैया करवाई गई है। स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील भी दिया जाता है जिससे कुपोषण के आंकड़े गांव में काफी कम हो गए हैं। सड़क, शिक्षा और बिजली मुहैया कराने के अपने संकल्प को पूरा करने के लिए भक्ति निरंतर प्रयासरत हैं। आने वाले समय में भक्ति पूरे गांव में मुफ्त वाई-फाई की सेवा प्रदान करना चाहतीं हैं। 

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सरकार की सुविधाओँ के अलावा सरपंच भक्ति ने खुद एक मुहिम शुरू की है। इसके अंतर्गत भक्ति द्वारा बच्ची की मां को बतौर सरपंच मिलने वाला अपना 2 महीने का वेतन उपहार में दिया जाता है। इसके अलावा बरखेड़ी अबदुल्ला गांव में हर बेटी के जन्म की खुशी में 10 पेड़ लगाए जाते हैं। अब तक गांव में 6000 से पौधे लगाए जा चुके हैं जिनमें से 80 प्रतिशत पौधे अब पेड़ बन चुके हैं।

 

देश और दुनिया से अनुभव बटोर कर एक गांव को संवारने की भक्ति की ‘भक्ति’ की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। भक्ति की सफलता से नई पीढ़ी के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। भक्ति शर्मा ने अपने गांव की दशा और दिखा को बदल कर यह साबित कर दिया कि ‘भक्ति’ में सबसे बड़ी ताकत होती है।

 

इन महिलाओं ने न सिर्फ सफलता हासिल की है बल्कि पूरे समाज व देश के सामने एक प्रेणादायक शख्स के रूप में खुद को पेश किया है। जैसे किसी परिवार की तरक्की के लिए एक पढ़ी-लिखी और तेज-तर्रार महिला की आवश्यकता होती है वैसे ही किसी समाज व देश की भलाई के लिए भी ऐसी ही मजबूत महिला प्रतिनिधि की जरूरत होती। 

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