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आखिर कौन है वो शख्स जिसकी जिंदगी से इंस्पायर है Amitabh Bachchan की झुंड, जानें उसके बारे में सबकुछ
मुंबई. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को मोस्ट अवेटेड फिल्म झुंड (Jhund) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। इस स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म को नागराज मंजुले ने डायरेक्ट किया है। ये फिल्म एक रिटायर्ड खेल प्रोफेसर विजय बरसे (Vijay Barse) की जिदंगी पर आधारित है, जिन्होंने झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों का जीवन संवारा था। विजय 36 साल बतौर खेल प्रोफेसर की नौकरी करने के बाद रिटायर्ड हुए थे। इसके बाद उन्होंने जो काम किया वो उसकी तारीफ हर तरफ हुई। बता दें कि वे आमिर खान के शो सत्यमेव जयते एक एपिसोड में नजर आए थे। इस शो में ही उन्होंने अपनी जिंदगी से इस बड़े राज का खुलासा किया था। शो में उन्होंने बताया था कि 2000 में नागपुर के हिसलोप कॉलेज में एक खेल टीचर के रूप में काम करते हुए उन्होंने एक बार कुछ बच्चों को देखा,जब वे बारिश में एक टूटी हुई बाल्टी को लात मारकर खेल रहे थे। इन्हें देखते ही उनके दिमाग में एक आइडिया आया है और इसी आइडिया को पूरा करने उन्होंने जी जान लगा दी। नीचे पढ़ें विजय बरसे की जिदंगी से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें, जिनका किरदार अमिताभ बच्चन ने फिल्म झुंड में निभाया है...
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विजय बरसे ने बताया था- जब उन बच्चों को उन्होंने फुटबॉल खेलने के लिए बुलाया तो उस समय सभी बच्चे एक असहज स्थिति में थे, उन्होंने मट-मैले कपड़े पहने हुए थे। उसके बाद विजय ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ एक टूर्नामेंट आयोजित करने की प्लानिंग की, जिसमें सिर्फ झुग्गी झोपड़ी वाले बच्चे ही भाग ले सकते थे।
2001 में उन्होंने स्मल सॉकर की स्थापना की और नागपुर में एक टूर्नामेंट आयोजित किया। इस टूर्नामेंट में 128 टीमों ने भाग लिया था। इसका बाद उन्होंने इन बच्चों को एक खेल मैदान दिया और महसूस किया कि जब तक ये बच्चे मैदान में है तब तक वे दुनिया की बुराइयों से दूर रहेंगे।
आमिर खान से शो में उन्होंने बताया था- मैंने सोचा कि ये बच्चे राष्ट्र के भविष्य निर्माण में सक्रिय रूप से योगदान दे सकते हैं। एक टीचर के तौर पर वे और क्या दे सकते थे। इस तरह उन्होंने 2002 में एक झोपड़पट्टी फुटबॉल की जर्नी की शुरुआत की।
उनकी बनाई झोपड़पट्टी फुटबॉल की जर्नी बाद में स्लम सॉकर के नाम से फेमस हुई। उनके कॉलेज के एक साथी ने पूछा कि उन्होंने इस टीम का नाम झोपड़पट्टी फुटबॉल क्यों रखा। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा था- मैं जानता था कि सभी खिलाड़ी झोपड़दपट्टी के रहने वाले हैं और मुझे केवल उनके लिए काम करना है इसलिए मुझे इस नाम को जारी रखना चाहिए।
धीरे-धीरे ये फुटबॉल टीम आगे बढ़ने लगी। शहर और जिला स्तर पर खेलने लगी। 2003 में विजय बरसे लाइमलाइट में आए। उनके काम को बड़े लेवल पर देखा जाने लगा। स्लम सॉकर लीग राष्ट्रीय स्टर पर पहचानी जाने लगी। कई कोच और बच्चे इससे जुड़ना चाहते थे।
आपको बता दें कि शुरुआती दिनों में विजय बरसे के पास कोई प्रायोजक नहीं था, जो प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए फंड दे सके। जब अमेरिका में रहने वाले उनके बेटे ने एक अमेरिकी अखबार में पिता के बारे में एक लेख पढ़ा तो वो अपने पिता की मदद के लिए देश लौट आया।
2007 में विजय बरसे ने एक इंटरव्यू में बताया था- स्लम सॉकर का राष्ट्रीय टूर्नामेंट बड़े लेवल पर कवर किया गया था। फिर होमलेस वर्ल्डकप के डायरेक्टर एंडी हुक ने उन्हें केप टाउन बुलाया था। यहां वे नेल्सन मंडेला से मिले थे। उन्होंने बताया था- मुझे उस दिन मेरे काम के लिए सबसे बड़ी पहचान मिली, जब उन्होंने मुझ पर हाथ रखा और कहा- मेरे बेटे, तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो।
2018 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- मैं एक खेल शिक्षक हूं। लेकिन मैं फुटबॉल के विकास को बढ़ावा नहीं दे रहा हूं। मैं फुटबॉल के जरिए विकास को बढ़ावा दे रहा हूं। 2012 में उन्हें सचिन तेंदुलकर के द्वारा रियल हीरो पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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