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ये पढ़ाते थे शिवराज को अंग्रेजी, गुरुदक्षिणा के रूप में मिला इतना बड़ा सम्मान
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करीब 38 साल तक शिक्षक रहे लक्ष्मीनाराण त्यागी के कई विद्यार्थियों ने ऊंचा मुकाम हासिल किया। शिवराज इनके काफी निकट रहे। जब शिवराज सिंह 11वीं का एग्जाम दे रहे थे, तब मीसाबंदी के दौरान जेल में थे। उन्हें दो पुलिसवाले पकड़कर एग्जाम दिलाने लाते थे। शिवराज सिंह के अनुरोध पर इन्होंने तीन महीने उन्हें अलग से क्लास दी थी।
आगे पढ़ें...सिर्फ हीरो-हीरोइन ही ब्रांड नहीं होते, ये हैं एक सरकारी स्कूल के गुरुजी, जो किसी स्टार से कम नहीं हैं
रायसेन, मध्य प्रदेश. एक शिक्षक ने अकेले ही गांव के सरकारी स्कूल को आदर्श बना दिया। उनकी यह उपलब्धि लगातार चर्चाओं में है। 15 अगस्त को उन्हें इसी के लिए सम्मानित किया गया था। वहीं, केंद्रीय इस्पात मंत्रालय ने उन्हें अपना ब्रांड एम्बेसडर बनाया है। मंत्रालय के अफसरों ने सोशल मीडिया पर इनके बारे में पढ़ा था। यह हैं नीरज सक्सेना। इनकी सफलता की कहानी इस्पात मंत्रालय ने दिल्ली से एक टीम भेजकर डॉक्यमेंट्री के रूप में फिल्माई है। बच्चों के लिए यह शिक्षक हमेशा आगे रहते हैं। बारिश में स्कूल तक कीचड़ हो जाता है। सड़क नहीं होने से आना-जाना मुश्किल होता है, लेकिन ये शिक्षक 5 किमी पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं। अकसर वे बैलगाड़ी पर स्कूल का सामान और बच्चों को बैठाकर ले जाते दिख जाते हैं।
आगे पढ़िए इन्हीं शिक्षक की कहानी...
नीरज सक्सेना रायसेन जिले की भोजपुर विधानसभा क्षेत्र के सालेगढ़ स्कूल में पिछले 10 साल से पदस्थ हैं।
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उन्होंने अकेले ही इस स्कूल को मॉडल स्कूल में बदल दिया है। नीरज सक्सेना ने स्कूल परिसर में खूब पेड़-पौधे लगाए हैं। जिन पर सामान्य ज्ञान से संबंधित जानकारियों की तख्तियां लटकाई गई हैं। शिक्षक ने करीब 2 एकड़ को हरा-भरा बना दिया है। आगे पढ़िए इन्हीं शिक्षक की कहानी...
यह स्कूल जंगल में है। यहां आदिवासी गांव के बच्चे पढ़ने आते हैं। स्कूल तक जाने के लिए सड़क नहीं है। लेकिन शिक्षक ने कभी हार नहीं मानी। वे पैदल ही कीचड़ में 5 किमी पैदल चलकर स्कूल पहुंच जाते हैं। कभी-कभार बैलगाड़ी पर ही बच्चों को बैठाकर स्कूल जाते देखे जाते हैं। कुछ समय पहले जब स्कूल तक किताबें ले जाने का कोई साधन नहीं मिला, था तो नीरज सक्सेना बैलगाड़ी लेकर निकल पड़े थे।
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नीरज सक्सेना जब 2009 में इस स्कूल में पोस्टेड हुए थे, तब यहां सिर्फ 15 बच्चे थे। वे भी कभी-कभार ही पढ़ने आते थे। नीरज ने इसके लिए बच्चों के मां-बाप को समझाया। अब इस स्कूल में 94 बच्चे हैं। आगे पढ़िए इन्हीं शिक्षक की कहानी...
अपने गुरु के इस प्रयास में अब उनके पूर्व छात्र भी मदद कर रहे हैं। जो छात्र अब शहर में हायर एजुकेशन ले रहे हैं, वे लॉकडाउन में बच्चों को घर जाकर पढ़ाते देखे गए।