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उर्जा मंत्रालय का आदेश: बिजली वितरण और हानि की होगी ऑडिट, अधिकारियों की तय होगी जवाबदेही

नई दिल्ली। उर्जा क्षेत्र (Power Sector) में कोयला (coal) की वजह से आए संकट के बाद अब मंत्रालय (Ministry of Power) कई तरह के रिफार्म करने में लगा हुआ है। बिजली मंत्रालय ने बिजली वितरण कंपनियों को बिजली खपत के लिए जवाबदेह बनाया है। बिजली वितरण कंपनियों (electricity distribution companies) को यह बताना होगा कि कंज्यूमर बेसिस पर कहां-कितना खपत हो रहा, किस क्षेत्र में कितना लॉस हो रहा। किस एरिया में कितना ट्रांसमिशन हुआ। किसी स्वतंत्र एनर्जी ऑडिटर (independent energy auditor) से सालाना एनर्जी ऑडिट (Annual Audit) भी कराया जाना अनिवार्य किया गया है। उर्जा मंत्रालय ने एनर्जी कन्जर्वेशन एक्ट 2001 (Energy Conservation Act 2001) के तहत ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिसिएन्सी (Bureau of Energy Efficiency) द्वारा यह आदेश जारी किया गया है। मंत्रालय के इस आदेश से बिजली चोरी को प्रश्रय देने वाले या लापरवाह अधिकारियों की भी जवाबदेही फिक्स हो जाएगी।  

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Asianet News Hindi
Published : Oct 11 2021, 06:01 PM IST
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बिजली संबंधित सभी डेटा डिस्कॉम के पास रहेगा

बिजली वितरण से लेकर एरिया के हिसाब से ट्रांसमिशन-लॉस या खपत का एक एक विवरण डिस्कॉम (DISCOM) को उपलब्ध कराया जाएगा। डिस्कॉम इस डेटा पर काम करते हुए एनर्जी लॉस को कम करने या खत्म करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा। 

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बनेगी बिजली कन्जर्वेशन और लॉस की रिपोर्ट

बिजली वितरण कंपनियां एक रिपोर्ट बनाएंगी जिसमें उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों द्वारा बिजली की खपत और विभिन्न क्षेत्रों में कन्जर्वेशन और वितरण लॉस के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगी। यह उच्च नुकसान और चोरी के क्षेत्रों की पहचान करेगा जिससे सुधार के कदम उठाए जा सके। यह उपाय नुकसान और चोरी के लिए अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने में भी सक्षम होगा। डेटा डिस्कॉम्स को अपने बिजली के नुकसान को कम करने के लिए उचित उपाय करने में सक्षम करेगा। डिस्कॉम उपयुक्त बुनियादी ढांचे के उन्नयन के साथ-साथ मांग पक्ष प्रबंधन (डीएसएम) प्रयासों की प्रभावी तरीके से योजना बनाने में सक्षम होंगे। 

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सितंबर 2020 में, एक अलग अधिसूचना के माध्यम से, सभी विद्युत वितरण कंपनियों को ईसी अधिनियम के तहत नामित उपभोक्ता (डीसी) के रूप में अधिसूचित किया गया था। संपूर्ण वितरण प्रणाली और खुदरा आपूर्ति व्यवसाय पर ऊर्जा ऑडिटिंग के संभावित लाभों के कारण, व्यापक दिशानिर्देशों और ढांचे का एक सेट विकसित करना अनिवार्य था, ताकि पूरे भारत में सभी वितरण उपयोगिताओं का पालन किया जा सके और कार्रवाई तैयार की जा सके।

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दरअसल, देश में कोयले की कमी की वजह से बिजली का संकट पैदा होता जा रहा है। कोविड-19 महामारी के बाद फिर से इंडस्ट्रीज खुल रहे हैं। ऐसे में बिजली की खपत बढ़ी है तो कोयले की मांग भी बढ़ रही है। उधर, कोयला आधारित थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले का स्टॉक खत्म होता जा रहा है। ऐसे में कोयले की कमी से बिजली प्रोडक्शन पर बड़ा असर पड़ रहा। क्योंकि 70 प्रतिशत बिजली का प्रोडक्शन कोयला से ही होता है। 
आज की तारीख में हालात यह है कि कहीं तीन दिन का कोयला बचा है तो कहीं दो दिन का। ऐसे में अगर कोयला की कमी पूरी नहीं हुई तो पूरे देश को ब्लैकआउट का सामना करना पड़ सकता है।

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देश में कोयला के संकट (coal reserve crisis) से ब्लैकआउट का खतरा मंडराने लगा है। सरकार के इनकार व दिलासा के बावजूद लगातार चल रहे मीटिंग्स के दौर से संकट की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस संकट से उबरने के लिए हर उपयोगी पहलुओं पर उर्जा और कोयला मंत्रियों के साथ मीटिंग की है।

दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने सोमवार को कहा कि अधिकांश बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी है। बिजली संयंत्रों में केवल केवल 2-3 दिनों के लिए कोयले का स्टॉक बचा है। एनटीपीसी ने अपने संयंत्रों की उत्पादन क्षमता को 50 से 55% तक सीमित कर दिया है। पहले 4000 मेगावाट बिजली मिलती थी, लेकिन अब आधी भी बिजली नहीं मिल रही। उन्होंने कहा कि नियमानुसार किसी भी पावर प्लांट में पंद्रह दिन से कम का स्टॉक नहीं होना चाहिए। लेकिन स्थितियां उलट हैं। अब अगर स्थितियों को नहीं संभाला गया तो वह बिगड़ सकती हैं।

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