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क्या अमरनाथ गुफा के बाहर आई बाढ़ चीन की कोई साजिश थी, क्या है ये साउंड वेव और क्यों एक CM ने उठाई उंगुली?
नई दिल्ली. हाल में अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने(Cloudburst during Amarnath Yatra) की घटना ने सबको चौंका दिया है। कहने को हिमालय में ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आना कोई नहीं बात नहीं है, लेकिन जब से कृत्रिम बारिश का कॉन्सेप्ट(artificial rain) चर्चा में आया है, दुश्मन देशों को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव(Telangana Chief Minister Chandrashekhar Rao) का इसे लेकर दिया एक चौंकाने वाला बयान इन दिनों चर्चा में हैं। उन्होंने कहा है कि भारत में बादल फटने की घटनाओं के पीछे विदेशी ताकतों यानी चीन की कोई साजिश है। KCR 17 जुलाई को बाढ़ प्रभावित भद्राचलम के दौरे पर थे। वहां गोदावरी इलाके में बादल फटने की घटनाओं के पीछे उन्होंने विदेशी साजिश की आशंका जताई है। उनका तर्क है कि चीन ने पहले भी लेह-लद्दाख और उत्तराखंड में यही किया था। 17 जुलाई को राव ने यह बयान देकर एक नई बहस को जन्म दिया है। बेशक कुछ लोग इसका मजाक उड़ा रहे हैं, लेकिन जो कृत्रिम बारिश के बारे में जानते हैं, वे चिंतित हैं। बता दें कि 8 जुलाई, 2022 को जम्मू-कश्मीर स्थित पवित्र गुफा के बास बादल फटने से आई बाढ़ में 16 लोगों की मौत हो गई थी। 40 लोगों को कोई पता नहीं चला। दरअसल, इसके पीछे चीन द्वारा वेव साउंट का प्रयोग करना है। इसके जरिये कहीं भी बारिश लाई जा सकती है। पिछले साल उत्तराखंड के चमोली में आई बाढ़ के दौरान भी चीन पर शक जाहिर किया गया था। पढ़िए क्या है ये तकनीक..
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चीन बादलों में लो-फ्रीक्वसेंसी साउंड वेव यानी ध्वनी तरंग (Wave) के जरिये अच्छी बारिश कराने का सफल प्रयोग कर चुका है। कुछ साल पहले चीन के बीजिंग स्थित सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस संबंध में एक प्रयोग किया था। उन्होंने बादलों में 50 हर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी के साउंड वेव को 160 डेसीबल के स्तर पर इस्तेमाल किया। इससे अच्छी बारिश की उम्मीद जागी। डेसीबल एक लघुगणक की इकाई है। इसे प्राय: शक्ति और तीव्रता आदि भौतिक राशियों में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस प्रयोग से एक खतरा भी है। अगर चीन इसमें पूरी तरह सफल रहा, तो वो जहां चाहेगा, वहां भारी बारिश कराकर तबाही ला सकता है। (यह तस्वीर अमरनाथ गुफा के बाहर आई बाढ़ के बाद की है)
चीन की साउंड वेव तकनीक के बारे में डेली मेल ने एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। इसमें बताया गया कि यह स्टडी प्रो. वांग गुआंगकिआन ने की है। साउंड वेव से बादल उत्तेजित हो जाते हैं। उनमें कंपन बढ़ जाता है और वे बरस पड़ते हैं। इन सांउड वेव को बादलों में छोड़ने के लिए एक खास तरह का यंत्र तैयार किया गया है। जब बादलों में साउंड वेव छोड़े जाते हैंतो बूंदे बढ़ गईं। अगर इसका सही प्रयोग हो, तो सूखाग्रस्त इलाकों में पानी बरसाया जा सकता है। (यह तस्वीर पिछले साल उत्तराखंड के चमोली में आई भीषण बाढ़ के बाद की है)
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वेव साउंड तकनीक का प्रयोग तिब्बत के पठार पर किया गया था। इससे 17 प्रतिशत तक बारिश बढ़ गई थी। चीन के वायुमंडल में पानी प्रचुरता में है। लेकिन इसका 20 प्रतिशत तक ही बारिश बनकर नीचे आता है। (यह तस्वीर अमरनाथ गुफा के बाहर आई बाढ़ के बाद की है)
Scientia Sinica Technologica नामक जर्नल में चीन की यह रिसर्च प्रकाशित हुई थी। इसमें चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि इस तकनीक से केमिकल पॉल्युशन नहीं होता। वैसे कृत्रिम बारिश कराने का पहला प्रयोग जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है। इसमें सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में भी कुछ साल पहले इसका प्रयोग हो चुका है। (यह तस्वीर 18 जुलाई की रात हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में आई बाढ़ की है)
अब यह बता दें कि जुलाई-अगस्त 2008 में जब चीन की राजधानी में ओलिंपिक चल रहा था, तब मौसम विभाग ने बारिश का अलर्ट जारी किया था। कहा जाता है कि चीन ने मैच के एक दिन पहले ही कृत्रिम बारिश(artificial rain) करवाकर टेंशन दूर कर ली थी।
यह बात 1967-1972 की है, तब वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका का अभियान चल रहा था। कहते हैं कि अमेरिकी सेना ने वियतनाम में क्लाउड सीडिंग के जरिए भारी बारिश कराकर दुश्मन को नुकसान पहुंचाया था।
बता दें कि पिछले कुछ सालों में भारत में बाढ़ आने के मामले बढ़े हैं। खासकर चीन से सटे इलाकों में बाढ़ के मामले बढ़े हैं।