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डॉक्टर बनना चाहते थे अशोक गहलोत किस्मत ने यूं दी सियासत में एंट्री, पढ़िए मैजिशियन से मुख्यमंत्री तक का किस्सा
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अशोक गहलोत का जन्म जोधपुर (Jodhpur) के लक्ष्मण सिंह गहलोत के घर में तीन मई 1951 को हुआ। उनके पिता जादूगर थे तो जादू की कला गहलोत में भी खूब देखने को मिली। कॉलेज के दिनों में कई बार वे अपना जादू दिखाते तो उनके दोस्त और बाद में उनके समर्थक उन्हें मैजिशियन कहकर बुलाते। अशोक गहलोत ने साइंस और लॉ में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद अर्थशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की।
एक अस्पताल के समारोह में अशोक गहलोत ने बताया था कि साइंस से ग्रेजुएशन करने के बाद वे डॉक्टर बनना चाहते लेकिन मेडिकल एंट्रेस टेस्ट पास नहीं कर सके और उनका यह सपना सपना ही रह गया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी किस्मत उन्हें कहीं और लेकर जा रही है और एक दिन उन्हें राजनीति का मंझा खिलाड़ी बना देगी। गहलोत की शादी 27 नवंबर 1977 को सुनीता गहलोत के साथ हुई। उनकी एक बेटी सोनिया गहलोत और एक बेटा वैभव गहलोत है।
बात 1970 के समय की है तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) की सियासत में धमक थी। उसी वक्त अशोक गहलोत की कांग्रेस (Congress) में एंट्री हुई। यह वह दौर था जब कांग्रेस में बड़े-बड़े दिग्गज नेता हुआ करते थे लेकिन किसी को क्या पता था कि एक दिन उन्हें अशोक के सामने सियासी मोर्च पर शिकस्त झेलनी पड़ेगी।
चार दशक से राजनीति में अशोक गहलोत किसी न किसी पद पर बने हुए हैं। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय उन्होंने NSUI कार्यकर्ता के तौर पर बंगाल में शरणार्थी शिविरों में काम किया। उसी वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजरों में आएं और यहीं उनके करियर का टर्निंग प्वॉइंट भी रहा। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि गहलोत की खोज का श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे उत्तर पूर्व क्षेत्र में भीषण शरणार्थी समस्या के दौरान गहलोत से मिलने वाले शुरुआती नेताओं में थीं।
इसका एक कारण यह भी है कि जब गहलोत की कांग्रेस में एंट्री हुई थी तब उनकी उम्र महज 20 साल थी और उनको राजनीति में आने का निमंत्रण और किसी ने नहीं, खुद तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी हीने दिया था। इसी आमंत्रण के बाद वे इंदौर में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र में पहुंचे और यहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई।
गहलोत ने NSUI कार्यकर्ता के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1973 से 1979 तक इस विंग के अध्यक्ष भी रहें और कांग्रेस के छात्र विंग को खूब मजबूती दी। साल 1979 से 1982 के बीच उन्हें जोधपुर शहर की जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। 1980 में पहली बार जोधपुर से सांसद बने और 1982 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे। गहलोत 1980 में सबसे पहले सांसद बने फिर 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा में भी जोधपुर से सांसद चुने गए।
अशोक गहलोत 1999, 2003, 2008, 2013 और 2018 में जोधपुर शहर के सरदारपुरा विधानसभा से विधायक चुने गए। उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी भूमिका निभाई। दो सितंबर 1982 से 7 फरवरी, 1984 तक इंदिरा गांधी सरकार में पर्यटन और नागरिक उड्डयन उप मंत्री रहे। 7 फरवरी, 1984 से 31 अक्टूबर 1984 तक खेल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। 12 नवंबर 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक एक बार फिर इसी मंत्रालय का कामकाज देखा। 31 दिसंबर 1984 से 26 सितंबर 1985 तक केंद्रीय पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के तौर पर काम किया।
जननायक के तौर पर पहचान बनाने वाले अशोक गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं। पहली बार एक दिसंबर 1998 से 8 दिसंबर 2003 तक उन्हें यह पद नवाजा गया था। 13 दिसंबर 2008 से 13 दिसंबर 2013 तक दूसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद एक बार फिर 17 दिसंबर 2018 को उन्होंने तीसरी बार सूबे के मुख्यमंत्री पद को संभाला और तब से लगातार काम कर रहे हैं।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि शुरुआत में ही अशोक गहलोत को कांग्रेस की कार्यशैली समझ में आ गई थी कि यहां हाईकमान को साधने वाला ही सियासत में लंबी पारी खेल सकता है। यही कारण है कि उन्होंने इसी लाइन पर काम किया और इंदिरा गांधी से लेकर संजय गांधी, राजीव गांधी सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक उनकी मजबूत पकड़ है और गहलोत की चलती भी खूब है।
कुछ जानकार बताते हैं कि राजस्थान में चुनाव हो और कांग्रेस कम अंतर से जीती हो तो पार्टी के अंदर सभी को पता होता है कि कमान गहलोत के ही हाथ जाने वाली है। गहलोत की सरलता और उनकी सादगी ने उनके कद को काफी ऊंचाईयों तक पहुंचाया है। एक दौर ऐसा भी था जब अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद के सामने अशोक गहलोत कुर्सी तक पर नहीं बैठते थे लेकिन बाद में उनकी कुर्सी बड़े नेताओं की बराबरी पर लगने लगी। गहलोत 24 अकबर रोड के किसी भी शक्तिशाली पदाधिकारी जितने ही ताकतवर रहे हैं। उनके रिश्ते सभी से बेहतर ही रहे हैं।
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