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- आंसूभरी हैं ये जीवन की राहें, भूखे-प्यासे निकले मजदूर, चप्पलों ने भी छोड़ा साथ, रोटी के बदले खानी पड़ीं लातें
आंसूभरी हैं ये जीवन की राहें, भूखे-प्यासे निकले मजदूर, चप्पलों ने भी छोड़ा साथ, रोटी के बदले खानी पड़ीं लातें
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पहली तस्वीर नई दिल्ली की है। रोजी-रोटी गंवाने के बाद पुलिस की लात खाते प्रवासी मजदूर। दूसरी तस्वीर जयपुर की है। प्रवासी मजदूरों को इतना पैदल चलना पड़ रहा है कि जूते-चप्पल भी साथ नहीं दे रहे हैं।
यह तस्वीर जयपुर की है। सोचिए..प्रवासी मजदूर किस हालत में अपने घरों को पैदल निकले होंगे। जून की गर्मी में नंगे पैर मीलों पैदल चलना कितना कठिन है।
ऐसी तस्वीरें देशभर में दिखाई दे जाएंगी। प्रवासी मजदूरों को कई जगह पुलिस का सहयोग मिल रहा, तो कई जगह लाठियां खानी पड़ रही हैं।
यह तस्वीर गाजियाबाद की है। विकलांग बुजुर्ग को ऐसे अपने घर की ओर निकलना पड़ा।
यह तस्वीर नई दिल्ली की है। खाने के लिए देश के इन भविष्य को ऐसे हाथ फैलाने पड़ रहे।
यह तस्वीर नई दिल्ली की है। यह कोई कैदखाना नहीं, रिक्शा है।
नोएडा के एक शेल्टर होम में आर्थिक मदद मिलने पर नोट को माथे से लगाकर भावुक हो उठी महिला।
यह तस्वीर पटना की है। प्रवासी मजदूरों को नहीं मालूम था कि जिंदगी में ऐसे भी सफर करना पड़ेगा।
यह तस्वीर गुरुग्राम की है। पैदल चलते हुए जब शख्स थक गया, तो यूं लुढ़क गया।
यह तस्वीर पटना की है। ट्रेनों में जब चढ़ने के लिए मौका नहीं मिला, तो लोगों खिड़कियों से घुसे।
यह तस्वीर गुरुग्राम की है। मजदूरों को लेकर सरकारी बदइंतजामी के चलते ऐसे हालात बनने लगे हैं। बच्चे तक परेशान हैं।
यह तस्वीर गाजियाबाद की है। दिव्यांग को पीठ पर लादकर जाता एक प्रवासी मजदूर।
यह हैं स्टूडेंट नितीश त्रिपाठी। ये दिल्ली से अपने घर यूपी जाने के लिए निकले थे। लेकिन बॉर्डर पर पुलिस ने रोक लिया, तो वो रो पड़े।
ऐसे घर-गृहस्थी और बच्चों को लादकर घरों को जाते देखे जा सकते हैं प्रवासी मजदूर।