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2 दिन में 50 हजार लोगों का किया गया था इलाज, Bhopal Gas Tragedy से जुड़े ऐसे ही 6 सवालों के जवाब

नई दिल्ली. हॉस्पिटल से लेकर सड़कों तक पर लाशें बिखरी थीं। हर तरफ चीख-पुकार मच गई। जहां तक नजर गई, लोग भागते दिखे। वजह हवा में जहर घुल गई थी। बचना मुश्किल था। 37 साल पहले 3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के लोगों के लिए काली रात थी। ऐसी रात जब लोग सोते-सोते ही मौत के मुंह में चले गए। भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) को दुनिया के सबसे भीषण इंडस्ट्रीयल एक्सीडेंट में से एक माना जाता है। हजारों लोगों की जान चली गई। भोपाल गैस कांड की तस्वीरें देखकर पूरी दुनिया दंग रह गई थी। उन्हीं तस्वीरों को दिखाते हुए भोपाल गैस कांड की पूरी कहानी बताते हैं... 

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Asianet News Hindi
Published : Dec 02 2021, 01:08 PM IST
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1- कैसे हुआ था भोपाल गैस कांड?
यूनियन कार्बाइड में गैस रिसाव हुआ था। घटना भोपाल के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी में हुई थी। यूनियन कार्बाइड का नाम बाद में डॉव केमिकल्स हो गया। सर्द रातों में जैसे ही ठंडी हवा तेज हुई, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से रिसने वाली जहरीली गैस शहर के कई हिस्सों में पहुंच गई। कुछ लोग सो रहे थे। कुछ सोने की तैयारी में थे। सरकार के एफिडेविट के मुताबिक, घटना के कुछ ही घंटों के भीतर जहरीली गैस से करीब 3000 लोगों की मौत हो गई।

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2- कितने लोगों की जान गई?
3 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से रिसने वाली जहरीली गैस ने लोगों की जान ले ली। आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, भोपाल गैस त्रासदी में 3787 लोग मारे गए थे। बाद में आंकड़े अपडेट किए गए और ये आंकड़ा 2259 बताया गया। हालांकि, भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं ने मौत के आंकड़े 8000 से 10000 के बीच बताए हैं। 2006 में पेश किए गए एक एफिडेविट में सरकार ने कहा कि भोपाल गैस कांड में 558125 लोग घायल हुए, जिसमें लगभग 3900 गंभीर रूप और स्थायी रूप से विकलांग लोग शामिल हैं। 

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3- कितनी गैस लीक हुई थी?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से करीब 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ था। ये एक जहरीली गैस होती है। शरीर के अंदर जाते ही कुछ ही मिनट में इंसान की मौत हो जाती है।  

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4- गैस लीक की क्या वजह थी?
फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से गैस के रिसाव की सूचना मिली थी। आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, मिथाइल आइसोसाइनेट प्लांट को ठंडा करने के लिए पानी में मिला दिया गया था। इससे गैसों की मात्रा बढ़ गई और टैंक संख्या 610 पर ज्यादा दबाव पड़ा। गैस टैंक से बाहर निकलने लगी। मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से करीब 5 लाख लोग प्रभावित हुए।

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5- गैस रिसाव के बाद क्या हुआ?
हादसे के वक्त साल 1984 में भोपाल की आबादी करीब 8.5 लाख थी। आधी आबादी को खांसी आ रही थी। उनकी आंखों में जलन और खुजली हो रही थी। सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। फैक्ट्री के आस-पास के इलाकों के गांव और झुग्गियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी खराब था। गैस रिसाव के बाद कोई अलार्म नहीं बजा। 3 दिसंबर की सुबह अचानक हजारों की संख्या में लोग हॉस्पिटल की तरफ भाग रहे थे। उस वक्त शहर में दो सरकारी हॉस्पिटल थे। लोग परेशान थे। सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। 

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6- डॉक्टरों को क्या दिक्कत हुई?
स्थानीय लोगों में चक्कर आना, सांस फूलना, स्किन में जलन और चकत्ते की शिकायत थी। कई लोग तो अंधे हो गए। भोपाल के डॉक्टरों ने कभी भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था। वे मिथाइल आइसोसाइनेट के लक्षण का पता नहीं लगा पा रहे थे। दोनों हॉस्पिटल ने कथित तौर पर भोपाल गैस रिसाव के पहले दो दिनों में लगभग 50000 रोगियों का इलाज किया। आधिकारिक तौर पर सरकार ने घोषणा की कि गैस रिसाव आठ घंटे में खत्म हुआ।

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