किसने दिया था विक्रम बत्रा को 'शेरशाह' नाम, हिन्दुस्तान के लिए टैग बन गई थी उनकी ये लाइन
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साहस के आगे ढेर हो गई पाकिस्तानी फौज
कैप्टन विक्रम बत्रा के साहस के आगे पाकिस्तानी फौजें ढेर हो गई थी। भारत के इस बहादुर सपूत को पाकिस्तानी फौज भी ‘शेरशाह’ कोड नेम का इस्तेमाल करते थी। 7 जुलाई 1999 को जब उनकी शहादत हुई उस समय उनकी डेल्टा कंपनी ने पॉइंट 5140 को जीत लिया था और पॉइंट 4750 और पॉइंट 4875 पर दुश्मन की पोस्ट को बर्बाद कर दिया था।
कमाडिंग ऑफिसर ने दिया था नाम
कई रिपोर्ट्स के अनुसार, विक्रम बत्रा के साहस और जूनून को देखते हुए उनके कमाडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वायके जोशी ने विक्रम बत्रा को शेरशाह कहा था। इसके बाद शेरशाह उनका निक नेम बन गया था।
पंच लाइन बन गया था उनका नारा
साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा 16 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर पॉइंट 5140 जीतने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा ने रेडियो के जरिए अपना संदेश देते हुए कहा था ‘यह दिल मांगे मोर’ इसके बाद उनकी ये पंच लाइन इंडियन आर्मी के साथ-साथ पूरे देश में छा गई थी।
कारगिल का शेर भी कहा गया
इस जीत के बाद विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ भी कहा गया था। कारगिल युद्ध के समय कैप्टन ने 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स यूनिट में कहा था- या तो बर्फीली चोटी पर तिरंगा लहराकर आऊंगा नहीं तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊंगा पर आऊंगा जरुर। 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
12 अगस्त को रिलीज होगी फिल्म
फिल्म, विक्रम बत्रा (Vikram Batra) की जाबांजी को बयां करता है। विक्रम ने कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण चोटी 4875 पर कब्जा किया था और शहीद हो गए थे। यह फिल्म 12 अगस्त को ओटीटी पर रिलीज होगी।