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हाथ काट देने या पत्थर मारकर हत्या करने की सजा देने वाला हिब्तुल्लाह कौन है, जो अफगानिस्तान का नया चीफ बना?
काबुल. तालिबान के कब्जे के बाद मौलाना हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) को अफगानिस्तान का नया लीडर बनाया गया है। ये कंधार का रहने वाला है। हेबतुल्ला (Hibatullah Akhundzada) वह शख्स है जिसने तालिबान के अधिकांश फतवे जारी किए। ये तालिबान के इस्लामी अदालतों का प्रमुख रहा है। माना जाता है कि कई तालिबान नेताओं के विरोध के बाद भी अखुंदजादा अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान देश में रहा। वह मई 2016 में अख्तर मंसूर के ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद आतंकवादी समूह का नेता बन गया। तालिबान ने अखुंदजादा को अमीर-अल-मोमिनीन यानी वफादारों का कमांडर की उपाधि भी दी। पत्थर से मारकर हत्या करने से लेकर महिला पर सख्ती से जुड़े कई फतवे इसी ने जारी किए हैं।
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हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) का जन्म 1961 में पंजवेई प्रांत में हुआ। ये एक पश्तून हैं। पिता एक धार्मिक विद्वान थे, जिसने गांव की मस्जिद में इमाम के रूप में काम किया था। अखुंदजादा अपने पिता से धार्मिक शास्त्रों को सीखता था। सोवियत युद्ध के दौरान उसका परिवार पाकिस्तान में क्वेटा चला गया जहां अखुंदजादा ने अपनी शिक्षा जारी रखी।
जब 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया तो अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) को प्रचार प्रसार करने के लिए नियुक्त किया गया। इसके तुरंत बाद उसे जिहादी मदरसे में 100,000 से अधिक छात्रों को ट्रेनिंग देने का काम सौंपा गया। वह तब शरिया अदालतों का मुख्य न्यायाधीश बना, जिसने नागरिकों पर चरमपंथी तालिबानी फतवे जारी किए।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) को उसके ही एक छात्र ने करीब से गोली मारने की कोशिश की थी, लेकिन वह बच गया। क्योंकि पिस्तौल की गोली फंस गई थी। 2017 में हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) का बेटा अब्दुर रहमान एक अफगान सैन्य अड्डे पर एक आत्मघाती हमले में मारा गया था।
साल 2020 में एक अफवाह उड़ी कि हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) की कोरोना की वजह से मौत हो गई, हालांकि बाद में ये रिपोर्ट झूठी निकली। एक सूत्र ने बताया कि वह इलाज के लिए रूस गया था और ठीक हो गया।
1980 के दशक में हेबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) ने अफगानिस्तान में सोवियत सैन्य अभियान का विरोध किया था। एक सरदार या सैन्य कमांडर के बजाय उसकी एक धार्मिक नेता के रूप में पहचान है। वह तालिबान के अधिकांश फतवे जारी करने और तालिबान के सदस्यों के बीच धार्मिक मुद्दों को निपटाता है।
मुल्ला उमर और मुल्ला मंसूर दोनों ने ही फतवे के मामले में अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) से सलाह लेते थे। माना जाता है कि हेबतुल्ला अखुंदजादा ने 2001 से 2016 के बीच अफगानिस्तान में रहा। हालांकि उसकी यात्रा का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
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