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ये युद्ध नहीं आसां: Taliban से शांति की 'भीख' मांगते अफगानी बच्चे, हमें जीने दो-पढ़ने दो, Emotional pictures
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ये सभी तस्वीरें Panjshir_Province के twitter हैंडल पर शेयर की गई हैं। इसमें Afghanistan पर Taliban के कब्जे के बाद बच्चों की परवरिश और शिक्षा से जुड़ीं परेशानियों को उठाया गया है। जिसने यह पोस्ट की, उसने खुद को पर्यावरणविद(environmentalist) बताया है। इसमें लिखा गया-मैं शांति में विश्वास करता है। शांति और शिक्षा का सपोर्ट करने के मकसद से अफगानिस्तान के अधिकांश प्रांतों की यात्रा की है। मैं पर्यावरणविद हूं। प्रकृति से प्यार करता हूं।
twitter पर शेयर एक डेटा के अनुसार, 1970 से 1996 तक अफगानिस्तान में बच्चों की शिक्षा; खासकर लड़कियों के प्राइमरी स्कूल जाने का ग्राफ ठीक था। लेकिन तालिबान के सत्ता(1996-2001 तक) में आते ही यह ग्राफ एकदम नीचे गिर गया। बाद में जब अमेरिका ने तालिबान को खदेड़ा, तब फिर से स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ गई थी।
(Panjshir_Province के twitter हैंडल पर शेयर की गई है ये तस्वीर)
तालिबान अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू करने जा रहा है। इसमें लड़कियों पर तरह-तरह की पाबंदियां हैं। बेशक तालिबान ने कहा है कि वो लड़कियों की शिक्षा में रोड़ा नहीं बनेगा, लेकिन किसी को भरोसा नहीं है। बात सिर्फ लड़कियों की नहीं, माता-पिता लड़कों को भी स्कूल भेजने से डरने लगे हैं।
(Panjshir_Province के twitter हैंडल पर शेयर की गई है ये तस्वीर)
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में तालिबान के शासन में लड़कियों के स्कूल जाने की संख्या जीरो हो गई थी। लेकिन पिछले 20 सालों में यह 90 लाख तक पहुंच गई थी। लेकिन तालिबान के आने से सिर्फ लड़कियों की शिक्षा नहीं, लड़कों की शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ने लगा है।
(Panjshir_Province के twitter हैंडल पर शेयर की गई है ये तस्वीर)
यह तस्वीर भी Panjshir_Province के twitter हैंडल पर शेयर की गई हैं। इसमें काबुल स्थित डॉ. मेहंदी लाइब्रेरी(Dr. Mehdi’s library) की दो तस्वीरें दिखाई गई हैं। पहली तस्वीर तालिबान के आने से पहले और दूसरी बाद की। दूसरी तस्वीर दिखाती है कि तालिबान शिक्षा के स्थलों में कैसे तोड़फोड़ कर रहा है।