सार
चंद्रशेखर वेंकट रामन (सीवी रामन) ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को ख्याति दिलाई थी। उन्होंने 'रामन प्रभाव' का खोज किया था। इस खोज ने उन्हें नोबल पुरस्कार दिलाया था। रामन ने ही बताया था कि समुद्र का रंग नीला क्यों दिखाई देता है।
नई दिल्ली। चंद्रशेखर वेंकट रामन (सीवी रामन) ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को ख्याति दिलाई थी। उन्होंने रामन प्रभाव की खोज की थी। रामन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। रामन बचपन से ही भौतिक विज्ञान की ओर आकर्षित थे। उन्होंने एक बार बिना किसी खास उपकरणों के ही डायनमो बना दिया था। वह 11 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा में फर्स्ट आए थे। 18 साल की उम्र में उनका पहला रिसर्च पेपर लंदन की फिलॉसफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
पढ़ने के लिए नहीं जा पाए थे इंग्लैंड
रामन पढ़ने के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे। कॉलेज के शिक्षकों ने रामन के पिता से कहा था कि उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेंज दें। हालांकि एक अंग्रेज मेडिकल ऑफिसर ने रामन के इंग्लैंड जाने पर अड़ंगा लगा दिया था। उसने कहा था कि रामन का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। वह इंग्लैंड का सख्त मौसम नहीं सह पाएंगे।
बताया था क्यों नीला दिखता है समुद्र
रामन ने बताया था कि समुद्र नीला क्यों दिखता है। इससे पहले लोग लॉर्ड रेले की उस बात को सच मानते थे कि समुद्र का नीलापन आकाश के नीलेपन के कारण है। यह आकाश का प्रतिबिम्ब है। रामन ने खोज के बाद यह साबित किया था कि प्रकाश की किरण समुद्र के पानी पर पड़ती है तो नीले रंग को छोड़कर बाकी सभी रंग पानी में मिल जाते हैं। सिर्फ नीला रंग ही पानी के अणुओं से लौटता है। यही कारण है कि समुद्र का रंग नीला दिखता है।
रामन प्रभाव के लिए मिला था नोबल पुरस्कार
सीवी रामन ने रामन प्रभाव की खोज की थी, जिसके चलते उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने बताया था कि प्रकाश की किरण कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह व्यवहार करती हैं। फोटोन्स दूसरे अणुओं पर वैसे ही चोट करते हैं जैसे एक क्रिकेट बॉल फुटबॉल से टकराता है। क्रिकेट का बॉल फुटबॉल से टकराता है तो वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। इसके बदले क्रिकेट का बॉल खुद दूसरी ओर कम शक्ति से उछल जाता है। इस दौरान वह अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल के पास छोड़ जाता है।
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प्रकाश के फोटोन्स इसी तरह दूसरे अणुओं से टकराते हैं तो अपनी कुछ ऊर्जा छोड़ देते हैं और बिखड़ जाते हैं, जिसके चलते प्रकाश के स्पेक्ट्रम दिखाई देते हैं। फोटोन्स में ऊर्जा की कमी और इसके परिणाम स्वरूप स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाएं होना 'रामन इफेक्ट' कहलाता है। 'रामन इफेक्ट' से ठोस या द्रव्य के अणु व्यवस्था का पता लगाया जाता है। आज भी 'रामन इफेक्ट' का इस्तेमाल दुनिया की आधुनिक प्रयोगशालाओं में ठोस, द्रव और गैसों के अध्ययन के लिए किया जा रहा है।
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