पुन्नपरा वायलार के दमन ने शाही सरकार को भारत की स्वतंत्रता जीतने से दो महीने पहले ही एक स्वतंत्र तिरुविथमकूर बनाने की अपनी योजना को दोहराने के लिए प्रोत्साहित किया था। इस संघर्ष में दीवान सर सीपी गंभीर रूप से घायल हो गए
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महाराजा बलराम वर्मा के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने सशस्त्र सेना का विद्रोह दबाने के लिए मार्शल ला की घोषणा की थी। आखिर कौन थे सर सीपी रामास्वामी अय्यर, आप भी जानें।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian freedom movement) के दौरान कई ऐसे भी लोग थे जो भारत की आजादी के लिए लड़े थे। ऐसे ही एकमात्र क्रिस्चियन रहे टाइटस जो गांधीजी के साथ ऐतिहासिक दांडी यात्रा (dandi yatra) में शामिल रहे।
स्वतंत्रता सेनानियों में रास बिहारी बोस का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका जन्म 1886 में कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी और बाद में इसकी बागडोर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी थी।
आजादी के लड़ाई के लिए जिंदगी भर संघर्ष करते रहे रास बिहारी बोस। शादी उन्होंने एक जापानी लड़की से और जापान की नागरिकता हासिल की। देश में फैली क्रूरता, अकाल और महामारियों ने तबाही मचाई थी इसका भयावह रूप बोस ने देखा था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अगस्त क्रांति का आह्वान अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल था। इस आंदोलन में अरूणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई धार दी। इस आंदोलन ने अंग्रेजों को यह एहसास दिला दिया कि भारत के लोग सिर्फ आजादी चाहते हैं।
9 अगस्त 1942 भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अविस्मरणीय दिन है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में हुआ। इस सम्मेलन ने भारत छोड़ो संघर्ष शुरू करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई ऐसे क्रांतिकारी रहे हैं, जिन्होंने विदेश में रहते हुए भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं में से एक थे श्यामजी कृष्ण वर्मा।
1879 में वर्मा ने प्रसिद्ध संस्कृत प्रोफेसर मोनियर विलम्स की मदद से ऑक्सफोर्ड के बैलिओल कॉलेज में प्रवेश लिया। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वर्मा भारत लौट आए और जूनागढ़ के राजा के दीवान बन गए। आजादी के लड़ाई का संघर्ष यहां से शुरु हुआ था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो आदिवासी नेता तिरोत सिंह की बहादुरी को सभी भारतीय सलाम करते हैं। माना जाता है कि उनसे अंग्रेजी सेना भी खौफ खाती थी।