सार
हिंदू धर्म में चंद्रमा के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना गया है। इन्हें भी प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है यानी जो हमें दिखाई देते हैं। कुछ विशेष त्योहारों पर चंद्रमा की पूजा भी जाती है। धर्म ग्रंथों में चंद्रमा की 16 कलाएं बताई गई हैं। इनमें से 16वीं कला का नाम अमा है। इसी से अमावस्या शब्द की उत्पत्ति हुई।
उज्जैन. अमावस्या तिथि पर चंद्रमा दिखाई नहीं देता। इसके अगले दिन यानी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर चंद्रमा की हल्दी झलक दिखाई देती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन दिन भर व्रत रखकर शाम को चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। इस बार चंद्र दर्शन 5 दिसंबर, रविवार को है। आगे जानिए चंद्र दर्शन का महत्व और पूजन विधि…
चंद्र दर्शन की तिथि- 05 दिसंबर, रविवार
प्रतिपदा तिथि का समय- 05 दिसंबर की सुबह 9:27 बजे तक
चंद्रोदय का समय- 05 दिसंबर, सुबह 7:52 मिनट पर
चंद्र अस्त का समय- 05 दिसंबर, शाम 06:44 बजे तक
चंद्र दर्शन की पूजा विधि
- चंद्र दर्शन की तिथि के दिन शाम के समय चंद्र देव का दशोपचार तरीके से यानी भगवान का आह्वाहन, आचमन, अर्घ्य, स्नान कर और रोली और चावल से तिलक कर, फूल अर्पित करना पूजा-अर्चना करें।
- पूजा-अर्चना के बाद धूप दीप करके चंद्र देवता को भोग के तौर पर खीर का प्रसाद अर्पित करें।
- चंद्र भगवान की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें- ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात। पूजा के बाद ही भोजन करें।
- ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर चंद्रदेव की सभी रीति रिवाजों से पूजा करता है, उसे अनंत सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
- चंद्र दर्शन पर दान देना भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। लोग इस दिन ब्राह्मणों को कपड़े, चावल और चीनी समेत अन्य चीजों का दान करते हैं।
चंद्र दर्शन का महत्व
- पौराणिक कथाओं में, चंद्र देव या चंद्रमा के हिंदू भगवान को सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक माना जाता है। वह एक महत्वपूर्ण 'ग्रह' या 'नवग्रह' का ग्रह भी है, जो पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है।
- चंद्रमा भगवान को पशु और पौधों के जीवन के पोषणकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। उनका विवाह 27 नक्षत्रों से हुआ है, जो राजा प्रजापति दक्ष की बेटियां हैं और ये बुध ग्रह के पिता भी हैं। इसलिए सफलता और सौभाग्य के लिए चंद्रमा की पूजा करते हैं।
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