सार
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2022) कहते हैं। कुछ धर्म ग्रंथों में इसे हरिशयनी एकादशी भी कहा गया है। इस बार ये एकादशी 10 जुलाई, रविवार को है। धर्म ग्रंथों में इस तिथि का विशेष महत्व बताया गया है।
उज्जैन. आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन से भगवान विष्णु 4 महीनों के लिए पाताल लोक में शयन करने जाते हैं और सृष्टि का संचालन महादेव के हाथों में होता है। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि नहीं किए जाते। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू होते हैं, जिसका विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। देवशयनी एकादशी से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं। आगे जानिए देवशयनी एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
देवशयनी एकादशी के शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी का आरंभ 09 जुलाई, शनिवार को शाम 04.39 से हो रही है, जो 10 जुलाई को दोपहर 02.13 तक रहेगी। एकादशी की उदया तिथि 10 जुलाई, रविवार को होने से इसी दिन देवशयनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। देवशयनी एकादशी पारणा का शुभ मुहूर्त 11 जुलाई, सोमवार को सुबह 05.56 से 08.36 के बीच है।
इस विधि से करें देवशयनी एकादशी का व्रत (Devshayani Ekadashi 2022 Vrat Vidhi)
- देवशयनी एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद पीले कपड़े पहनें और व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। मन में किसी भी प्रकार का विकार न आने पाए, इस बात का ध्यान रखें।
- इसके बाद एक चौकी पर भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को कुंकुम, चावल आदि चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और पीतांबर (पीला कपड़ा) भी अर्पित करें। व्रत की कथा सुनें।
- इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें। अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर भगवान विष्णु को शयन कराएं तथा स्वयं धरती पर सोएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करें। इसके बाद स्वयं पारणा करें।
- धर्म शास्त्रों के अनुसार यदि व्रती (व्रत रखने वाला) इस प्रकार देवशयनी एकादशी पर पूरे विधि-विधान से व्रत और पूजा करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू होते हैं। इन 4 महीनों में भगवान विष्णु की भक्ति के साथ-साथ चातुर्मास के नियमों का पालन भी करना चाहिए।
ये है देवशयनी एकादशी की कथा (Devshayani Ekadashi 2022 Katha)
देवशयनी एकादशी व्रत की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। उसके अनुसार, पौराणिक काल में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा थे। एक बार उसके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं हुई, जिसकी वजह से उनके राज्य में भंयकर अकाल पड़ गया। इस समस्या के समाधान के लिए राजा मांधाता ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे और उन्होंने पूरी बात बताई। तब ऋषि अंगिरा ने राजा मांधाता को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा। राजा मांधता ने विधि-विधान से ये व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता के राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और अकाल भी खत्म हो गया।
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