सार
इस बार 17 मार्च, गुरुवार की रात होलिका दहन (Holika Dahan 2022) किया जाएगा। इसके पहले शाम को महिलाएं होलिका की पूजा (Holi Puja Vidhi) करेंगी। ऐसी मान्यता है कि होलिका की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी तरह की कोई परेशानी नही होती।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, होली की पूजा करने से पुण्य मिलता है और घर में सुख-शांति के साथ धन-धान्य की भी कमी नहीं होती। होलिका की पूजा में कई तरह की खास चीजें चढ़ाई जाती हैं, जिनका विशेष महत्व होता है। इस बार भद्रा होने से होलिका दहन के समय को लेकर ज्योतिषियों मे मतभेद भी है। होलिका दहन वाले दिन को लोग छोटी होली भी कहते हैं। कुछ जगहों पर छोटी होली के दिन मां बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत भी रखती हैं। आगे जानिए होलिका पूजन की विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
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होलिका पूजन के शुभ मुहूर्त (Holi Puja 2022 Shubh Muhurat)
होलिका पूजन को लेकर भी ज्योतिषियों में मतभेद है। कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि भद्रा के दौरान होलिका पूजन नहीं करना चाहिए, जबकि कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि शास्त्र में भद्रा के दौरान होलिका दहन करने को लेकर मनाही है, लेकिन पूजा के संबंध में कुछ नहीं कहा गया, इसलिए शाम को परंपरानुसार होलिका की पूजा की जा सकती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार 17 मार्च, गुरुवार की शाम 6 से 7.30 तक प्रदोष काल में होलिका पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा।
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त (Holika Dahan 2022 Shubh Muhurat)
17 मार्च को भद्रा का योग दोपहर तकरीबन 1.30 से रात 1 बजे तक रहेगा। इस कारण शाम में गोधूलि बेला के समय भद्रा का प्रभाव होने से होलिका दहन नहीं किया जा सकेगा। इसलिए अगले दिन सुबह तक पूर्णिमा तिथि होने से रात मध्य रात्रि के बाद यानी रात 1 बजे के बाद होली जलाने का मुहूर्त रहेगा। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि भद्रा पूंछ में होलिका दहन किया जा सकता है। इसमें किसी भी तरह का कोई दोष नहीं होता है। ऐसे में गुरुवार की रात 09.20 से 10.31 के बीच होलिका दहन किया जा सकता है।
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पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (छोटे-छोटे उपलों की माला) आदि।
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इस विधि से करें होलिका पूजन (Holi 2022 puja Vidhi)
एक थाली में पूजा की सारी सामग्री लें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। इसके बाद होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-
ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।
अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलें-
ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे प्रमादी नाम संवत्सरे संवत् 2077 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि रविवासरे--गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना--(अपना नाम बोलें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।
गणेश-अंबिका पूजन
हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें-
ऊं गं गणपतये नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
अब भगवान गणपति को एक फूल पर रोली एवं चावल लगाकर समर्पित कर दें।
ऊं अम्बिकायै नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।।
मां अंबिका का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल एवं फूल चढ़ाएं।
ऊं नृसिंहाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
ऊं प्रह्लादाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और गंध, चावल व फूल चढ़ाएं। अब नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए होली के सामने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निवेदन करें-
असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:।।
अब गंध, चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले (भरभोलिए) होली के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें।
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