सार
Devi Kushmanda: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 29 अप्रैल, गुरुवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, मां कूष्मांडा ने अपने पेट से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया है, इसलिए इनका नाम कूष्मांडा है।
उज्जैन. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को यानी शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri 2022) के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इन देवी का रूप बहुत ही सौम्य है। इनकी भक्ति से लंबी उम्र, मान-सम्मान और बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। अनेक धर्म ग्रंथों में देवी की महिमा का वर्णन किया गया है। आगे जानिए किस विधि से करें देवी कूष्मांडा की पूजा, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त के बारे में…
ऐसा है माता का स्वरूप
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजी देवी भी कहा जाता है। इनके हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, कलश, चक्र और गदा है। आठवें हाथ में मंत्र जाप माला है। देवी कूष्मांडा का वाहन सिंह है। देवी दुर्गा का ये रूप बहुत ही सौम्य है। ऐसा कहा जाता है कि माँ कूष्मांडा की पूजा से भक्तों के सभी रोग और शोक मिट जाते हैं।
29 सितंबर, गुरुवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 6 से 7.30 तक- शुभ
सुबह 10.30 से दोपहर 12 तक- चर
दोपहर 12 से 01:30 तक- लाभ
दोपहर 01:30 से 03.00 तक- अमृत
शाम 4.30 से 6 बजे तक- शुभ
इस विधि से करें देवी कूष्मांडा पूजा (Devi Kushmanda Puja Vidhi)
29 सितंबर, गुरुवार की सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान आदि करें। इसके बाद किसी साफ स्थान पर गंगाजल छिड़कर उसे शुद्ध कर लें। देवी कूष्मांडा की तस्वीर या प्रतिमा वहां स्थापित करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। अब माता को कुंकुम, अबीर, गुलाल, चंदन, हल्दी, मेहंदी, चावल, फूल आदि चीजें चढ़ाएं। इसके बाद मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। आरती करने से पहले देवी के नीचे लिखे मंत्र का जाप करें-
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कूष्मांडा की आरती (Devi Kushmanda Arti)
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुंचती हो मां अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
ये है देवी कूष्मांडा की कथा (Devi Kushmanda Ki Katha)
अपने उदर यानी पेट से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को कूष्मांडा के नाम से पुकारा जाता है | मान्यता अनुसार, सिंह पर सवार माँ कुष्मांडा सूर्यलोक में वास करती हैं, जो क्षमता किसी अन्य देवी देवता में नहीं है। देवी को कुम्हड़े यानी कद्दू की बलि अति प्रिय है। कूष्मांडा देवी की पूजा से हर दुख दूर हो जाता है।
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