सार
Sharadiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन (27 सितंबर, मंगलवार) देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ये देवी दुर्गा का दूसरा स्वरूप है। इनकी पूजा करने से मन को शांति मिलती है। ये सफेद वस्त्र धारण करती हैं।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि (Sharadiya Navratri 2022) के 9 दिनों में रोज देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन यानी द्वितिया तिथि पर देवी ब्रह्मचारिणी (Devi Brahmacharini) की पूजा की जाती है। देवी पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक निराहार रहकर तपस्या की, जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। देवी का स्वरूप बहुत ही उज्जवल है। आगे जानिए देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व कथा…
ऐसा है देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ मे जप की माला है और बांए हाथ में कमंडल। ये सफेद वस्त्र धारण करती हैं जो शुद्ध मन का प्रतीक है। ये देवी गणेशजननी, नारायनी, विष्णुमाया आदि नामों से भी प्रसिद्ध हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होते हैं।
27 सितंबर, मंगलवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 09:00 से 10:30 तक- चर
सुबह 10:30 से दोपहर 12:00 तक- लाभ
दोपहर 12:00 से 01:30 तक- अमृत
दोपहर 03:00 से 04:30 तक- शुभ
ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा (Devi Brahmacharini Puja Vidhi)
- जहां पूजा करनी है, उस स्थान को पहले से साफ कर लें। यदि मंदिर में पूजा करनी है तो देवी ब्रह्मचारिणी की तस्वीर या प्रतिमा वहां स्थापित करें।
- प्रतिमा या चित्र पर जल छिड़कर शुद्धिकरण करें। इसके बाद देवी को कुंकुम, चावल, अबीर, गुलाल, रोली, मेहंदी, हल्दी, सुपारी, लौंग इलाइची आदि चीजें एक-एक करक चढ़ाते रहें।
- इसके बाद देवी को ईख (गन्ना) का भोग लगाएं। गन्ना न हो तो उससे बनने वाले पदार्थों जैसे गुड़ या शक्कर का भोग लगा सकते हैं।
- भोग लगाने के बाद आरती की तैयारी करें, लेकिन इसके पहले नीचे लिखे मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करें-
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ब्रह्माचारिणी देवी की आरती (Devi Brahmacharini Aarti)
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर। जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी।
ये है देवी ब्रह्मचारिणी की कथा (Devi Brahmacharini Ki Katha)
देवी पार्वती ने जब हिमालय और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया तो उन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए ब्रह्मदेव की कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें मनचाहा वरदान दिया। इसके बाद इन्होंने तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया। तपस्या कर ब्रह्मदेव के वरदान पाने के चलते ही इनका एक नाम ब्रह्मचारिणी प्रसिद्ध हुआ। नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जिससे सुख और अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है।
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