सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है और प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि (Shiv Chaturdashi June 2022) का पर्व मनाया जाता है।
उज्जैन. इस बार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 27 जून, सोमवार को है। इस दिन भी मासिक शिवरात्रि का व्रत और पूजा की जाएगी। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार 27 जून को 1-2 नहीं बल्कि 4 शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर अगर विधि-विधान पूर्वक व्रत और पूजा की जाए तो हर कामना पूरी हो सकती है। आगे जानिए शिव चतुर्दशी व्रत का महत्व, विधि शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
ये है शुभ मुहूर्त और शुभ योग (Shiv Chaturdashi June 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 27 जून, की सुबह 03.25 मिनट से होगी, जो अगले दिन 28 जून, मंगलवार की सुबह 05.52 तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर 27 जून, सोमवार को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाएगा। इस दिन वर्धमान, आनंद, सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि नाम के 4 शुभ योग इस दिन बन रहे हैं।
इस विधि से करें शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Shiv Chaturdashi June 2022 Puja Vidhi)
27 जून, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें, इसके बाद पूजा की तैयारी करें। इसके बाद घर के मंदिर में दीपक लगाएं और सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें। शिवलिंग पर गंगा जल और दूध चढ़ाएं। भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें। भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करें। शिवजी की आरती करें और भोग भी लगाएं। इस दिन भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करें। इस विधि से शिवजी की पूजा करें। इससे आपकी जीवन की परेशानियां दूर हो सकती हैं।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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