सार
ज्योतिष शास्त्र में अनेक शुभ और अशुभ योग बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है समसप्तक योग। समसप्तक योग दो या दो से अधिक ग्रहों के योग से मिलकर बनता है।
उज्जैन. जब भी कोई दो ग्रह एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं, तब उन ग्रहों के बीच समसप्तक योग बन जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब ग्रह आपस में अपनी सातवीं पूर्ण दृष्टि से एक-दूसरे को देखते हैं तब समसप्तक योग बनता है। जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
1. केंद्र त्रिकोण के ग्रहों के संबंध से यह योग बनने पर शुभ फल देने वाला होता है।
2. केंद्रेश त्रिकोणेश की युति में ग्रहों का आपसी नैसर्गिक रूप से संबंध भी शुभ होना जरूरी होता है।
3. इस योग की जैसी स्थिति कुंडली, लग्न आदि के द्वारा बनेगी वैसे ही इस योग के शुभ-अशुभ फल होंगे।
4. समसप्तक वैसे तो एक शुभ योग होता है, लेकिन शुभ-अशुभ ग्रहों की युति के कारण इसके शुभाशुभ फल में भी बदलाव आता है।
5. इस योग का फल इस बात पर निर्भर करता है कि यह किन ग्रहों की युतियों, किन लग्न और किन-किन ग्रह योगों से बन रहा है।
6. इस योग में ग्रहों की मैत्री, शत्रुता, समस्थिति, मारक, भावेश, अकारक, कारक भाव जैसी शुभ-अशुभ योग स्थिति मायने रखती है।
7. यह स्थिति जातक की कुंडली में बनने वाले समसप्तक योग की स्थिति पर निर्भर करेगी कि किस तरह की स्थिति से यह योग बन रहा है।