CRP Test: डॉक्टर अक्सर बीमारी का पता लगाने के लिए टेस्ट की सलाह देते हैं, जिनमें बहुत से ऐसे टेस्ट हैं, जिसके बारे में सभी को नहं पता कि इसका क्या मतलब है और ये क्यों करवाया जा रहा है। इन्हीं में से एक CRP Test भी है, जो अहम टेस्ट में से एक है।
What is CRP Test: डॉक्टर का सुझाया कोई भी टेस्ट हमारे शरीर में बीमारी या संक्रमण का पता लगाने के लिए होता है। ऐसे बहुत से टेस्ट हैं, जिसके बारे में आम लोगों को नहीं पता होता है कि ये क्या है और डॉक्टर ने इसे हमें करवाने के लिए क्यों कहा है। आज हम एक ऐसे ही टेस्ट के बारे में जानेंगे, जो बहुत आम है, लेकिन इसके बारे में हमें नहीं पता। जब हमारे शरीर में कहीं भी सूजन या संक्रमण होता है, तो हमारा शरीर उसका जवाब देने के लिए C-reactive protein (CRP) नामक एक खास प्रोटीन बनाता है। यह प्रोटीन लिवर में तैयार होता है और खून में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। CRP टेस्ट इसी प्रोटीन के लेवल को मापता है, जिससे पता चलता है कि शरीर के अंदर कहीं सूजन या इंफेक्शन तो नहीं हो रहा। दिल की बीमारी से लेकर आर्थराइटिस और यहां तक कि कुछ ऑटोइम्यून डिसऑर्डर तक, टेस्ट कई गंभीर बिमारियों का राज खोलता है।
दिल से जुड़ी बीमारियों में CRP Test का रोल

दिल की बीमारियों में सूजन का बड़ा रोल होता है। अगर शरीर में सूजन लगातार बनी रहती है, तो यह दिल की धमनियों को नुकसान पहुंचा सकती है और atherosclerosis (धमनियों में फैट का जमाव) का खतरा बढ़ा देती है। CRP टेस्ट से पता चलता है कि हार्ट संबंधी रोग का खतरा कितना अधिक है।
अगर आपका CRP लेवल लगातार 3 mg/L से ऊपर है, तो यह हार्ट अटैक या स्ट्रोक का संकेत हो सकता है। इसलिए डॉक्टर अक्सर High-sensitivity CRP (hs-CRP) टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, ताकि भविष्य में हार्ट डिजीज की संभावना को समय रहते समझा जा सके।
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जोड़ों की सूजन और आर्थराइटिस के लिए
अगर आपको जोड़ों में दर्द, सूजन या अकड़न रहती है, तो CRP टेस्ट बहुत जरूरी है। रुमेटॉइड आर्थराइटिस या लूपस जैसी बीमारियों में शरीर की इम्यून सिस्टम खुद पर हमला करता है, जिससे जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। CRP का लेवल इन बीमारियों में बढ़ जाता है और इससे पता चलता है कि इंफ्लेमेशन कितना एक्टिव है। इसके जरिए डॉक्टर यह भी समझ पाते हैं कि दवा असर कर रही है या नहीं।
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इंफेक्शन की पहचान
अगर शरीर में बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन है, तो CRP लेवल अचानक बढ़ सकता है। जैसे कि निमोनिया, सेप्सिस, मेनिनजाइटिस या टीबी जैसी बीमारियों में CRP लेवल हाई हो सकता है। यह टेस्ट डॉक्टर को बताता है कि इंफेक्शन कितना गंभीर है और इलाज असरदार हो रहा है या नहीं। आमतौर पर बैक्टीरियल इंफेक्शन में CRP ज्यादा बढ़ता है जबकि वायरल इंफेक्शन में इसका लेवल थोड़ा कम रहता है।
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर और सूजन संबंधी बीमारियां
कई बार शरीर की इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही टिश्यूज पर अटैक करने लगती है। जैसे लूपस, क्रोहन डिजीज या अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों में लगातार सूजन बनी रहती है। CRP टेस्ट इन बीमारियों की एक्टिविटी मॉनिटर करने में मदद करता है और यह जानने में भी कि कब बीमारी बढ़ रही है या कंट्रोल में है।
कब करवाना चाहिए CRP टेस्ट?
अगर आपको लगातार बुखार, थकान, सूजन, जोड़ों में दर्द, या दिल की समस्या जैसी शिकायत है, तो डॉक्टर CRP टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा यह टेस्ट उन लोगों के लिए भी जरूरी है जिनके परिवार में हार्ट डिजीज का इतिहास है या जो हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा या स्मोकिंग करता हो। सामान्य तौर पर CRP का लेवल 10 mg/L से कम होना चाहिए। इससे ज्यादा होने पर किसी बीमारी या सूजन की संभावना होती है, जिसकी जांच आगे करनी पड़ती है।
