Refined Flour Myths and Facts: रिफाइंड फ्लोर (मैदा) को लेकर कई मिथ और फैक्ट्स लोगों के मन में रहते हैं। जानिए क्या सच है – क्या मैदा पचता है? क्या यह अनहेल्दी है? क्या डायबिटीज पेशेंट इसे खा सकते हैं? यहां पढ़ें सही जानकारी।
Refined flour Myths Facts: रिफांइड फ्लोर या मैदे से एक नहीं बल्कि कई फूड्स और रेसिपीज तैयार की जाती हैं। बिना मैदे के भटूरा, पिज्जा, मोमोज आदि का स्वाद मानों कम हो जाता हो। मैदे को रिफाइंड फ्लॉर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह गेंहू के आटे से बनता है। इसके फाइबर बहुत कम मात्रा में हो जाते हैं, जिससे इसे अनहेल्दी आटे के रूप से भी जाना जाता है। मैदा खाने संबंधी समस्या जैसे कि वजन बढ़ना, पाचन खराब होना आदि देखने को मिलते हैं। हो सकता है कि आपके मन में भी मैदे को लेकर कई मिथ हो। आइए जानते हैं मैदे से संबंधित मिथ और फैक्ट के बारे में।
मिथ: मैदा आंतों में बुरी तरह से चिपक जाता है और पाचन नहीं होता है।
फैक्ट: यह लोगों के मन में आम धारणा रहती है कि आंतों में मैदा चिपक जाता है। जबकि ऐसा नहीं होता है। पानी डालने पर मैदा चिपचिपा हो जाता है। इसे देखने से लगता है कि यह पाचन तंत्र में भी जाकर चिपकता होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता। मैदा पका कर खाया जाता है, इसलिए यह आंतों में एंजाइम की मदद से डाइजेस्ट हो जाता है।
मिथ: मैदा शरीर के लिए बहुत अनहेल्दी होता है।
फैक्ट: ज्यादातर लोगों का मानना है कि मैदा स्वास्थ्य के लिए अनहेल्थी होता है और उसे बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। जबकि सच बात यह है कि गेहूं से बना मैदान रिफाइंड होता है। भले ही मैदे में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है लेकिन अगर इन्हें फाइबर युक्त सब्जियों के साथ खाया कम मात्रा में खाया जाए, तो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचता।
मिथ: मैदा सिंथेटिक आटा है।
फैक्ट: कई लोग के मन में यह बात भी आती है कि मैदा एक सिंथेटिक आटा है क्योंकि इसे रिफाइंड किया जाता है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैदा गेहूं को पीस कर और चोकर निकाल कर बनाया जाता है। मैदा पूरी तरीके से नेचुरल है और इसमे कोई भी केमिकल चेंज नहीं किया जाता।
मिथ: डायबिटीज पेशेंट्स को मैदा खाने से नुकसान नहीं पहुंचता है।
फैक्ट: मैदे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स गेहूं के मुकाबले ज्यादा होता है। मैदा खाने से ब्लड में शुगर का लेवल तेजी से बढ़ जाता है। डायबिटीज पेशेंट मैदा खा सकते हैं लेकिन बहुत कम मात्रा में।
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