सार

World autistic Pride day 2023: हर साल 18 जून को ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाया जाता है, लेकिन इस दिन को मनाने का कारण क्या है और कब से इसे मनाने की शुरुआत हुई आइए हम आपको बताते हैं।

हेल्थ डेस्क: ऑटिज्म एक ऐसी बीमारी है, जो बच्चे में जन्म से ही होती है। यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चे की सोचने, समझने, बोलने की क्षमता सामान्य बच्चों से कम होती है। दुनियाभर में ऑटिज्म के बढ़ते केसों को देखते हुए और इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 18 जून को दुनिया भर में ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाया जाता है। आइए आज हम जानते हैं इस दिन का इतिहास, महत्व और इस साल इसे मनाने की थीम...

क्या है ऑटिज्म

ऑटिज्म, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के रूप में भी जाना जाता है, एक न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर है, जो इंसान के तंत्रिका तंत्र पर असर करता है। ऑटिज्म से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को रोजमर्रा के काम करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासकर पीड़ित के बुद्धि, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

कैसे हुई World autistic Pride day की शुरुआत

साल 2005 में ब्राजील में ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाने की शुरुआत हुई। दरअसल, गैरीथ एंड एमी नेल्सन ने एस्पिस फॉर फ्रीडम (एएफएफ) में पहली बार ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाया था, जिसके बाद इसे पूरे दुनिया में मनाया जाने लगा। इसका उद्देश्य दुनियाभर के लोगों को ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के सपने, उनकी आकांक्षाएं और उनके महत्व के बारे में बताना है कि ऑटिस्टिक बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह ही होते हैं और इन बच्चों को अच्छा माहौल, बेहतर परवरिश उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है।

ऑटिस्टिक प्राइड डे 2023 थीम

नीले रंग को ऑटिज्म का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में ऑटिस्टिक प्राइड डे पर कई इमारतों को नीले रंग की रोशनी से सजाया जाता है। इस साल इस दिन की थीम  "ट्रांसफॉर्मिंग द नैरेटिव: कंट्रीब्यूशन्स एट होम, एट वर्क, इन द आर्ट्स एंड इन पॉलिसी मेकिंग " है। इसके साथ ही इस दिन लोगों से नीले कपड़े पहनने और अपने घरों या बिल्डिंग पर नीले रंग की रोशनी करने का आग्रह भी किया जाता है।

ऑटिज्म का कारण

ऑटिज्म एक अनुवांशिक बीमारी है। हालांकि, कुछ स्थिति में पर्यावरण के कारण भी यह बीमारी भी हो सकती है। दरअसल, जो लोग सड़क के आसपास घर बनाते हैं, ऐसी जगह पर रहने वालों के बच्चों को ऑटिज्म होने का खतरा दोगुना हो जाता है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को सामान्य बच्चों से ज्यादा केयर की जरूरत होती है, इसलिए पेरेंट्स को पहले उन्हें समझाना, उसके बाद बोलना सिखाना चाहिए और धीरे-धीरे उन्हें सोशल करना चाहिए। जितना हो सके उन्हें तनाव और शोर-शराबे के माहौल से दूर रखना चाहिए, क्योंकि इससे ये एग्रेसिव हो सकते हैं।

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