Parenting Myths: बच्चों को पालने के दौरान माता-पिता इतने सजग होते हैं कि वो उन बातों पर भी यकीन कर लेते हैं जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। बात करेंगे पैरेंटिंग मिथ की जिसे जानकर आप इसपर सोचना बंद कर सकते हैं।
Parenting Tips: माता-पिता का जीवन अक्सर अपने बच्चे के इर्दगिर्द ही घूमता है। वो उसकी देखभाल में वो तमाम चीजें करने लगते हैं जो एक मिथ यानी भ्रम के अलावा कुछ नहीं होता है। उन बातों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार भी नहीं होता है। यहां पर हम आपको बताएंगे 8 ऐसे पैरेंटिंग मिथ (Parenting Myths) जिस पर आंख मूंद कर भरोसा करना गलता है। इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
1. स्क्रीन टाइम पूरी तरह से बुरा है
हम हमेशा सुनते हैं कि स्क्रीन बच्चों के दिमाग को खराब कर रही हैं। लेकिन सच यह है कि सभी बच्चों के लिए कोई एक तय स्क्रीन टाइम लिमिट वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं हुई है।अहमियत इस बात की है कि बच्चे स्क्रीन पर क्या देख रहे हैं और किसके साथ देख रहे हैं। जैसे, किसी एजुकेशनल वीडियो को माता-पिता के साथ देखकर बच्चे की भाषा सीखने की क्षमता बेहतर हो सकती है। हां ये सच है कि बच्चों को ज्यादा देर स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए।
2. बच्चे को रोने देना मानसिक नुकसान होता है
'Cry-it-out' मेथड यानी बच्चे को रोने देना नींद सिखाने का एक तरीका है, लेकिन इसके खिलाफ जो डर है, वह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है।कुछ समय तक रोना बच्चे के लिए बुरा नहीं बल्कि फायदेमंद हो सकता है। कई शोध बताते हैं कि बच्चे धीरे-धीरे खुद सोना सीखते हैं, और इससे माता-पिता की मानसिक और शारीरिक सेहत भी सुधरती है।
3. अच्छे माता-पिता वे होते हैं जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ कुर्बान कर दें
हम अक्सर सोचते हैं कि पैरेंटिंग का मतलब है खुद को भुला देना। लेकिन सच्चाई ये है कि एक अच्छी नींद या मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना स्वार्थ नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। एक खुश और बैलेंस माता-पिता ही बच्चे के लिए बेहतर हो सकते हैं।
4. टेरिबल टूज (Terrible Twos) वाकई में भयानक होते हैं
दो साल की उम्र के बच्चे अक्सर चिड़चिड़े और जिद्दी लगते हैं। लेकिन यह दौर उनका स्वतंत्रता और खुद को व्यक्त करने का समय होता है।अगर माता-पिता समझदारी से सीमाएं तय करें और बच्चों की भावनाएं समझें, तो यह उम्र विकास के लिए बेहद जरूरी और खुशनुमा साबित हो सकती है।
5. दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए एजुकेशनल स्क्रीन टाइम ठीक नहीं
AAP जैसी संस्थाओं की गाइडलाइंस महत्वपूर्ण हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि हर परिस्थिति में वह लागू हों।अगर कोई बच्चा किसी शैक्षणिक वीडियो को परिवार के साथ देखता है या दादा-दादी से वीडियो कॉल करता है, तो यह उसकी सोच और भाषा को बेहतर बना सकता है।
6. अगर आप बच्चे को नींद सिखाते नहीं हैं, तो वो कभी खुद नहीं सोएगा
हर बच्चा अंतत सोना सीख ही जाता है।नींद सिखाने के कई तरीके होते हैं , कुछ परिवार इसे करते हैं, कुछ नहीं।आपको वही तरीका अपनाना चाहिए जो आपके बच्चे और आपके परिवार के लिए सबसे सही लगे।
7. जेंटल पेरेंटिंग का मतलब है बच्चों को 'ना' कभी ना कहना
यह सबसे बड़ा भ्रम है। जेंटल पैरेंटिंग का मतलब है प्रेम, समझ और सम्मान के साथ स्पष्ट सीमाएं तय करना।बच्चों को 'ना' सुनना और जिम्मेदारी समझना जरूरी है, ताकि वे असली दुनिया का सामना कर सकें।
8. कामकाजी माता-पिता बच्चों को नुकसान पहुंचाते हैं
आज अधिकतर फैमिली में माता-पिता दोनों काम करते हैं। इससे बच्चे जल्दी आत्मनिर्भर बनते हैं और उनमें सामाजिक कौशल भी बेहतर होता है।कामकाजी माता-पिता बच्चों को मेहनत, अनुशासन और समय का सही महत्व सिखाते हैं।
