सार

यह कहानी मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक गांव में रहने वाली 65 साल की विधवा महिला की है। इसकी गवाही पर बेटे को हत्या के आरोप में उम्रकैद हुई है। बेटे ने बेवजह के शक में अपनी पत्नी को मार डाला था। वो 2 साल से उम्रकैद की सजा भुगत रहा है। पति पिछले साल चल बसे। अब घर में वो और उसके दो छोटे पोते हैं। बुजुर्ग को कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती थी। न किसी योजना का लाभ। लेकिन जब बात मीडिया के जरिये अफसरों तक पहुंची, तो बूढ़ी अम्मा की मदद हो गई।

 

सागर, मध्य प्रदेश. न्याय की खातिर अपने बेटे को उम्रकैद कराने वाली एक मां के लिए जिंदगी कठिन हो गई थी। पति की मौत के बाद दो पोतों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उसके कंधे पर थी। बेटा अपनी पत्नी के मर्डर के इल्जाम में सजा भुगत रहा है। लेकिन मीडिया की पहल पर बुजुर्ग की हालत प्रशासन के सामने आई और अब अफसर उसकी मदद को आगे आए हैं। यह कहानी मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक गांव में रहने वाली 65 साल की विधवा महिला की है। इसकी गवाही पर बेटे को हत्या के आरोप में उम्रकैद हुई है। बेटे ने बेवजह के शक में अपनी पत्नी को मार डाला था। वो 2 साल से उम्रकैद की सजा भुगत रहा है। पति पिछले साल चल बसे। अब घर में वो और उसके दो छोटे पोते हैं। बुजुर्ग को कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती थी। न किसी योजना का लाभ। लेकिन जब बात मीडिया के जरिये अफसरों तक पहुंची, तो बूढ़ी अम्मा की मदद हो गई।

अफसर ने उठाई एक पोते की जिम्मेदारी..
नीमा बाई सागर जिले के मालथौन ब्लॉक के मड़िया कीरत गांव में रहती हैं। छत के नाम पर सिर्फ एक झोपड़ी है। बुजुर्ग और पढ़ी-लिखी न होने से ये सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रही थीं। जिंदगी जैसे-तैसे कट रही थी। वे बताती हैं कि पति की पिछले साल मौत हो गई। 2 साल पहले बहू की हत्या के आरोप में बेटे को उम्रकैद हो गई। गवाही इस बूढ़ी मां और उसके पोतों ने दी थी। पोते अभी छोटे हैं। जब इनकी कहानी अफसरों तक पहुंची, तो उन्होंने मदद का बीड़ा उठाया। खुरई की एक मजिस्ट्रेट ने बड़े पोते की पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा उठाया। उसे गोद लिया। वो एक छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहा है। वहीं, 8 साल का पोता उनके साथ ही रहता है। 

हां, मैंने बेटे को सजा दिलाई..
नीमा बाई कहती हैं कि उन्होंने ही अपने बेटे को सजा दिलाई। यह और बात है कि उसके बाद उनका जीवन अभावों में गुजरने लगा। घर में कोई कमाने वाला नहीं होने से रोटी का संकट खड़ा हो गया। उन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा था। उन आवास योजना और खाद्यान्न। बैंक का खाता भी बंद हो गया था। वृद्धावस्था पेंशन पर रोक लगी हुई थी। सालभर से वे परेशान थीं। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। लेकिन अब सब ठीक होने की स्थिति में है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के एसीएस मनोज श्रीवास्तव ने मंगलवार को जिला पंचायत के सीईओ डॉ. इच्छित गढ़पाले को नीमाबाई की मदद करने को कहा। इसके बाद अफसर सक्रिय हुए और नीमा बाई के घर पहुंचे। एक दिन में ही नीमा बाई का बैंक खाता खुल गया। घर के लिए नींव डलना शुरू हो गई।

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