CDS जनरल अनिल चौहान ने कहा कि भारत को आतंकवाद और पड़ोसी देशों से जुड़े जमीनी विवादों के कारण शॉर्ट-टर्म हाई इंटेंसिटी और लॉन्ग-टर्म संघर्षों के लिए तैयार रहना होगा। भविष्य में मल्टी-डोमेन वॉरफेयर अनिवार्य होगा।
नई दिल्ली। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) बॉम्बे में कहा कि भारत को आतंकवाद को रोकने और अपने पड़ोसियों के साथ क्षेत्रीय विवादों के चलते शॉर्ट-टर्म हाई इंटेंसिटी संघर्षों और लॉन्ग-टर्म संघर्षों के लिए तैयार रहना चाहिए। हालांकि, जनरल चौहान ने पाकिस्तान, बांग्लादेश या चीन जैसे देशों का नाम न लेते हुए संकेत दिया कि भारत का अपने पड़ोसियों के साथ जमीनी विवाद है। ऐसे में हमें वहां से आने वाले हर तरह के खतरों और चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए।
भारत को किस तरह की चुनौतियों के लिए तैयार रहने की जरूरत?
“भारत को किस तरह के खतरों और चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए? इस पर बोलते हुए CDS जनरल अनिल चौहान ने कहा, यह दो बातों पर आधारित होना चाहिए। हमारे दोनों दुश्मन - एक न्यूक्लियर हथियार वाला देश है और दूसरा न्यूक्लियर आर्म्ड देश है, इसलिए हमें प्रतिरोध के उस स्तर का उल्लंघन नहीं होने देना चाहिए।” CDS जनरल अनिल चौहान ने आगे कहा, "हमें आतंकवाद को रोकने के लिए कम समय वाले, ज्यादा तीव्रता वाले संघर्षों से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसे कि ऑपरेशन सिंदूर। हमें जमीन से जुड़े, लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि हमारे जमीनी विवाद हैं। फिर भी, हमें इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए।"
मॉर्डर्न युद्ध के बारे में क्या बोले जनरल चौहान?
आधुनिक युद्ध के बारे में बात करते हुए जनरल चौहान ने कहा कि यह मिलिट्री मामलों में तीसरी क्रांति के मोड़ पर है और उन्होंने इसे कन्वर्जेंस वॉरफेयर बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम, एज कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक, एडवांस्ड मटेरियल, रोबोटिक्स जैसी कई अलग-अलग टेक्नोलॉजी का युद्ध के नेचर और कैरेक्टर पर असर पड़ता है, जबकि पहले टेक्नोलॉजी कम थीं।
भविष्य में मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस की जरूरत
उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में, मल्टी-डोमेन ऑपरेशन एक विकल्प होने के बजाय जरूरत बन जाएंगे, क्योंकि एक डोमेन का दूसरे डोमेन पर असर पड़ेगा, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान साफ दिखा था। सिर्फ 4 दिन तक चले इस युद्ध में जिसमें भारत को निर्णायक जीत मिली। युद्ध के सभी डोमेन का एक साथ बहुत तेजी से इस्तेमाल किया गया। मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस के दौरान मल्टी-डोमेन क्षमताओं और सेना के अलग-अलग विंग्स - आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के बीच व्यापक को-ऑर्डिनेशन और कंट्रोल की जरूरत होगी। साथ ही साइबर फोर्स, स्पेस फोर्स और कॉग्निटिव डोमेन में काम करने वाली फोर्स की भी जरूरत होगी।


