सार
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में संक्रमण के लक्षण लगातार बदल रहे हैं। सर्दी, खांसी और बुखार संक्रमण के लक्षण माने जाते हैं, लेकिन वो व्यक्ति क्या करें, जिनमें ऐसे कोई लक्षण न हो और वो कोरोना पॉजिटिव निकल जाए। जी हां। कोरोना में ऐसे कई केस सामने आए हैं।
लखनऊ. कोरोना महामारी की दूसरी लहर में संक्रमण के लक्षण लगातार बदल रहे हैं। सर्दी, खांसी और बुखार संक्रमण के लक्षण माने जाते हैं, लेकिन वो व्यक्ति क्या करें, जिनमें ऐसे कोई लक्षण न हो और वो कोरोना पॉजिटिव निकल जाए। जी हां। कोरोना में ऐसे कई केस सामने आए हैं।
Asianetnews Hindi के विकास कुमार ने ऐसी ही एक महिला से बात की, जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं दिखा, लेकिन धीरे-धीरे संक्रमण हावी होता रहा। ये हैं यूपी के आजमगढ़ जिले की उषा देवी। कोरोना संक्रमण को खत्म करने के लिए इन्होंने क्या-क्या किया? 7 दिन तक कैसे हॉस्पिटल में गुजारे? हॉस्पिटल से आने पर क्या-क्या सावधानी रखी? ये सब सीख देनी वाली बातें हैं।
कोरोना से जीतने वालों की कहानियों की 10वीं कड़ी में उषा देवी के बारे में बताते हैं, जिन्होंने हॉस्पिटल में रहकर वायरस को मात दी।
'मेरा नाम उषा देवी है। यूपी के आजमगढ़ जिले की रहने वाली हूं। हाउस वाइफ हूं। बात 19 अप्रैल की है। मुझे हल्की-हल्की थकान लग रही थी। मुझे लगा कि काम की वजह से है, कुछ देर आराम करने पर सही हो जाएगा। लेकिन 3 से 4 घंटे सोने के बाद भी लग रहा था कि शरीर में जान ही नहीं है। कई बार पानी पिया। काढ़ा पिया। सोचा कुछ एनर्जी आएगी लेकिन कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। यही सब करने में एक दिन बीत गया। अगले दिन लोकल डॉक्टर से कुछ दवाएं ली। दो दिन दवा खाई लेकिन कोई फर्क नहीं दिखा।'
'कोविड एक्सपर्ट ने कहा- तुरन्त किसी कोविड हॉस्पिटल में भर्ती हो जाएं'
दो दिन दर्द के बाद तीसरे दिन 98-99 डिग्री बुखार आया। फिर मैंने सोचा कि किसी कोरोना एक्सपर्ट डॉक्टर को दिखाना ही ठीक रहेगा। मैं डॉक्टर के पास गई। वहां डॉक्टर ने मेरा सीटी स्कैन और ब्लड टेस्ट कराने के लिए कहा। उसी दिन मैंने सीटी स्कैन और ब्लड टेस्ट कराया। सीटी स्कोर 13 था। ब्लड में भी संक्रमण था। रिपोर्ट में सीआरपी 55 था। डॉक्टर के पास दोबारा रिपोर्ट लेकर गई तो उन्होंने कहा कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। तुरन्त किसी कोविड हॉस्पिटल में भर्ती हो जाना चाहिए।
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'मेरी किस्मत अच्छी थी कि उसी दिन 10 मरीज डिस्चार्ज हुए थे'
डॉक्टर के कहने पर मैंने शहर के कोविड हॉस्पिटल में बात की, लेकिन कहीं पर भी बेड खाली नहीं था। एक प्राइवेट हॉस्पिटल में फोन किया। मेरी किस्मत अच्छी थी कि वहां कुछ ही देर पहले 10 कोविड मरीजों को डिस्चार्ज किया गया था। मुझे वहां बेड मिल गया। 10 ही मिनट में वहां के बाकी खाली बेड भी भर गए। यानी मैंने जरा भी देर की होती तो भर्ती होना भी मुश्किल हो जाता।
'हॉस्पिटल में नहीं आ सकता था कोई परिजन, मोबाइल रख सकते थे'
हॉस्पिटल में भर्ती तो हो गई, लेकिन अंदर से बहुत डर रही थी। घर का कोई व्यक्ति भी साथ नहीं था। अगल-बगल के बेड पर कोरोना के मरीज थे। पूरा हॉस्पिटल ही कोविड मरीजों का था। मुझे दो बेड छोड़कर एक मरीज पूरी-पूरी रात कराहता रहता था। मैं डर जाती थी। वहां घर का कोई परिजन भी नहीं आ सकता था। हां, मोबाइल रखने की इजाजत थी। मैं मोबाइल से ही सुबह-शाम घरवालों से बात करती थी, लेकिन डर कम नहीं होता था।
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'बाथरूम जाने पर अक्सर कम हो जाता था ऑक्सीजन लेवल'
हॉस्पिटल में मेरा ऑक्सीजन लेवल 85 से 90 के बीच रहता था, लेकिन जब भी मैं बाथरूम या ब्रश करने जाती थी, तब ऑक्सीजन और भी ज्यादा गिर जाता था। डॉक्टर से बात की तो उन्होंने कहा कि अभी जितना ज्यादा चलना-फिरना होगा ऑक्सीजन लेवल उतना ही ऊपर-नीचे होगा, इसलिए ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
'कुछ दवाएं ऐसी थी, जिन्हें लेने के बाद ठंडक लगने लगती थी'
हॉस्पिटल में कुछ दवाएं और इंजेक्शन ऐसे थे, जिन्हें लेने के बाद तेजी से ठंडक लगती थी। मुझे घर से कंबल तक मंगवाना पड़ा। इतना ही नहीं, बाथरूम न जाना पड़े, इसके लिए डॉक्टरों ने थैली लगा दी। क्योंकि ऑक्सीजन लेवल मेंटेन करना सबसे जरूरी था।
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'हॉस्पिटल में भी मैं पांच बार भाप जरूर लेती थी'
संक्रमण खत्म करने के लिए भाप लेना बहुत जरूरी है। मैं दिन में चार से पांच बार भाप लेती थी। इस दौरान हॉस्पिटल की नर्सों ने बहुत सहयोग किया। वे बार-बार भाप मशीन का पानी बदल देती थीं। मुझे उठना नहीं पड़ता था। भाप लेने के बाद काफी राहत भी महसूस होती थी। इस दौरान नर्सों से मैं बार-बार पूछती थी कि मुझे डिस्चार्ज कब करेंगे। वे कहती कि जब ऑक्सीजन लेवल मेंटेन हो जाएगा तब छोड़ देंगे।
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'बेटा-बेटी बोलते थे, घबराना मत मां, जल्दी ठीक हो जाओगी'
हॉस्पिटल से लगातार मैं अपने बेटे-बेटियों से बात करती थी। वे एक ही बात कहते थे कि घबराना मत। सब ठीक हो जाएगा। इस दौरान मैं अपने बच्चों से दूसरे मरीजों के बारे में बताती थी। उन्हें बताती कि रात में कैसे एक मरीज चिल्लाता रहा। उसकी हालत बहुत खराब थी, लेकिन वो जल्द ही डिस्चार्ज हो गया।
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'पुराने कपड़े और कंबल घर नहीं ले गई, बाहर ही फेंक दिया'
हॉस्पिटल में एक-एक दिन काटना पहाड़ सा लगता था। लेकिन धीरे-धीरे वो दिन भी आया जब, डॉक्टरों ने कहा कि अब आप घर जा सकती हैं। मैंने फोन पर अपने बच्चों से बात की। बेटे ने कहा कि मैं आ रहा हूं। वो घर से ही मेरे लिए एक साड़ी ले आया। हॉस्पिटल के गेट पर ही दाई से साड़ी बदलवा दी। हॉस्पिटल वाली साड़ी को वहीं पर छोड़ दिया। हॉस्पिटल में जिस कंबल का इस्तेमाल किया था उसे घर नहीं ले गया। उसे भी फेंक दिया। यानी मेरे साथ हॉस्पिटल में रहने के दौरान जो-जो चीजें थी कुछ भी घर लेकर नहीं आई। सबकुछ बाहर ही छोड़ दिया क्योंकि मैं 7 दिन तक कोविड हॉस्पिटल में थी वहां रखी सामानों में वायरस के होने का डर था।
'हॉस्पिटल से आने से पहले पूरा घर सैनेटाइज कराया गया था'
हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने से पहले बेटे ने पूरे घर को सैनिटाइज करा दिया था। जब मैं घर आई तो बाथरूम में नई बाल्टी और जग का ही इस्तेमाल किया। ब्रश भी नया था। संक्रमण से पहले की कोई चीज नहीं रखी। डॉक्टर ने कहा था कि आप भले ही हॉस्पिटल से घर जा रही हैं लेकिन अभी घर पर क्वारंटाइन रहना होगा। अभी सिर्फ ऑक्सीजन का लेवल ठीक हुआ है, लेकिन कमजोरी बहुत ज्यादा होगी। इसलिए खाने-पीने का विशेष ध्यान दें। आराम करें।
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