सार

देश इस समय कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहा है। हर राज्य, शहर, कस्बा...और अब तो गांवों में भी मरीज मिल रहे हैं। स्थितियां डरावनी हैं, लेकिन हौसलों के बूते लोग कोरोना से युद्ध जीत रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार रिकवरी रेट अच्छी हो रही है। कोरोना को हराने के लिए सकारात्मक सोच और आत्मबल जरूरी है। पढ़िए ऐसी ही तीन पीढ़ियों की कहानी, जिन्होंने कोरोना को हराया...

भोपाल, मध्य प्रदेश. किसी भी मुसीबत या संकट के समय इंसान के आत्मबल का आकलन होता है। यह समय भी ऐसा ही चल रहा है। कोरोना संक्रमण एक वैश्चिक महामारी (Global epidemic) है। इससे कोई भी देश अछूता नहीं है। इस महामारी ने लोगों में डर का माहौल पैदा कर दिया है। लेकिन यह हम सब जानते हैं कि इस बीमारी से कहीं ज्यादा उसका डर लोगों के अंदर घर कर चुका है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में यह डर कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। जैसे ही कोई संक्रमित होता है, वो इतना डर जाता है कि बीमारी से लड़ने की इच्छाशक्ति ही खत्म हो जाती है। लेकिन याद रहे किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए आत्मबल बनाए रखना जरूरी है। यानी कोरोना को हराने का सिर्फ एक ही फॉर्मूला है, वो है-पॉजिटिव सोच। अगर आप पॉजिटिव हैं, तो कोरोना हो या कोई दूसरी बीमारी आप पर हावी नहीं हो सकती है।


Asianetnews Hindi के अमिताभ बुधौलिया ने मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के शोभापुर के रहने वाले प्रशांत दुबे से बात की। युवा प्रशांत दुबे हाल में संक्रमित हुए थे। सिर्फ वे ही नहीं, उनके 76 वर्षीय पिता और उनका मासूम बेटा तीनों संक्रमित हो गए। सबसे बड़ी परेशानी उनके पिता शोभापुर में थे, प्रशांत कहीं और आइसोलेट और प्रशांत का बेटा मां के साथ भोपाल में। यह बेहद कठिन दौर था, लेकिन पॉजिटिव सोच ने सबको भला-चंगा कर दिया। बता दें कि प्रशांत दुबे और उनकी पत्नी रोली भोपाल में बच्चों के लिए एक NGO चलाते हैं। पढ़िए प्रशांत दुबे की कहानी, शब्दश:...

पहली कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 2 दिन बुरे बीते, फिर आया यूटर्न...क्योंकि रोल मॉडल जो मिल गया था

दूसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने यूं जीती जंगः 3 सबक से देश के पहले जर्नलिस्ट ने वायरस की बजा डाली बैंड

तीसरी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 20 Kg वजन कम हुआ फिर भी 60 साल के बुजुर्ग से हार गया वायरस

चौथी कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः दवाई के साथ आत्मबल बढ़ाने-वायरस को हराने किए 2 और काम

पांचवी कड़ी: कोरोना से लोगों ने कैसे जीती जंगः वायरस हावी ना हो, इसलिए रूटीन को स्ट्रॉन्ग, क्वारंटाइन को बनाया इंट्रेस्टिंग

छठीं कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः डरा-सहमा लेकिन जीता क्योंकि मुझे मिला डबल पॉजिटिव वाला डोज

सातवीं कड़ी-कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः परिवार में 4 लोग, 3 कोरोना पॉजिटिव...54 साल पर भारी पड़े वो 14 दिन
 

तीन पीढ़ियों की कोरोना से जंग, जीती संग-संग
हुआ यूं कि गांव (शोभापुर, जिला-होशंगाबाद) पर सबसे पहले पापा (पीडी दुबे) को कोरोना ने जकड़ा। जब उनका बुखार न उतरा, हम भी गांव पहुंचे। गांव में RTPCR टेस्ट की कोई संभावना नहीं थी। जो व्यक्ति जीवन के 76 वर्ष तक हमेशा सक्रिय रहा, उन्हें आइसोलेशन में रखना बड़ी चुनौती थी, पर पापा शुरुआती न नुकुर के तैयार हो गए। पापा मानसिक रूप से बहुत मजबूत रहे।

भाई विकास, जो इस समय शोभापुर में देवदूत की भूमिका में ही हैं, ने सलाह दी कि पापा का सिटी स्कैन करा लिया जाए। होशंगाबाद से सीटी स्कैन कराया, तो पता चल गया कि पापा को इंफेक्शन है। पत्नी रोली शिवहरे और बहन सुविधा ने भोपाल में पापा की रिपोर्ट्स डॉक्टर्स को रिपोर्ट दिखाई, तो इलाज शुरू। शोभापुर में मधुर जाजू ने हर सम्भव दवा उपलब्ध कराई। इसी जद्दोजहद में कोरोना ने मुझे भी जकड़ा। शोभापुर में ही 4-5 दिन बुखार न उतरा, 103 तक बुखार हो आया। होशंगाबाद जाकर सिटी स्कैन कराया, तो पता चला कि इंफेक्शन तो है। बुखार, फिर भी न उतरा तो बाद में हम भोपाल लाए गए। कोरोना पकड़ बना चुका था, तो यहां ईलाज नए सिरे से शुरू हुआ। कुछ ही दिनों में रोली ने बताया कि हमारे सुपुत्र राग बाबू को भी भोपाल में बुखार है। जांच हुई, तो वे भी कोरोना पॉजिटिव निकले। डॉक्टर ने कुछ सावधानियों के साथ रोली को राग के साथ ही रखा।
 
अब तीनों पीढ़ियां कोरोना से जूझ रही थीं। पापा शोभापुर में, राग अपनी मां रोली के साथ घर (भोपाल) में और मैं किसी तीसरी जगह पर। पर गनीमत रही कि किसी को भी अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी। सभी होम आइसोलेशन में ठीक हुए। कोरोना ने और बुखार ने कमजोरी बहुत छोड़ी है, जो कि धीरे-धीरे जाएगी। पर आप सबकी दुआओं और परिजनों (शोभापुर में दोनों भांजियों एकता अवस्थी, अंकिता अवस्थी, बड़ी दीदी अनिता अवस्थी, भोपाल में रोली,  रोली की मां सुषमा, बहन रिचा शिवहरे और भाई  अजय के साथ रोली के पापा राममोहन की देखरेख ने सबको ठीक कर दिया। 

तमाम चिकित्सक गण जो साथ बने रहे, उनका भी आभार। इस प्रसंग ने बहुत से पाठ पढ़ाए।

  1. खुद पर भरोसा रखें, घबराएं नहीं। कोरोना दिमाग पर ज्यादा असर करता है। यानी यह मनोवैज्ञानिक तरीके से भी तोड़ता है। इस घबराहट में कई बार हम पल्स आक्सीमीटर उल्टा पढ़ लेते हैं जैसे 98 का 89 या 97 का 79,और फिर धुकर-पुकुर होने लगती है। 
  2. पहली बार यह समझ में आया कि हम सभी के घर (खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के) ऐसे बने ही नहीं हैं कि उनमें किसी को आइसोलेट किया जा सके। तो यह हमें नये मकान बनाते समय यह बात सोचनी चाहिए। 
  3. संभव हो तो फोन बंद रखें, नहीं तो लोग (उनके लिहाज से अच्छा होगा) व्हाट्सएप इंडस्ट्री के इतने सुझाव देते हैं कि पूछो मत। मेरा फोन विगत 24 दिन से बंद है। साथियों की असुविधा के लिये मुआफी।
  4. सोशल मीडिया से दूर रहें,नहीं तो हर तरह की खबरें हैं (नकारात्मक ज्यादा)..., वह आपको बहुत प्रभावित करती हैं खासकर अपने किसी के छोड़कर ही चले जाने की ..।
  5.  परिवार के साथ रहें, वही ताकत हैं। 

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona