सार

न्यूनतम समर्थन मूल्य(Minimum Support Price) मामले में सरकार से नाराज भारतीय किसान यूनियन आज ‘विश्वासघात दिवस’मना रही है। किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार पर भरोसा तोड़ने का आरोप लगाया है। किसान नेता का आरोप है कि सरकार ने वादे के बावजूद अब तक MSP पर कानून नहीं बनाया है।

नई दिल्ली. न्यूनतम समर्थन मूल्य(Minimum Support Price) मामले में सरकार से नाराज भारतीय किसान यूनियन आज ‘विश्वासघात दिवस’मना रही है। किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार पर भरोसा तोड़ने का आरोप लगाया है। किसान नेता का आरोप है कि सरकार ने वादे के बावजूद अब तक MSP पर कानून नहीं बनाया है। राकेश टिकैत ने कहा कि विश्वासघात दिवस पूरे देश में मनाया जाएगा। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार अपना वादा निभाए और जल्द से जल्द एमएसपी के लिए कानून बनाए। किसान नेता ने किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमे भी रद्द करने की मांग उठाई है। राकेश टिकैत ने एक tweet करके लिखा-'देश के किसानों के साथ वादाखिलाफी कर किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम किया गया है । किसानों के साथ हुए इस विश्वासघात से यह स्पष्ट है कि देश का किसान एक लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहें।'

9 दिसंबर को वापस हुआ था आंदोलन
राकेश टिकैत ने एक tweet करके लिखा-सरकार द्वारा किसानों से वादाखिलाफी के खिलाफ कल 31 जनवरी को देशव्यापी "विश्वासघात दिवस" मनाया जाएगा । सरकार के 9 दिसंबर के जिस पत्र के आधार पर आन्दोलन स्थगित किया गया था, सरकार ने उनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया है!

19 नवंबर,2021 को हुई थी कृषि कानून रद्द करने की घोषणा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने  गुरुनानक देवजी की 552वीं जयंती(Guru Nanak Jayanti 2021) पर 19 नवंबर को तीनों कृषि कानून(AgricultureBill) रद्द करने का ऐलान किया था।  इसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra singh Tomar) ने कृषि कानून समाप्त करने वाले विधेयक 2021 को दोनों सदनों में पेश किया। वहां से उन्हें रद्द कर दिया गया था।

26 नवंबर 2020 से चल रहा आंदोलन, 700 मौतें हुईं 
सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन की शुरुआत 26 नवंबर 2020 को हुई थी। उसके बाद किसानों ने एक साल तक दोनों ही बॉर्डर को अपना घर बनाए रखा। इनमें बहुत से किसान ऐसे हैं, जो आंदोलन के पहले दिन से ही यहां डटे रहे। एक दिन भी घर नहीं गए। ऐसे किसानों का मंच से सम्मान भी किया गया। किसान आंदोलन के दौरान करीब 700 किसानों की अलग-अलग वजहों से मौत भी हुई। हालांकि सरकार संसद में यह कह चुकी है कि उनके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।

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