ED-CBI चीफ चुनने को लेकर कमेटियों में सदस्यता तक, अपोजिशन लीडर के पास हैं कई बड़ी ताकत, 10 साल से खाली है पद
नरेंद्र मोदी ने रविवार की शाम प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस बार के चुनाव परिणाम के बाद लीडर ऑफ अपोजिशन के पद को लेकर भी कयासबाजी जारी है। यह कैबिनेट स्तर की पोस्ट है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पीएम मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार के मंत्रियों का शपथग्रहण रविवार को हुआ। इस बार के चुनाव में विपक्ष काफी मजबूती के साथ उभरा है। भले ही विपक्ष सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक विपक्ष न पहुंच सका हो लेकिन मजबूती जरूर मिली है। वहीं अब उम्मीद लगाई जा रही है कि नई सरकार में अपोजिशन लीडर का ओहदा भी भर सकेगा यह 2014 से खाली पड़ा है।
आपको बता दें कि लीडर ऑफ अपोजिशन एक कैबिनेट स्तर की पोस्ट है। यह पोस्ट काफी ताकतवर है। शुरुआत में यह कोई औपचारिक पोस्ट नहीं थी लेकिन उन्नीस सौ उन्हत्तर में अपोजिशन लीडर को आधिकारिक सहमति दी गई। इस पद पर बैठा हुआ नेता कैबिनेट मंत्री के बराबर वेतन, भत्ते और बाकी सुविधाओं का हकदार है। लीडर ऑफ अपोजिशन संसद में सिर्फ विपक्ष का चेहरा नहीं रहता बल्कि अहम कमेटियों का भी सदस्य होता है। वह कमेटियां जो कई सेंट्रल एजेंसियों के प्रमुख को चुनने का भी काम करती हैं। ईडी, सीबीआई, सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन के चीफ के चुनाव में भी अपोजिशन लीडर का सहयोग रहता है। गौरतलब है कि 10 साल पहले हुए चुनाव में यूपीए को भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए से करारी शिकस्त मिली थी। वह लोकसभा में सिर्फ 44 सीटों पर ही सिमटकर रह गई थी। वहीं नियम के अनुसार विपक्ष का नेता बनने वाली किसी भी पार्टी के पास लोकसभा में 10 प्रतिशत सीटें होनी चाहिए। कांग्रेस को 54 सीटों की जरूरत थी और यही कारण था कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से यह कहकर इंकार कर दिया था कि भले ही कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन उसके पास इस पद को भरने लायक पूरी संख्या नहीं है।