सार
भारत में 25 मई तक 196.4 मिलियन डोज वैक्सीन लगाई जा चुकी है। अगर दुनिया भर के वैक्सीनेशन के आंकड़ों की तुलना करें तो केवल अमेरिका ही भारत से अधिक डोज वैक्सीन लगवा चुका है।
अखिलेश मिश्र
नई दिल्ली। कोविड महामारी से निपटने के लिए भारत में जब वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया तो पूरी दुनिया का ध्यान अपने ही देश पर टिक गया। वजह विशाल जनसंख्या वाले देश में यह अभियान कैसे सही ढंग से संचालित हो सकेगा। दुनिया में सबसे अधिक वैक्सीन प्रोडक्शन करने वाला देश भारत कैसे वैक्सीनेशन की रणनीति पर कामयाब होगा यह सबके जेहन में रहा। लेकिन यह संभव हो सका। क्योंकि पीएम मोदी की सरकार पहले भी अपनी क्षमताओं का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सबको चैकाया था। इसलिए दुनिया की वैक्सीनेशन परिणाम पर उत्सुकता लाजिमी थी। भारत ने विशाल जनसंख्या के बावजूद अपने वैक्सीनेशन प्रोग्राम को कैसे बेहतर ढंग से संचालित किया इसको कुछ सवालों के जवाब से समझा जा सकता है।
क्या भारत में वैक्सीनेशन की गति ग्लोबल स्टैंडर्ड से धीमी है?
भारत में 25 मई तक 196.4 मिलियन डोज वैक्सीन लगाई जा चुकी है। अगर दुनिया भर के वैक्सीनेशन के आंकड़ों की तुलना करें तो केवल अमेरिका ही भारत से अधिक डोज वैक्सीन लगवा चुका है। लेकिन यह भी साफ है कि अमेरिका ने एक महीना पहले ही वैक्सीनेशन शुरू कर दिया था। हालांकि, इसके बावजूद भारत दुनिया में सबसे तेज गति से वैक्सीनेशन करने वाला देश है। क्योंकि भारत ने 114 दिनों में 170 मिलियन डोज लगवाए तो अमेरिका को 115 दिन लगे और चीन को 119 दिन लगे।
क्या भारत में टीकों की कमी है?
दुनिया के कुछ ही देश वैक्सीन का प्रोडक्शन कर रहे हैं। भारत भी उन चुनिंदा देशों में शुमार है। यहां दो कंपनियां वैक्सीन प्रोडक्शन पहले ही कर रही थीं अब तीसरी भी करने लगी है। भारत में एक वैक्सीन - भारत बायोटेक का कोवैक्सिन, पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित है। दूसरा, कोविशील्ड, भी भारत में निर्मित किया जा रहा है। हाल ही में एक तीसरी वैक्सीन स्पूतनिक का भी प्रोडक्शन शुरू हो गया। यह भी जानना होगा कि दुनिया में कहीं भी वैक्सीन का स्टाॅक नहीं है। ऐसे में हम भारत के लिए समय-सीमा पर वैक्सीन लगवाने में सफल हो रहे हैं तो यह कोई सामान्य बात नहीं है। वास्तविकता यह कि दुनिया भर में लगभग हर दूसरा देश भारत से खराब स्थिति में है। ऐसे में भारत का वैक्सीन स्टॉक दुनिया में सबसे ज्यादा है।
लेकिन भारत कवर की गई आबादी प्रतिशत में बहुत पीछे है?
कोरोना के कुछ मामलों और मौतों के संदर्भ में वैक्सीनेशन के आंकड़े पर सवाल उठाए जा सकते हैं। लेकिन दुनिया में वैक्सीन उत्पादन और अपने देश में इसके प्रोडक्शन का डेटा देखने और देश की आबादी को केंद्र में रखकर एनालिसिस करने पर सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा। तथ्य यह है कि देश में वैक्सीन प्रोडक्शन की क्षमता बहुत सीमित थी। पिछले दिनों इस क्षमता में लगातार बढ़ोतरी की जा रही है। अभी जनसंख्या के हिसाब से प्रोडक्शन को और तेजी से बढ़ाया जाना है। लेकिन एकदम अचानक से इसको बढ़ाया भी नहीं जा सकता। इसलिए, भारत की जनसंख्या के आकार को देखते हुए वैक्सीनेशन में थोड़ा समय लग सकता है। आंकड़ों को देखे तो भारत ने वैक्सीनेशन शुरू करने से लेकर अबतक 196.4 मिलियन डोज दे दिया है जबकि अगर चीन को माइनस करने के बाद पूरी दुनिया में 1135 मिलियन डोज दिया जा सका है। इसमें भारत का हिस्सा करीब 17.3 प्रतिशत है।
क्या भारत ने पर्याप्त टीकों का ऑर्डर पहले ही दे दिया था?
भारत खुद वैक्सीन प्रोडक्शन करने वाले देशों में शामिल था। पर्याप्त वैक्सीन का ऑर्डर देने या न देने का सवाल उन देशों के लिए प्रासंगिक है जो घरेलू स्तर पर निर्माण नहीं करते हैं। देश में स्पूतनिक-वी वैक्सीन को मंजूरी मिलने के पहले भारत में वैक्सीनेशन अभियान पूरी तरह से यहां के प्रोडक्शन पर ही चल रहा था। ऐसे में जब दूसरे देश वैक्सीन एक्सपोर्ट नहीं कर रहे हैं तो बिना एक्सपोर्ट की स्थिति देखे आर्डर करने का कोई मतलब ही नहीं है। उदाहरण के तौर पर कनाडा को लें। इसने सक्रिय रूप से 338 मिलियन शॉट्स का आदेश दिया, जो इसकी आबादी को 5 गुना अधिक वैक्सीनेशन करने के लिए पर्याप्त है। फिर भी, कनाडा वास्तव में कितनी खुराक देने में कामयाब रहा है? 24 मई, 2021 तक 21 मिलियन से अधिक।
भारत की नीति पर सवाल उठाने वालों के अनुसार केवल 116 मिलियन शॉट्स का ऑर्डर देने वाला भारत, अन्य तुलना में अधिक डोज लगवाने में कामयाब भी रहा। यहां 196 मिलियन डोज लगाई जा चुकी है। यह इसकी ऑर्डर की गई मात्रा का लगभग दोगुना और कनाडा से लगभग 10 गुना अधिक है। तथ्य यह है कि ऐसा तब हुआ है, जैसा कि मीडिया सूत्रों ने बताया है कि नोवावैक्स, एक कंपनी जिस पर भारत वैक्सीन खुराक का उत्पादन करने के लिए बैंकिंग कर रहा था, विभिन्न कारणों से देरी हुई है।
लेकिन भारत ने टीकों का निर्यात क्यों किया?
भारत ने अपने स्वयं के नागरिकों को 196.4 मिलियन से अधिक खुराक दी है, जबकि उसने विदेशों में लगभग 66 मिलियन वैक्सीन खुराक भेजी हैं। इसका मतलब यह है कि भारत के घरेलू वैक्सीन डोज प्रशासन पहले से ही इसके एक्सपोर्ट की तुलना में तीन गुना अधिक है। एक्सपोर्ट किए गए वैक्सीन में दस मिलियन तो फ्री में गरीब देशों को अनुदान के रूप में दिया गया। यह ऐसे देश थे जो संसाधन की कमियों से जूझ रहे हैं और इनकी मदद करना वैश्विक दायित्व है। 66 मिलियन डोज में 35 मिलियन डोज विभिन्न देशों से हुए करार को देखते हुए भेजा गया। इसमें 20 मिलियन डोज यूनाइटेड नेशन्स के कोवैक्स अभियान के तहत गरीब और संसाधन विहीन देशों के लिए भेजा गया। यह वैक्सीन डोज उस समय यानी फरवरी मार्च में भेजा गया जब हमारे फ्रंटलाइन वर्कर्स और हेल्थ वर्कर्स का वैक्सीनेशन हो रहा था। उस समय आम लोगों को वैक्सीन नहीं लगाया जा रहा था। जब अप्रैल में भारत को दूसरी लहर के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ा तो सरकार ने वैक्सीन का एक्सपोर्ट बंद कर दिया। एक्सपोर्ट बंद करने पर दुनिया के देश बुरा भी नहीं मानें क्योंकि वह समझ रहे थे कि भारत में स्थितियां खराब हो रही हैं और वैक्सीन की अधिक आवश्यकता है। यदि भारत ने दूसरी लहर से पहले ही इन टीकों को बाहर जाने से रोक दिया होता तो जब हम बहुत खराब दौर से गुजर रहे थे तो बहुत कम देश हमारी मदद के लिए आगे आते। भारत में वैक्सीन का प्रोडक्शन होता है लेकिन उसे विभिन्न देशों से कच्चे माल और अन्य चीजों की आवश्यकता होती है। यदि भारत वैक्सीन्स एक्सपोर्ट को बंद कर देता है तो क्या ऐसे देश अपने देशों से अन्य कच्चे माल को भारत भेजने की अनुमति देते। वैक्सीन मैत्री पर सवाल उठाने से पहले इसकी बारीकियों को भी समझना होगा।
घरेलू उत्पादन क्षमता में विस्तार के बारे में क्या?
कोविड वैक्सीन रिसर्च के दौरान एक साल पहले ही कहा गया था कि तय समय में एक तय क्षमता में ही वैक्सीन का उत्पादन हो सकता है। इसको एक तय समय में ही कई गुना बढ़ाया जा सकता है। लेकिन एकाएक मांग के अनुरूप प्रोडक्शन असंभव और वास्तविकता से अलग है।
तो, क्षमता विस्तार क्या रहा है?
प्रधान मंत्री मोदी ने सरकार को इन्वेस्टर्स, इनक्यूबेटर, इवैल्यूवेशन के साथ-साथ खरीदार की भूमिका निभाने का निर्देश दिया था ताकि उत्पादन को तेजी से बढ़ाया जा सके। उत्पादन को तेजी से बढ़ाने के लिए सभी निर्माताओं को वित्तीय, संस्थागत, नियामक और कानूनी सहायता प्रदान की गई। भारत की योजना जुलाई 2021 के अंत तक 510 मिलियन खुराक देने की है और इसके लिए आदेश पहले ही दिए जा चुके हैं। इस साल के अंत तक 216 बिलियन वैक्सीन का प्रोडक्शन हो जाएगा। 12 निजी और अन्य कंपनियों से वैक्सीन प्रोडक्शन के लिए करार किया गया है। एफडीए या डब्ल्यूएचओ से अप्रूव वैक्सीन को भी भारत में अनुमति देने के लिए फास्ट ट्रैक किया गया है।
टीकाकरण अभियान की वर्तमान स्थिति क्या है?
भारत का टीकाकरण अभियान साइंटिफिक प्रोटोकॉल और डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार आगे बढ़ा है। इसका उद्देश्य पहले मृत्यु दर को रोकना और फिर संक्रमण को रोकना है। 16 जनवरी से 1 फरवरी तक स्वास्थ्य कर्मियों को प्राथमिकता दी गई। 2 फरवरी से 28 फरवरी तक फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की प्राथमिकता थी। 1 मार्च से 60 वर्ष से ऊपर और 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन की अनुमति दी गई। 1 अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर के सभी पात्र बन गए और 1 मई से 18 वर्ष से ऊपर के सभी वैक्सीनेशन के लिए पात्र हैं। वैक्सीनेशन प्रक्रिया अब राज्यों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दी गई है। 46000 से अधिक सेंटर्स पर वैक्सीन लगाई जा रही। 25 दिनों में 18-44 वर्ष के बीच 28.6 मिलियन से अधिक लोगों को वैक्सीनेट कर दिया गया है। भारत सरकार ने यह तय किया है कि वह भारत में लगने वाले वैक्सीन का 50 प्रतिशत फ्री में उपलब्ध कराएगी और बाकी के 50 प्रतिशत राज्य व निजी अस्पताल खरीद सकेंगे।
आगे क्या?
वैक्सीन का देश में प्रोडक्शन जो पहले से तय है चल रहा है। कई विदेशी वैक्सीन कंपनियों से भी बातचीत चल रही है। इन कंपनियों को यूएसए के एफडीए या डब्ल्यूएचओ की अनुमति होने पर बिना किसी झंझट के देश में वैक्सीन लगाने या प्रोडक्शन की अनुमति दे दी जाएगी।
इस बीच, भारत बायोटेक को 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अपने कोवैक्सिन वैक्सीन के ट्रेल्स के लिए मंजूरी दे दी गई है।
भारत वैक्सीन प्रोडक्शन की क्षमता में बढोत्तरी के साथ ही देश में घातक वायरस पर काबू पाने के लिए वैक्सीनेशन में भी तेजी कर रहा है। दूसरी लहर की तीव्रता भी कम होने लगी है, ऑक्सीजन, अस्पताल के बिस्तर और आवश्यक दवा की आपूर्ति को स्थिर कर दिया गया है और सख्त रोकथाम के उपाय किए गए हैं। अगले कुछ हफ्तों के दौरान, उम्मीद है कि सबसे खराब समय खत्म हो सकता है।
(लेखक ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन, नई दिल्ली के सीईओ हैं. MyGov के डायरेक्टर (कंटेंट) रह चुके हैं.)
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