सार

SSLV को सफलतापूर्वक लॉन्च कर इसरो ने दुनिया के सामने नया लॉन्च व्हीकल पेश किया है। इसकी मदद से कम खर्च में हल्के उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाना संभव हुआ है। इससे इसरो को स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च मार्केट में बढ़त मिलेगी।

नई दिल्ली। इसरो (Indian Space Research Organization) ने शुक्रवार को कामयाबी की नई उड़ान भरी। इसरो का नया रॉकेट SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) तीन सैटेलाइट लेकर सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ।

SSLV को सफलतापूर्वक लॉन्च कर इसरो ने दुनिया के सामने नया लॉन्च व्हीकल पेश किया है। SSLV की यह दूसरी उड़ान है। इसे हल्के वजन वाले सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट (कम ऊंचाई वाली कक्षा) में स्थापित करने के लिए बनाया गया है। इससे PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) का लोड कम होगा। SSLV की मदद से कम खर्च में हल्के उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाना संभव हुआ है। इससे इसरो को स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च मार्केट में बढ़त मिलेगी।

SSLV अपने साथ 350 किलोग्राम से अधिक भारी तीन उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले गया है। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। लो अर्थ ऑर्बिट तक पहुंचने में रॉकेट को 15 मिनट लगे। रॉकेट का मुख्य पेलोड EOS-7 (Earth Observation Satellite-07) था। इसके साथ ही रॉकेट ने Janus-1 और AzaadiSAT-2 नाम के दो उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में पहुंचाया।

स्कूल की 750 छात्राओं ने तैयार किया है AzaadiSAT 2.0
सैटेलाइट AzaadiSAT 2.0 को तैयार करने में 75 स्कूलों की करीब 750 लड़कियों ने अहम रोल निभाया है। इसे 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बनाया गया है। केरल के चेरियम गवर्नमेंट हाई स्कूल, सेंट कॉर्नेलियस हायर सेकेंडरी स्कूल, मनकडा, मलप्पुरम, कोलायड और कन्नूर हाई स्कूल की छात्राओं ने उपग्रह तैयार करने में हिस्सा लिया है। कोडुन्गल्लूर अझिकोड केएम सेठी मेमोरियल स्कूल की 10 छात्राओं ने सैटेलाइट में इस्तेमाल की गई कोडिंग की है।

तीन स्टेज वाला रॉकेट है SSLV
SSLV तीन स्टेज वाला रॉकेट है। इसने इसरो की उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन किया। सभी की निगाहें लिक्विड प्रोपल्शन आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल पर थीं। इसका उपयोग टर्मिनल फेज में किया गया था। तीन स्टेज में रॉकेट उपग्रह को तैनात करने के लिए चुने गए 450 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा। इस दौरान रॉकेट का वीटीएम प्रज्वलित हुआ तब तीनों उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में तैनात किया गया।

SSLV का पहला लॉन्च हो गया था फेल
इसरो ने SSLV को अगस्त 2022 में पहली बार लॉन्च किया था। तब रॉकेट उपग्रह को कक्षा में तैनात करने में असफल हो गया था। SSLV का दूसरा प्रक्षेपण सफल रहा। लॉन्च के बाद इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि हमारे पास एक नया लॉन्च वाहन है। एसएसएलवी ने अपने दूसरे प्रयास में तीनों उपग्रहों को बहुत सटीक रूप से कक्षा में स्थापित किया है। एसएसएलवी की पहली उड़ान में गति में कमी के कारण हम चूक गए थे। इसके बाद समस्या का विश्लेषण किया गया और सुधार किया गया। रॉकेट के सिस्टम को बहुत तेज गति के योग्य बनाया गया है।

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यह है SSLV की मुख्य खासियत
इसरो की ओर से बताया गया है कि SSLV की मुख्य खासियत इसका कम खर्चीला होना है। इसे उपग्रह को लॉन्च करने के लिए कम वक्त में तैयार किया जा सकता है। इसे लॉन्च करने में कम इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। इसके साथ ही इससे एक बार में एक से अधिक उपग्रहों को आसानी से अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। SSLV का इस्तेमाल दुनिया भर के ग्राहकों द्वारा पृथ्वी से 500 किलोमीटर ऊपर छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए किया जा सकता है। यह 500 किलोग्राम वजन तक के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचा सकता है।

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