सार

हाल ही में हुए एक सर्वे की बात करें तो वह सजेस्ट करता है कि 91% भारतीय महिलाएं प्रसव से पहले या प्रसव के बाद अवसाद का अनुभव करती हैं। हालांकि इनमें से केवल 33% महिलाएं ही मेडिकल असिस्टेंस पाती हैं। यह खुलासा मायलो के एक हालिया सर्वेक्षण के बाद सामने आया है।
 

Indian Women's Status. हाल ही में किए गए मायलो सर्वेक्षण के बाद महिलाओं को लेकर कुछ सनसनीखेज खुलासे हुए हैं। इसमें यह बात सामने आई है कि बच्चा पैदा करने की उम्मीद करने वाली/नई माताओं में से 62% ने अपने जीवन के सबसे सुखद समय में तनावग्रस्त और खुद को चिंतित-उदास महसूस किया। इनमें से 34% माताओं को पता नहीं था कि उन्हें ऐसा क्यों महसूस होता है। जबकि 40% माताओं का मानना ​​था कि गर्भावस्था के दौरान/बाद में कम महसूस होना सामान्य बात है। रिसर्च रिपोर्ट की मानें तो लगभग 20% महिलाओं के लिए प्रसव के बाद तनाव या डिप्रेशन का असर 6 महीने या एक वर्ष से अधिक समय तक बना रहता है।

कब और कहां किया गया रिसर्च
नई और गर्भवती माताओं के लिए ITC एक तरह का मददगार प्लेटफॉर्म है। इसने हाल ही में प्रसवपूर्व (गर्भावस्था के दौरान) और प्रसवोत्तर (गर्भावस्था के बाद) के बारे में जागरूकता और प्रसार के बारे में एक सर्वेक्षण किया है। जिसमें यह पाया गया कि प्रसव के बाद भारत में महिलाओं में अवसाद ज्यादा होता है। 10 अक्टूबर को दुनिया भर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर यह सर्वे किया गया है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम  है कि 'सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य को वैश्विक प्राथमिकता बनाएं'। मायलो ने अपनी कम्युनिटी में 2000 महिलाओं का सर्वेक्षण किया, ताकि वे मानसिक स्वास्थ्य से गुजर रही महिलाओं के लिए उपलब्ध सामाजिक तरीकों का पालन कर सकें।ॉ

यह है सर्वे के नतीजे
सर्वेक्षण में शामिल लगभग 50% महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान या बाद में, कम, उदास, छिटपुट रोने की घटनाओं के साथ तेजी से मिजाज बदलने का अनुभव किया है। करीब 38% माताओं ने कहा कि वे तनावग्रस्त या चिंतित महसूस करती हैं। इसलिए माना जा सकता है कि उसके विपरीत इनमें से केवल 6% महिलाएं हीं परामर्श के लिए डॉक्टर या स्वास्थ्य पेशेवर के पास पहुंच पाई। यह भी सामने आया है कि केवल 9% महिलाओं ने यह कहा कि उन्हें कभी भी गर्भावस्था से संबंधित तनाव या उदासी का सामना नहीं करना पड़ा।

दबाव है बड़ा कारण
सर्वेक्षण में शामिल लगभग 34% माताओं ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्होंने अपने जीवन के सबसे सुखद चरणों में से एक के दौरान भावनाओं में इतना अचानक परिवर्तन क्यों महसूस किया। नतीजे बताते हैं कि नींद की कमी के कारण (18.5%) लोग प्रभावित हैं। इसके अलावा 20% महिलाओं ने साझा किया है कि प्रसवोत्तर अवसाद का प्रभाव 6 महीने से एक वर्ष से अधिक समय तक बना रहता है। यदि समय पर इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो यह गंभीर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पैदा कर सकता है जो प्रभावित नई माताओं को खुद को नुकसान पहुंचाने के जोखिम में डाल देता है।

क्या है मानसिक स्थिति
सर्वे में पाया गया है कि 55% महिलाओं का कहना है कि वे अपने साथी के साथ इन भावनाओं पर चर्चा करने में सहज महसूस करती हैं। जबकि 14% दोस्तों के साथ बात करने में आराम पाती हैं। लगभग 20% महिलाओं ने कहा कि वे अपने भावनात्मक उथल-पुथल के दौरान किसी पर विश्वास नहीं करती थीं। विशेष रूप से यह समझने के लिए कि किसी ने खुद को बंद करने और अपनी मानसिक या भावनात्मक भलाई के बारे में नहीं बोलने का क्या कारण है। सर्वेक्षण में इन महिलाओं से यह भी पूछा गया कि वे अपनी भावनाओं को साझा करने में असहज क्यों महसूस करती हैं। उनमें से 40% ने यह भी माना कि इन भावनाओं का अनुभव करना सामान्य था और इसलिए उन्होंने इसके बारे में बात नहीं की। 25% का मानना ​​​​था कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने के लायक नहीं था क्योंकि उनका मानना ​​​​था कि उनकी नकारात्मक/दुखी भावनाएं अंततः अपने आप गायब हो जाएंगी। लगभग 20% ने कहा कि किसी ने उनसे इस बारे में नहीं पूछा कि वे किस दौर से गुजर रहे हैं और इसलिए यह नहीं जानते कि इस विषय को कैसे लाया जाए। 18% ने कहा कि वे अपनी परेशानियों से दूसरों को परेशान नहीं करना चाहते हैं, जबकि 12% ने महसूस किया कि भले ही उन्होंने अपने मुद्दों का वर्णन किया, लेकिन उन्हें यकीन था कि अन्य उनकी मदद के लिए उपलब्ध नहीं होंगे।

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