सार
9 साल पहले आज के दिन ही निर्भया कांड के रूप में देश की राजधानी दिल्ली के चेहरे पर वो बदनुमा दाग लगा था, जिसे मिटा पाना संभव नहीं। इस कांड के बाद रेप की परिभाषा बदली गई। कानून सख्त हुआ।
नई दिल्ली। 9 साल पहले आज के दिन ही निर्भया कांड (Nirbhaya Case) के रूप में देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) के चेहरे पर वो बदनुमा दाग लगा था, जिसे मिटा पाना संभव नहीं। चलती बस में पांच बालिग और एक नाबालिग ने 23 साल की निर्भया के साथ हैवानियत का खेल खेला था। इस कांड ने देश को झकझोर दिया था। लोग सड़कों पर उतर आए थे। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कानून सख्त करने की मांग उठी थी। संसद में मामले की गूंज सुनाई दी। इस कांड के बाद रेप की परिभाषा बदली गई। कानून सख्त हुआ। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस जगदीश शरण वर्मा के सुझावों को मानते हुए सरकार ने आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम 2013 को लागू किया। यह संशोधन अधिनियम 3 फरवरी 2013 से प्रभाव में है।
कानून में हुए बदलाव
- आईपीसी की धारा 354 : संशोधन से पूर्व इस धारा के तहत किसी स्त्री की लज्जा भंग करने, हमला करने, आपराधिक बल प्रयोग करने पर दो वर्ष तक कैद की सजा का प्रावधान था।
- धारा 354 : संशोधन के बाद इसे विस्तार दिया गया और ए, बी, सी और डी उपधारा को जोड़ा गया।
- 354ए : महिलाओं के साथ होने वाले अपराध का पांच बिंदुओं पर सिलसिलेवार उल्लेख किया गया।
- 354बी : सार्वजनिक स्थल पर महिला को अपमानित करने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग करने में तीन वर्ष से कम नहीं और सात वर्ष तक की सजा हो सकेगी।
- 354सी : किसी महिला के अंतरंग दृश्यों को छिपकर देखना या कैमरे में कैद करने पर एक वर्ष कैद जो तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी। दूसरी बार आरोप साबित होने पर तीन वर्ष कैद को सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
- 354डी : महिला का पीछा करने पर एक वर्ष कैद जो तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी और जुर्माना लगेगा।
- आइपीसी की धारा 375: इसमें दुष्कर्म को परिभाषित किया गया था, जिसे संशोधन के बाद विस्तार दिया गया।
- धारा 376 : संशोधन से पूर्व इसमे दंड की व्यवस्था थी। संशोधन के बाद इसमें उपधाराएं जोड़कर विस्तारित किया गया है। पुलिस ऑफिसर, सरकारी कर्मचारी, सैन्यकर्मी, जेल के भीतर, अस्पताल, रिश्तेदार अभिभावक या अध्यापक द्वारा, दंगे के दौरान, गर्भवती महिला और 16 वर्ष से कम बालिका के साथ हुए दुष्कर्म की व्याख्या की गई है।
- 376ए : यदि किसी व्यक्ति ने दुष्कर्म का अपराध किया है जिससे महिला की मौत हो गई हो या वह कोमा में चली गई हो। ऐसी दशा में 20 साल से कम सजा नहीं होगी। इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
- 376बी : अलगाव में रह रही पत्नी के साथ बिना सहमति के दुष्कर्म पर पति को दो वर्ष की कैद जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
- 376सी : किसी व्यक्ति के विश्वास में रह रही महिला के साथ उस व्यक्ति द्वारा शारीरिक संबंध के लिए दबाव बनाने जो दुष्कर्म की परिभाषा में नहीं आता है, ऐसे किसी कृत्य के लिए पांच वर्ष तक कैद जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
- 376डी : सामूहिक दुष्कर्म करने पर 20 वर्ष से कम नहीं और आजीवन कारावास तक सजा होगी। जुर्माना की धनराशि इतनी हो जो महिला के चिकित्सा और पुनर्वास के लिए पर्याप्त हो।
- 376ई : दोबारा दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास।
नाबालिग आरोपियों के बारे में बदला कानून
निर्भया कांड में शामिल एक दोषी वारदात के वक्त नाबालिग था, जिसके चलते वह मौत की सजा से बच गया। आगे कोई दोषी इस तरह नहीं बच सके इसके लिए कानून बदला गया। 16-18 साल के अपराधियों को भी वयस्क अपराधियों की तरह देखने और सजा देने का फैसला किया गया। दुष्कर्म पीड़िता की मदद के लिए केंद्र सरकार ने 1 हजार करोड़ रुपए से निर्भया फंड की स्थापना की। इस फंड से दुष्कर्म पीड़ितों को राहत पहुंचाई जाती है और उनका पुनर्वास कराया जाता है। 20 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों ने पीड़ित मुआवजा योजना लागू कर दी है। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास के लिए स्वाधार और अल्पावास गृह योजना शुरू की।
निर्भया कांड ने पीड़ितों को न्याय के लिए लड़ने की हिम्मत दी। निर्भया कांड में पीड़ित परिवार ने सामने आकर लोगों से आह्वान किया था कि रेप पीड़ित या यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाली महिलाएं अपनी पहचान छिपाने के बदले उनका नाम उजागर करे, जिन्होंने उनके साथ ज्यादती की। इसके बाद कोर्ट में भी माहौल बदला। रेप पीड़िताओं को लेकर संवेदनशीलता बढ़ी।
चलती बस में किया था सामूहिक बलात्कार
बता दें कि 16 दिसंबर 2012 को एक छात्रा के साथ उसके एक मित्र की मौजूदगी में चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया और उन दोनो को ठिठुरती सर्द रात में बस से बाहर फेंक दिया गया। बाद में इलाज के लिए सिंगापुर ले जाई गई पीड़िता ने वहीं दम तोड़ दिया था। इस मामले की 23 वर्षीय पीड़िता को ‘‘निर्भया'' नाम दिया गया और देश में उसके लिए न्याय की मांग ने आंदोलन का रूप ले लिया। इस मामले में मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह सहित छह व्यक्ति आरोपी बनाए गए। इनमें से एक नाबालिग था। मामले के एक आरोपी राम सिंह ने सुनवाई शुरू होने के बाद तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। नाबालिग को सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया और उसे सुधार गृह भेज दिया गया। तीन साल तक सुधार गृह में रहने के बाद उसे 2015 में रिहा कर दिया गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार 20 मार्च 2020 को इस मामले के चार दोषियों को फांसी दी गई।
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