सार

पिछले वर्ष, 2020 के मार्च के बाद कोरोना महामारी(corona pandemic) के चलते देशभर में लॉकडाउन लगाना पड़ा था। तब देश के तमाम हिस्सों में वायु प्रदूषण(air pollution) में जबर्दस्त गिरावट आई थी। हवा एकदम शुद्ध हो गई थी। लेकिन एक ताजा रिसर्च ने सबको चौंका दिया है। उपग्रह द्वारा किए गए पर्यवेक्षण(satellite observation) से पता चलता है कि उत्तर भारत में(North India) में पॉल्युशन घटने के बजाय बढ़ गया।
 

नई दिल्ली. देश में वायु प्रदूषण (air pollution) का आकन करने उपग्रह द्वारा किए गए पर्यवेक्षण(satellite observation) की रिसर्च से चौंकाने वाला डेटा मिला है। रिसर्च से पता चलता है कि उत्तर भारत में (North India) में पॉल्युशन घटने के बजाय बढ़ गया। पिछले वर्ष, 2020 के मार्च के बाद कोरोना महामारी(corona pandemic) के चलते देशभर में लॉकडाउन लगाना पड़ा था। तब देश के तमाम हिस्सों में वायु प्रदूषण(air pollution) में जबर्दस्त गिरावट आई थी। हवा एकदम शुद्ध हो गई थी। लेकिन एक ताजा रिसर्च ने सबको चौंका दिया है।

इकोनॉमी डवाडोल हुई, लेकिन पॉल्युशन भी कम हुआ था
कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां कम होने से भारत के अधिकांश हिस्सों में वायु प्रदूषण में गिरावट आई थी, लेकिन उपग्रह द्वारा किए गए पर्यवेक्षण में देश के मध्य-पश्चिमी क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत इस दौरान वायु प्रदूषण में वृद्धि पाई गई। अत्याधुनिक उपग्रह द्वारा किए गए पर्यवेक्षण के आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि कि भारत के मध्य-पश्चिमी भाग और उत्तर भारत में उच्च वायु प्रदूषण का खतरा बना रहता है। इसलिए इस क्षेत्र में सांस संबंधी तकलीफ बढ़ने की ज्यादा संभावना बनी रहती है।

हालांकि बाकी हिस्सों में कुछ सुधार हुआ था
बहु-उपग्रह वायु प्रदूषक दूरसंवदी परीक्षण(multi-satellite air pollution remote sensing test) की दिशा में पिछले एक दशक में काफी प्रगति हुई है। उपग्रह और यथास्थान अवलोकन की समन्वित माप से वायु प्रदूषण की कड़ी की समझ अधिक व्यापक हो जाती है। वर्ष 2020 में, कोरोनावायरस जनित महामारी की रोकथाम के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन लगाया गया था। इससे अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ा, हालांकि इसका एक सकरात्मक प्रभाव यह देखने को मिला कि धरती के आसपास की हवा की गुणवत्ता में अल्पकाल के लिए सुधार पाया गया।

उत्तर भारत में पॉल्युशन बढ़ गया
उपग्रह-आधारित अवलोकन में धरती के आसपास और मुक्त क्षोभमंडल(free troposphere) में मिलीं जहरीली गैसें-ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड दर्शाती हैं कि देशभर में अधिकांश प्रदूषकों में कमी आई। हालांकि, पश्चिमी व मध्य भारत, उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों और सुदूर हिमालय जैसे कुछ क्षेत्रों में ओजोन और अन्य जहरीली गैसों में वृद्धि पाई गई। महामारी के दौरान उन क्षेत्रों के आसपास श्वसन संबंधी तकलीफों के चलते स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ गया होगा।

ऐसे किया आकलन
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के तहत स्वायत्त संस्थान, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों  ने वर्ष 2018, 2019 और 2020 में ईयूमेटसैट और नासा के उपग्रह अवलोकनों का उपयोग करके लॉकडाउन की अवधि के दौरान ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के लंबवत और दंडवत वितरण में परिवर्तन पर मानवजनित गतिविधियों के महत्वपूर्ण विच्छेद के प्रभाव का निरीक्षण किया।

15 प्रतिशत की वृद्धि
नैनीताल स्थित एआरआईईएस के वरिष्ठ शोधार्थी प्रज्ज्वल रावत ने अपने शोध(research) पर्यवेक्षक डॉ. मनीष नाज के साथ ’पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान’ में प्रकाशित अध्ययन में बताया है कि भारत के मध्य और पश्चिमी हिस्से में ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में करीब  15 फीसदी की वृद्धि हुई।

नतीजों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में कार्बन मोनोऑक्साइड की सांद्रता में लगातार अधिक वृद्धि ( करीब 31 फीसदी) पाई गई। समताप मंडल से लंबी दूरी के परिवहन और नीचे की ओर परिवहन में लॉकडाउन के दौरान उत्तर भारत में ओजोन सांद्रता में काफी वृद्धि देखने को मिली हिमालय और तटीय शहरों जैसे दूरदराज के क्षेत्रों ने हवा की गुणवत्ता में लॉकडाउन का न्यूनतम प्रभाव देखा गया और वायु के प्रदूषकों की कसौटी में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई।

एआरआईईएस की टीम बताती है कि ओजोन उत्पति और क्षति नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों जैसी गैस युक्त प्रकाश रसायन अर्थात फोटोकेमिस्ट्री की जलिट अभिक्रिया पर निर्भर करती है। इन पूर्ववर्ती गैसों में कमी से रासायनिक वातावरण के आधार पर ओजोन में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, ओजोन सांद्रता को परिवेशी मौसम विज्ञान और गतिकी के माध्यम से भी बदल दिया जाता है, जिसमें समताप मंडल से क्षोभमंडल तक ओजोन-बहुल वायु का नीचे की ओर जाती है।

इस रिसर्च से पॉल्युशन में सुधार संभव
एआरआईईएस की टीम के अनुसार, इस अध्ययन से उच्च वायु प्रदूषण जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिली। इस प्रकार, इससे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। टीम ने पहले, इसरो के वैज्ञानिकों के साथ, इनसैट-3डी को भारत में ओजोन प्रदूषण का अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण भारतीय भूस्थिर उपग्रह के रूप में दर्शाया था। हालांकि, अन्य मानदंडों के लिए वायु प्रदूषक (यानी, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बनमोनोऑक्साइड, वाष्प्शील कार्बनिक यौगिक आदि), भारत में अंतरिक्ष-आधारित अवलोकनों की कमी है और कक्षा में वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए स्वदेशी उपग्रह की आवश्यकता है।

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