सार
पूरी दुनिया दो साल से अधिक समय से कोरोना महामारी से जूझ रही है. दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हुई है, लेकिन कुछ हस्तियां ऐसी होती हैं, जिनकी अलग पहचान होती है. बात राजनीति की करें तो कई ऐसे दिग्गज अब सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, जिनका सियासी कौशल आज भी बेमिसाल माना जाता है. इन लोगों में देश के राष्ट्रपति, राज्यपाल और राज्यों के मुख्यमंत्री तक शामिल हैं.
नई दिल्ली : पूरी दुनिया दो साल से अधिक समय से कोरोना महामारी से जूझ रही है। दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हुई है, लेकिन कुछ हस्तियां ऐसी होती हैं, जिनकी अलग पहचान होती है। बात राजनीति की करें तो कई ऐसे दिग्गज अब सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, जिनका सियासी कौशल आज भी बेमिसाल माना जाता है। इन लोगों में देश के राष्ट्रपति, राज्यपाल और राज्यों के मुख्यमंत्री तक शामिल हैं। भारत समेत अमेरिकी महाद्वीप के कुछ ऐसे लोग हमसे बिछड़ गए जिनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी। जानिए राजनीतिक चौसर पर कौन से राजनेता ऐसे हैं, जिनका जलवा अब नहीं दिखेगा, रहेंगी तो बस उनसे जुड़ी यादें, यानी स्मृति शेष।
कल्याण सिंह, चिरनिद्रा में सो गए बाबूजी…
राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह ने 21 अगस्त, 2021 को लंबी बीमारी से संघर्ष के बाद 89 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। कल्याण सिंह का निधन लखनऊ के अस्पताल में हुआ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहने के दौरान कल्याण सिंह ज्यादा सुर्खियों में रहे थे। आज की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पहले साल 1951-1977 तक भारतीय जनसंघ के रूप में जानी जाती थी। कल्याण सिंह ने 30 साल की उम्र में 1962 में राजनीति में कदम रखा था। जनसंघ से जुड़े रहे कल्याण सिंह (Kalyan Singh) साल 1975-76 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान 21 महीने जेल में रहे थे। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के अलावा कल्याण सिंह की भी भूमिका रही थी।
1991 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। इनके कार्यकाल के दौरान 6 दिसंबर, 1992 के दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। बाद में इसी आधार पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद अदालतों में पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने को आपराधिक कृत्य करार दिया था।
1992 में अयोध्या में उपद्रव के समय यूपी के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसएम त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी थी। लेकिन, कल्याण सिंह ने गोली चलाने के बजाय लाठी चार्ज, आंसू गैस जैसे अन्य तरीकों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया। और देखते ही देखते ही बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया।
221 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत होने के बावजूद बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। साल 1997 में कल्याण सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। साल 1999 में मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। साल 2013 में कल्याण सिंह भाजपा में वापस लौटे। 2014 में कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बनाये गये थे।
अमेरिकी महाद्वीप में राष्ट्रपति की हत्या
7 जुलाई, 2021 को अमेरिकी महाद्वीप के देश हैती में राष्ट्रपति की हत्या से हड़कंप मच गया था। राष्ट्रपति जोवेनेल मोइसे की हत्या उनके निजी आवास में की गई थी। अज्ञात लोगों के समूह ने मोइसे के निजी आवास में घुसकर हमला किया था। 53 साल की उम्र में जान गंवाने वाले राष्ट्रपति मोइसे 2017 में राष्ट्रपति बने थे। हैती की अंतरिम प्रधानमंत्री क्लॉड जोसेफ ने बताया था कि हमले में मोइसे की पत्नी, प्रथम महिला मार्टिनी मोइसे भी गोलीबारी में घायल हुई थीं। मोइसे केला निर्यात करने के व्यापार से जुड़े थे जो बाद में राजनीति में आए और फिर राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे। हालांकि, राष्ट्रपति रहने के दौरान विपक्षी नेताओं ने भ्रष्टाचार और खराब आर्थिक नीतियों को लेकर मोइसे को आड़े हाथों लिया।
आम चुनाव न कराने के कारण मोइसे पर सत्ता के दुरुपयोग और तनाशाही रवैया अपनाने जैसे आरोप भी लगे। हैती में संवैधानिक सुधारों को लेकर भी मोइसे विवादों में घिरे, जब उन्होंने दावा किया कि राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैती में इन सुधारों के बाद स्थिरता आ जाएगी।
बता दें कि हैती की आबादी लगभग 11 मिलियन है। गरीब से जूझ रहे देश हैती में तानाशाही का पतन 1986 में हुआ था। इसके बाद भी इस देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं आ सकी है। इसके बाद भी हैती में कई बार तख्तापलट और विदेशी हस्तक्षेप की घटनाएं हो चुकी हैं।
मोहन देलकर : निर्दलीय सांसद की संदिग्ध मौत
फरवरी, 2021 में मोहन देलकर की संदिग्ध मौत ने सबको सकते में डाल दिया था। 58 वर्षीय देलकर की डेड बॉडी मुंबई के एक होटल में फांसी के फंदे से लटकी पाई गई थी। लोक सभा में सांसद विनायक राउत ने पीएम मोदी से स्थानीय प्रशासन, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को बर्खास्त करने की मांग की थी।दादरा और नगर हवेली के प्रशासन पर मोहन देलकर को परेशान करने के आरोप लगे थे। 2019 के लोक सभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल करने वाले देलकर ने भाजपा के नथुभाई गोमनभाई पटेल को हराया था। मई, 2019 में देलकर दादरा और नगर हवेली संसदीय सीट से चुने गए थे। देलकर सातवीं बार संसद पहुंचे थे।
देलकर पहली बार 1989 में सांसद बने थे। इस साल उन्होंने दादरा और नगर हवेली से कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। देलकर 1989-2009 तक लगातार छह बार निर्वाचित होकर संसद भवन पहुंचे। 1991 और 1996 के आम चुनावों में देलकर को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत मिली थी। 1998 में देलकर ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में सफलता हासिल की।
देलकर एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हुए और 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार बने। हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली।
2019 के 17वें लोक सभा चुनाव में देलकर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की।
मोहन देलकर की संदिग्ध मौत मामले में लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक प्रफुल खोड़ाभाई पटेल का नाम भी सामने आ चुका है। प्रफुल वर्तमान में दादरा और नगर और हवेली और दमन-दीव के प्रशासक हैं। सांसद देलकर की मौत के बाद उनके बेटे अभिनव ने प्रफुल समेत नौ लोगों के खिलाफ मुंबई पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई थी।
मुंबई पुलिस के मुताबिक देलकर की आत्महत्या की जांच के दौरान 15 पन्नों का सुसाइड नोट बरामद किया गया। पुलिस के मुताबिक सुसाइड नोट देलकर के आधिकारिक लेटर पैड पर गुजराती भाषा में लिखा गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक देलकर के सुसाइड नोट में बीजेपी नेताओं के नाम के अलावा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के नाम भी लिखे गए हैं।
भले ही देलकर 58 साल के उम्र में चल बसे, लेकिन इतनी कम उम्र में ही वे 35 साल तक संसदीय जीवन में सक्रिय रहे। 17वीं लोक सभा में मोहन देलकर वरिष्ठता के मामले में दूसरे नंबर पर थे। उनसे आगे केवल रामविलास पासवान का नाम था। देलकर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में बनी संसदीय समिति में भी चुना गया था। गृह मंत्रालय की एडवाइजरी कमेटी में देलकर समेत 28 लोक सभा और राज्य सभा सांसदों को जगह दी गई थी।
वीरभद्र सिंह
2021 में दुनिया को अलविदा कहने वाले राजनेताओं में वीरभद्र सिंह का नाम भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह लंबी बीमारी के बाद दुनिया से रुखसत हो गए। वीरभद्र सिंह 87 साल के थे। माना जाता है कि वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल की राजनीति की चर्चा पूरी नहीं हो सकती। प्रदेश में विकास का ढांचा खड़ा करने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
छह बार सीएम पद ग्रहण करने वाले सिंह 9 बार विधायक और पांच बार सांसद भी रहे। इसके लावा वीरभद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री समेत कई पदों अहम पदों पर रहे। वीरभद्र सिंह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ अलग-अलग पदों पर काम किया। उन्होंने पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री का पदभार संभाला और फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री बने। साल 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्र की यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री बने। बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजेज मंत्री भी बनाया गया।
सैयद अली शाह गिलानी
इस साल जान गंवाने वाले राजनेताओं में प्रमुख अलगाववादी नेता और हुर्रियत के चेयरमैन रहे सैयद अली शाह गिलानी का नाम भी शामिल है। वह 92 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। दो सितंबर 2021 में उन्होंने अंतिम सांस ली। गिलानी ने करीब तीन दशकों तक कश्मीर में अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व किया। गिलानी कट्टर पाकिस्तानी समर्थक माने जाते थे और वे कश्मीर में अलगाववाद के प्रमुख चेहरों में से एक थे। इतना ही नहीं वह एक कट्टर नेता माने जाते थे। उन्होंने कश्मीर को कभी भी भारत का हिस्सा नहीं माना।
गिलानी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर उदारवादी रुख रखने वाले नेताओं के साथ उनकी कभी नहीं बनी। उन्होंने 2004 में तहरीक-ए-हुर्रियत का भी गठन किया था। गिलानी तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1972, 1977 और 1987 में वह सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चुने गए थे। हालांकि 1990 में कश्मीर में आतंकवाद भड़कने के बाद गिलानी चुनावी विरोधी बन गए।
चौधरी अजित सिंह
मई, 2021 में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का निधन हो गया। 86 साल की उम्र में 22 अप्रैल कोरोना संक्रमण के कारण चौधरी अजित सिंह की तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह उत्तर प्रदेश की बागपत लोकसभा सीट से 7 बार सांसद चुने गए थे। इसके अलावा वे एक बार राज्य सभा सदस्य भी बने। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके चौधरी अजित सिंह जाट समुदाय के बड़े नेता थे। उनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी दबदबा था।
लोकप्रियता कम होने के कारण अजित सिंह अपने गढ़ बागपत से भी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सके। अजित सिंह 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने थे। वे चार बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे। साल 1986 में जब चौधरी अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह बीमारी से ग्रसित हुए तो अजित सिंह ने अपनी सियासी पारी शुरू की। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है। अपने पिता चौधरी चरण सिंह की ही तरह ही चौधरी अजित सिंह भी किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करते रहे।
किसानों के मुद्दे पर संघर्ष के बाद अलग पहचान हासिल करने वाले चौधरी अजित सिंह ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने अमेरिका के इलिनाइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर ऑफ साइंस का कोर्स भी किया। अजित सिंह बिल गेट्स की कंपनी आईबीएम में नौकरी करने वाले पहले भारतीय थे।
पूर्व गृहमंत्री सरदार बूटा सिंह
दो जनवरी, 2021 को भारत के पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह ने 86 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बूटा सिंह गृह मंत्री रहे थे। बूटा सिंह बिहार के राज्यपाल भी रहे थे। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। बूटा सिंह राजस्थान की जालोर सीट से 8 बार सांसद रहे थे। आजादी के बाद 1952-1971 तक ‘दो बैलों की जोड़ी’ कांग्रेस का चुनाव चिह्न रहा। इसके बाद पार्टी में पड़ी फूट के कारण इंदिरा गांधी ने 1971-1977 तक कांग्रेस की अलग इकाई- इंदिरा कांग्रेस (आर) का गठन किया। इसका चुनाव चिह्न ‘गाय का दूध पीता बछड़ा’ बना।
हालांकि, जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ जोड़ कर इस चुनाव चिह्न की खिल्ली उड़ाई गई, तो चुनाव चिह्न बदलने का निर्णय लिया गया। इस समय बूटा सिंह कांग्रेस पार्टी के प्रभारी महासचिव थे। उन्होंने इंदिरा गांधी के सामने हाथी, साइकिल और हाथ (पंजा छाप) के चुनाव चिह्न का विकल्प रखा। इंदिरा ने पंजा छाप का चुनाव चिह्न चुना, जो आज भी कांग्रेस की चुनावी पहचान है। ऐसे में माना जाता है कि कांग्रेस को पंजा छाप का निशान दिलाने में बूटा सिंह का योगदान है।
के आर गौरी अम्मा
यह साल देश की सबसे पुरानी राजनेता को खोने के लिए भी याद रखा जाएगा। 2021 में केरल के दिग्गज राजनेता और 1957 में ई एम एस नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली पहली कम्युनिस्ट सरकार की सदस्य, के आर गौरी अम्मा का निधन हो गया। वह देश की सबसे पुरानी राजनेता थीं। उनकी आयु 102 साल थी। उन्हें केरल की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक माना जाता है। उन्हें लोग प्यार से ‘अम्मा’ कहते थे। वह पहली केरल विधानसभा की अकेली जीवित सदस्य थीं। वह केरल की पहली राजस्व मंत्री भी रही थीं।
बंगाल के कुशल राजनीतिज्ञ सुब्रत मुखर्जी का निधन
पश्चिम बंगाल के मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुब्रत मुखर्जी भी इस साल दुनिया को अलविदा कह गए। 75 साल के मुखर्जी लंबी बीमारी से जूझ रहे थे।मुखर्जी राज्य के पंचायत मंत्री थे।
सुब्रत मुखर्जी को राज्य के इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद रखा जाएगा, जिन्होंने बंगाल की राजनीति में एक कुशल राजनीतिज्ञ के अलावा एक सक्षम प्रशासक के रूप में 50 से भी अधिक वर्षों तक काम किया और अपनी एक विशेष पहचान बनाई। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत 1960 के दशक में एक छात्र नेता के रूप में की थी।
कोनिजेति रोसैया
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कोनिजेति रोसैया भी इस साल दुनिया को अलविदा कह गए। रोसैया 88 वर्ष के थे। वह तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे। रोसैया ने अपनी राजनीतिक यात्रा 1968 में विधान परिषद के सदस्य के रूप में की थी। उन्होंने वाई एस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। इसके अलावा उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्हें रिकॉर्ड 15 बार राज्य का बजट पेश करने का गौरव प्राप्त है।