सार
बिलकिस बानो केस में सोमवार (8 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई योग्य माना है और 11 आरोपियों की रिहाई का ऑर्डर कैंसिल कर दिया है।
SC On Bilkis Bano Case. बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट की जज बीवी नागरत्ना और उज्जवल भुयन बेंच फैसला सुनाते हुए कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य है। कोर्ट ने रिहा किए गए सभी 11 आरोपियों की रिहाई का ऑर्डर भी निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिनों की सुनवााई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। यह मामला 2002 के गुजरात दंगों से जुड़ा है, जिसमें बिलकिस बानो के साथ रेप और परिवार वालों की हत्या की गई। गुजरात सरकार ने सभी 11 आरोपियों को पिछले साल छोड़ दिया था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इसी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है।
बिलकिस बानो केस-10 प्वाइंट में समझें पूरा मामला
- बिलकिस बानो केस के 11 आरोपियों को पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गुजरात सरकार ने रिलीज कर दिया था। इस फैसले से विपक्ष में आक्रोश फैल गया और बिलकिस बानो ने कहा कि उन्हें रिहाई की जानकारी नहीं दी गई।
- रिहाई के बाद सभी आरोपियों का हीरो की तरह से स्वागत किया गया। तब मंच पर बीजेपी के सांसद और विधायक भी मौजूद रहे। मामले में आरोपी राधेश्याम ने कानून की प्रैक्टिस भी शुरू कर दी।
- सुप्रीम कोर्ट की जज बीवी नागरत्ना और उज्जवल भुयन की बेंच ने मामले में 11 दिनों तक सुनवाई की और अक्टूबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को रिहाई ऑर्डर निरस्त कर दिया है।
- गुजरात सरकार ने 1992 के रीमिसन नीति के आधार पर 11 आरोपियों को रिहा किया था। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर फैसला सुना चुका है।
- राज्य सरकार ने इस मामले में पैनल से कंसल्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने राधेश्याम शाह के फैसले पर भी अलग से सुनवाई की है।
- पैनल ने रिहाई के फैसले को सही ठहराया और आरोपियों को संस्कारी ब्राह्मण करार दिया। कहा कि आरोपियों ने 14 साल तक जेल की सजा काटी है और उनका व्यवहार अच्छा था।
- आरोपियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। एक याचिक टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने दाखिल की। वहीं सीपीएम पोलित ब्यूरो की सुहासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती और लखनऊ यूनिवर्सिट की पूर्व वाइस चांसलर रूप रेखा वर्मा ने भी याचिकाएं दायर की।
- आरोपियों की डेथ पेनाल्टी को आजीवन कारावास में बदला गया था। सवाल यह किया गया कि कैसे 14 साल की सजा के बाद ही इन्हें रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार से भी सवाल किए।
- गुजरात सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि आरोपियों को 2008 में सजा सुनाई गई लेकिन उन्हें 1992 की नीति के आधार पर रिहा किया गया।
- जिस वक्त यह गैंगरेप किया गया था, तब बिलकिस बानो 21 साल की थी और प्रेगनेंट थी। गुजरात दंगों के दौरान यह घटना घटी। साबरमती एक्सप्रेस में 59 कार सेवकों को जिंदा जलाने के बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे।
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