सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म 'तनु वेड्स मनु' के निर्माता शैलेश कुमार सिंह को राहत दी है। उनके खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आर्थिक विवाद को लेकर आपराधिक कार्यवाही की FIR दर्ज नहीं हो सकती।

Supreme Court on Criminal Law: फिल्म 'तनु वेड्स मनु' के निर्माता शैलेश कुमार सिंह के खिलाफ एक आर्थिक विवाद को लेकर शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रद्द कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा धन की वसूली के लिए FIR दर्ज करके आपराधिक कानून का सहारा लेना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। पैसे को लेकर विवाद दीवानी मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा उसके पहले के फैसलों का उल्लंघन करते हुए ऐसा करने की अनुमति देने पर निराशा व्यक्त की।

आर्थिक विवाद को धोखाधड़ी का अपराध बताने के लिए चाहिए सबूत

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने अपने आदेश में कहा, "कितनी बार हाई कोर्ट को याद दिलाया जाएगा कि आर्थिक विवाद को धोखाधड़ी का अपराध बताने के लिए, रिकॉर्ड में प्रथम दृष्टया से ज्यादा कुछ होना चाहिए, जो बताए कि आरोपी का इरादा शिकायतकर्ता को शुरू से ही धोखा देने का था। FIR को सीधे पढ़ने से किसी भी तरह की आपराधिकता का पता नहीं चलता।"

आर्थिक धोखाधड़ी से जुड़े मामले में दर्ज हो दीवानी मुकदमा

सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश दिए थे कि आर्थिक धोखाधड़ी से जुड़े मामले में दीवानी मुकदमा दायर किया जाए। कोर्ट ने संकेत दिया कि हाईकोर्ट ने उसके आदेशों को लगभग अनसुना कर दिया है। पीठ ने अपने उन फैसलों का हवाला दिया जिनसे यह मामला सुलझा था। पीठ ने कहा कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केवल अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चला सकता। जब तक कि लेन-देन की शुरुआत से ही धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा न दिखाया गया हो।

हर धोखाधड़ी आपराधिक विश्वासघात नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "विश्वासघात का हर मामला आपराधिक विश्वासघात का दंडात्मक अपराध नहीं बन सकता। ऐसा होने के लिए धोखाधड़ी या गबन के किसी हेरफेरपूर्ण काम का सबूत होना चाहिए। विश्वासघात दीवानी अपराध है। इसके लिए पीड़ित कोर्ट में क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।"

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जताया आश्चर्य

शैलेश कुमार सिंह की ओर से पेश वकील सना रईस खान ने कोर्ट को बताया कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता। आपराधिक अभियोजन को उत्पीड़न के साधन के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील पर सहमति व्यक्त की और केस रद्द कर दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा शिकायतकर्ता को 25 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश देकर मामले को जिस तरह से निपटाया गया उस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया।

हाईकोर्ट ने क्यों की पैसे वसूलने में मदद की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हाईकोर्ट को ऐसा कदम क्यों उठाना चाहिए। हाईकोर्ट या तो याचिका को स्वीकार कर सकता है यह कहते हुए कि कोई अपराध उजागर नहीं हुआ या यह कहते हुए याचिका खारिज कर सकता है कि रद्द करने का कोई मामला नहीं बनता। हाईकोर्ट को शिकायतकर्ता को अभियुक्त द्वारा दी जाने वाली राशि वसूलने में मदद करने का प्रयास क्यों करना चाहिए? यह दीवानी कोर्ट या कमर्शियल कोर्ट का काम है।"