सार
बेअदबी का मामला उस वक्त देश और विदेश में सुर्खियों में आया, जब सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच 15 अक्टूबर 2021 को लखबीर नाम के युवक की कुछ निहंगों ने हत्या कर दी। हालांकि बेअदबी की यह पहली घटना नहीं थी। लेकिन, बेअदबी पर इस तरह से हत्या की यह पहली घटना थी।
मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। चुनाव की घोषणा होते ही पंजाब में बेअदबी की तीन घटनाएं हो चुकी हैं। दो घटनाएं सिखों के अलग-अलग गुरुद्वारा साहिब में हुईं, जबकि तीसरी घटना हाल ही में पटियाला के काली माता मंदिर में। यहां एक 22 साल के लड़के ने माता की प्रतिमा को अपवित्र करने की कोशिश की। पटियाला का काली माता का मंदिर हिंदुओं के लिए गहरी आस्था का केंद्र माना जाता है। ना सिर्फ पंजाब, बल्कि हरियाणा और हिमाचल से भी श्रद्धालु मंदिर में आते हैं।
बेअदबी का मामला उस वक्त देश और विदेश में सुर्खियों में आया, जब सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच 15 अक्टूबर 2021 को लखबीर नाम के युवक की कुछ निहंगों ने हत्या कर दी। हालांकि बेअदबी की यह पहली घटना नहीं थी। लेकिन, बेअदबी पर इस तरह से हत्या की यह पहली घटना थी। इसके कुछ समय बाद दिसंबर में स्वर्ण मंदिर में एक युवक ने बेअदबी की कोशिश की, जिसे पीट-पीट कर मार डाला। 20 दिसंबर को कपूरथला में भी एक युवक की भीड़ ने बेअदबी का आरोप लगाते हुए हत्या कर दी थी। पुलिस ने जांच के बाद दावा किया था कि मामला बेअदबी का नहीं, बल्कि चोरी का था। हत्या के आरोप में चार लोगों को नामजद करते हुए 100 अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज किया गया।
2015 की घटना ने दहला दिया था
पंजाब में बेअदबी का मामला 2015 से अकाली सरकार के दौरान जोर पकड़ने लगा था। तब एक बुर्ज जवाहर सिंह वाला में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटना सामने आई। ये इसलिए पहली बड़ी घटना थी, क्योंकि न्याय की मांग कर रहे लोगों पर 15 अक्टूबर को पुलिस ने गोली चला दी, इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले 25 सितंबर 2015 को बरगारी में गुरुद्वारा साहिब के पास पोस्टर लगाकर गलत भाषा प्रयोग किया गया। पोस्टरों में दावा किया कि गुरु ग्रंथ साहिब के जो स्वरूप चोरी हुए, इसके पीछे डेरा सच्चा सौदा सिरसा का हाथ है। सिखों को खुली चुनौती दी गई। 12 अक्टूबर को फरीदकोट में गुरु ग्रंथ साहिब के अंग मिले।
पंजाब में धर्म सबसे संवदेनशील मसला
2017 के विधानसभा चुनाव में बहिबल कला और कोटकपूरा गोलीकांड के नाम पर अकाली दल सरकार को विपक्ष ने जमकर निशाना बनाया। पंजाब में तब स्थिति यह थी कि किसी दूसरे मुद्दे की बात ही नहीं हो रही थी।
इसका परिणाम यह निकला कि अकाली दल के खिलाफ पंजाब में जबरदस्त माहौल बन गया। अकाली दल को अपने इतिहास में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पंजाब में डेरों और उनकी सियासत पर रिसर्च कर चुके दिल्ली के पूर्व पत्रकार राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि धर्म पंजाब में बड़ा संवदेशनील मुद्दा है। शरारती तत्व असानी से पंजाब में गड़बड़ी फैलाने के लिए लोगों की भावना को भड़का सकते हैं।
सिख और डेरे के बीच विवाद...
राजकुमार ने बताया कि पंजाब में हिंदुओं और सिखों के बीच एक सीमा रेखा है। जहां तक डेरों का सवाल है, इनके ज्यादातर अनुयायी शेड्यूल हैं। पर क्योंकि पंजाब में इनकी संख्या भी है, इसलिए शेड्यूल संख्या बल के दम पर जट सिखों पर भारी पड़ते हैं। डेरा सच्चा सौदा सिरसा का विवाद पंजाब में उस वक्त गहराना शुरू हो गया था, जब डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम जाम ए इंशा पिलाने का कार्यक्रम करने लगे थे। सिख समुदाय ने इसे अपने गुरु का अपमान माना। ऐसा नहीं है कि सिख और डेरे बीच पहले विवाद नहीं था। लेकिन इस तरह के कार्यक्रम से यह और ज्यादा गहराने लगा।
अकाली दल पर लगते रहे आरोप
अकाली दल पर आरोप लगते रहे कि वह डेरे की वोट की वजह से इस पर चुप है। क्योंकि अकाली दल शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की राजनीति भी करता है, इस तरह से विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस ने बेअदबी और गोली कांड को जोर-शोर से उठाया। पंजाबी समाचार पत्र ट्रिब्यून के पूर्व पत्रकार बलविंदर सिंह ने बताया कि वह वक्त ऐसा था, अकाली दल दूसरी बार सरकार में था। कांग्रेस में तब भी इसी तरह की फूट चल रही थी। कैप्टन को हटाने की कोशिश हो रही थी।
सिद्धू ने मामला उठाया तो छवि निखरी
कैप्टन ने तब भी भाजपा के साथ बैठक करनी शुरू कर दी, जिससे कांग्रेस आलाकमान दबाव में आ गया। तय किया गया कि चुनाव उनके नाम पर ही लड़ा जाएगा। लेकिन तब नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में भारी पड़ना शुरू हो गए थे। उन्होंने नशे और रेत के साथ साथ बेअदबी का मामला बहुत आक्रमक तरीके से उठाया। इसका परिणाम यह निकला कि पंजाब के वोटर्स में कांग्रेस और सिद्धू की एक अलग छवि बनी। यही छवि उसकी सबसे बड़ी मजबूती बनी, जिसके दम पर नवजोत सिद्धू कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बनने में भी कामयाब रहे।
कैप्टन पर भी भारी पड़े सिद्धू
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी सिद्धू ने बेअदबी के विरोध में गोलीकांड के मुद्दे को नहीं छोड़ा। वह अपनी सरकार में भी बार बार यह मुद्दा उठाते रहे। यहां तक की वह अक्सर कैप्टन की आलोचना भी करने लगे। कैप्टन पन उन्होंने बादल सरकार से मिले होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया था। क्योंकि उनका मानना था कि गोलीकांड में बादल सरकार खासतौर पर सुखबीर बादल की भूमिका की जांच होनी चाहिए। आखिर में सिद्धू कैप्टन पर भारी पड़े, चन्नी सरकार बनी।
सिद्धू ने एडवोकेट जनरल की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए
चरणजीत चन्नी सीएम बने तो सिद्धू चाहते थे कि बेअदबी कांड की जांच तेज होनी चाहिए। चन्नी ने जब एपीएस देओल को एडवोकेट जनरल नियुक्त कर दिया था, तब सिद्धू उनसे नाराज हो गए थे, क्योंकि सिद्धू का कहना था कि देओल 2015 में बेअदबी का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों गोली चलाने का ऑर्डर देने वाले तब के डीजीपी सुमेध सिंह के वकील थे। दिक्कत यह रही कि सिद्धू के बार-बार आवाज उठाने के बाद भी बेअदबी की घटनाएं कांग्रेस राज में भी नहीं थमीं।
हिंदू धर्म स्थल पर पहली बार ऐसी घटना
लेकिन अब इन घटनाओं में नया मोड़ तब आया, जब पटियाला में देवी माता के मंदिर को अपवित्र करने की कोशिश हुई। हिंदू धर्म स्थल पर इस तरह की यह पहली बड़ी घटना है। जो पुलिस, प्रशासन, चुनाव आयोग समेत हिंदू संगठनों के साथ साथ पंजाब के बुद्धिजीवियों लिए चिंता का विषय बनी हुई है। इनका मानना है कि यह सीधे-सीधे समाज को बांटने की कोशिश है। इन घटनाओं के पीछे जानकार उन विदेशी ताकतों का हाथ भी मानते हैं जो विदेश में बैठकर पंजाब में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
घटना की तह में जाने की जरूरत
पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के विभागध्यक्ष डॉक्टर अशोक शर्मा का मानना है कि यह लोगों को भड़काने की कोशिश है। दिक्कत यह है कि इन घटनाओं की तह में जाने की कोशिश ही नहीं हो रही है। इनके पीछे कौन हैं? उसकी मंशा क्या है? अशोक शर्मा ने बताया कि निश्चित ही डेरा अनुयायियों और सिख समुदाय के बीच तनाव तो है, लेकिन यह इतना गहरा नहीं कि पंजाब के सामाजिक ताने-बाने को हिला सकें। क्योंकि दोनों समुदाय की एक-दूसरे पर निर्भरता भी तो हैं। खेती अकेले सिख तो कर नहीं सकते, उन्हें गैर सिख समुदाय की मदद भी चाहिए। इतना भी नहीं कि पंजाब का समाज धर्म के आधार पर कई हिस्सों में बंट गया है। फिर भी यहां बेअदबी की घटनाएं हो रही हैं।
किसी तीसरे की भी संभावना
इनका कहना है कि हो सकता है इसके पीछे तीसरा ही कोई हो। जो दो समुदाय को भड़का कर अपना फायदा उठा रहा हो। वह पॉलिटिशियन भी हो सकता है और विदेश में बैठा आतंकी भी। क्योंकि मंशा साफ है, एक वोट के लिए दूसरा पंजाब को अशांत करने के लिए काम करता है। पत्रकार बलविंदर सिंह का मानना है कि धर्म सबसे आसान मुद्दा है। इसे उठाकर वोट हासिल करना आसान है। कोई धर्म के मुद्दे में कोई इन्वेस्टमेंट तो हैं नहीं, बस बयानबाजी करनी है।
धर्म के नाम पर वोट पाने की मशक्कत नहीं
नेता यदि विकास के वायदे करता है तो वह उन्हें पूरे करने होंगे। इसके लिए रकम चाहिए। जबकि धर्म के नाम पर वोट में इस तरह की मशक्कत नहीं करनी पड़ती। धर्म भावनाओं से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे भड़का कर आसानी से फायदा उठाया जा सकता है। पंजाब में बस यही हो रहा है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। उन्होंने बताया कि पहले गुरुद्वारे में बेअदबी हो रही थी, फिर पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा विवादित वीडियो के साथ बीच में आ गए। अब पटियाला में काली मंदिर की घटना हो गई। इसके पीछे सिर्फ राजनीति है। इससे ज्यादा कुछ नहीं।
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