सार
राजस्थान के उदयपुर से डॉक्टरों की लापरवाही के चलते एक मरीज की मौत हो गई। मरीज से लेकर परिजन चीखते-चिल्लाते रहे रहे, लेकिन इलाज करने की बजाए डॉक्टर केवल एक दूसरे पर बात टालते रहे।
उदयपुर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रोज चिकित्सा क्षेत्र में विकास के दावे कर रहे हैं। थाना की वास्तविकता में भी संसाधनों में वृद्धि की जा रही है। लेकिन प्रदेश के सरकारी डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की लापरवाही के चलते सरकार के इन दावों पर पानी फिर रहा है। लाखों रुपए की मोटी तनख्वाह लेने के बाद भी यह डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ काम नहीं करते हैं। जिसके कारण मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिलता है तो यहां तो वह मर जाते हैं या फिर उन्हें बड़े हॉस्पिटल या प्राइवेट हॉस्पिटल में रेफर कर दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला राजस्थान के उदयपुर जिले से आया है।
इलाज तो दूर मरीज को स्ट्रेचर तक नही मिला
यहां के ओगाणा क्षेत्र के रहने वाले एक 55 वर्षीय अधेड़ धुला को 2 दिन पहले पेट दर्द और सिर दर्द की शिकायत हुई। ऐसे में परिजनों से एक गांव की सीएचसी में लेकर चले गए। जहां मौजूद डॉक्टर्स ने उसे प्राथमिक इलाज दिया और घर भेज दिया। लेकिन इसके बाद भी दर्द में कोई कमी नहीं हुई। परिजनों ने 1 दिन इंतजार किया। इसके बाद वह मरीज को उदयपुर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर आए। लेकिन वहां भी कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद शुक्रवार को दोपहर 1:00 बजे के करीब मरीज को उदयपुर के सबसे बड़े एमबी हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां करीब 25 मिनट तक तो परिजनों को स्ट्रेचर नही मिला। जैसे तैसे परिजन मरीज को हॉस्पिटल के अंदर लेकर गए और उसकी ईसीजी करवाई। किसी भी करवाने के बाद भी करीब डेढ़ घंटे तक डॉक्टर्स ने न ही तो उसकी कोई रिपोर्ट देखी और उसे बीमारी के बारे में पूछा।
आखिर में मरीज की मौत ही हो गई
करीब 2 घंटे बीत जाने के बाद जब परिजन उसे हॉस्पिटल में ही मौजूद एक डॉक्टर के पास ले कर गए तो वहां डॉक्टर ने मरीज को मृत घोषित कर दिया। गुस्साए परिजनों ने इसका विरोध भी किया। लेकिन हॉस्पिटल प्रबंधन ने उनकी एक भी नहीं सुनी। वहीं इस मामले में हॉस्पिटल अधीक्षक का कहना है कि हॉस्पिटल में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है। यहां मरीजों के साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया जाता है।
उदयपुर में आए दिन आते हैं ऐसे शर्मनाक मामले
उदयपुर में डॉक्टरों की लापरवाही का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी करीब 1 महीने पहले उदयपुर में ऐसा ही एक मामला सामने आया था। जिसमें डॉक्टरों के एडमिट नहीं हार्ट का मरीज करीब 2 से 3 घंटे तक के हॉस्पिटल के बाहर एंबुलेंस में बैठा रहा। जिससे उसका ऑक्सीजन लेवल भी काफी कम हो गया।