सार
राजस्थान में चौहरे (नानी और तीन बच्चों) हत्याकांड का दस साल बाद आया फैसला, तीनों आरोपियों को किया बरी। जज ने कहा पुलिस सही तरह से नहीं कर सकी केस की जांच, साथ ही
सबूत जुटाने में रही नाकाम
जयपुर (jaipur). आज से करीब दस साल पहले जयपुर में हुए चार लोगों के मर्डर के बारे में आखिर फैसला आ ही गया। चार हत्याओं के आरोप जिन तीन लोगों को अरेस्ट किया गया था, उन तीनों को ही इस केस से कोर्ट ने बरी कर दिया। साथ ही पुलिस पर कमेंट किया कि पुलिस सही तरीके से केस की जांच ही नहीं कर सकी, जो मुख्य सबूत थे वही नहीं जुटा पाई। इसे एक तरह से पुलिस का फैलियर माना गया हैं। उधर इस केस में तीन में से दो लोग तो छह साल से जेल में बंद हैं, अब इन सभी को इस केस से बरी किया जा रहा है।
चांदी के कड़ों की लूट के लिए हुआ था मर्डर
दरअसल जयपुर के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित चाकसू इलाके में दस साल पहले यह मर्डर हुए थे। महादेवपुरा तहसील के राकडावाली ढाणी में रहने वाली 70 साल की श्रृंगारी देवी उसके पोते रामजीलाल, और पोतियां केशंता और कविता की हत्या कर दी गई थी। चार लोगों का मर्डर 16 अप्रेल 2012 को अंजाम दिया गया था। पुलिस मौके पर पहुंची तो प्राथमिक जांच के आधार पर बताया कि श्रृंगारी देवी से चांदी के कडे़ लूटने के लिए यह वारदात हुईं। लूटपाट के दौरान घर के लोग जग गए, तो हत्यारों ने तीनों बच्चों को फरसे से काट दिया और श्रृगांरी देवी के चांदी के कडे़ लूटने के बाद उनकी भी उसी फरसे से मर्डर कर दिया। प्रारंभिक जांच पडताल के आधार पर पुलिस ने इस मामले में मालपुरा निवासी रामस्वरूप उर्फ लुग्गा, श्योराज और जोधाराम को गिरफ्तार किया। मामले में तीन अन्य बाल क्रिमिनल को अरेस्ट किया गया था।
चोरी को ही मर्डर की वजह मानी, पर क्रिमिनल के खिलाफ ठोस सबूत नहीं
पुलिस की थ्योरी यही थी कि लूट के लिए हत्या की गई, बच्चे जाग गए इसलिए उन्हें भी मार दिया गया। लेकिन पुलिस ने जो सबूत पेश किए उन्हें अपर सेशन न्यायाधीश क्रम. संख्या 3, जयपुर महानगर प्रथम ने सभी एवीडेंस को गलत ठहरा दिए और कहां कि जो भी सबूत पेश किए गए है उससे यह नहीं पता चलता है कि कोई क्राइम किया गया है। कोर्ट ने माना की मर्डर जैसी घटना को अंजाम दिया गया है लेकिन यह सबूतों में साबित नहीं हो रहा है कि हत्या इन्हीं लोगों ने की है।
आरोपियों के वकील ने कहा कि गलत लोगों को अरेस्ट किया
हत्याओं की वारदात होने पर जांच चाकसू थानाधिकारी शिव कुमार ने शुरु की। उन्होनें मामले की इंवेस्टीगेशन करते हुए एक बाल अपराधी को पकड़ा और उसके कहने पर अन्य आरोपी पकडे़ जाते रहे। शिव कुमार का करीब तीन महीने के बाद ट्रांसफर हो गया। नए थानाधिकारी ने रघुवीर सिंह रामसिंह नाम के एक व्यक्ति को पकड़ा। उसके कुछ समय बाद नए थानाधिकारी रामप्रताप आए। उन्होनें 24 अप्रेल 2016 को दो अन्य आरोपी जोधाराम और श्योजाराम को टोंक जेल से प्रोडेक्शन वारंट पर पकडा। दोनो किसी मामले में टोंक जेल में बंद थे। आरोपी बनाए गए रामस्वरूप और अन्य के वकील मांगीलाल चौधरी ने बताया कि पुलिस ने केवल मामले का खुलासा करने के लिए गिरफ्तारी की कार्रवाई की। मूल अपराधियों तक पुलिस आज तक पहुंची ही नहीं। ऐसे सबूत भी कोर्ट में पेश किए गए और इन सबूतों एवं साक्ष्यों को कोर्ट ने सही माना।
55 पेज का ऑर्डर दिया कोर्ट ने, पुलिस की खिंचाई की
कोर्ट ने अपने 55 पेज के ऑर्डर में लिखा है कि पुलिस जांच के प्रमुख बिंदू ही फॉलो नहीं कर सकी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि मोबाइल लोकेशन के आधार पर आरोपियों की उपस्थिति का अनुसंधान नहीं किया गया। कॉल डिटेल भी नहीं जुटाई। जिस गाड़ी में वारदात स्थल पर आरोपी गए उसकी जांच नहीं की गई। न ही फिंगर प्रिंट व फुट प्रिंट लिए गए। जिस फरसे से हत्या
करना बताया उसके संबंध में कोई रिसर्च नहीं किया गया।