सार

अशोक गहलोत को सियासी जादूगर कहा जाता है। कई बार संकट में घिरी कांग्रेस को गहलोत अपनी राजनीतिक सूझबूझ से बाहर निकालकर ले आए हैं। सचिन पायलट इस पूरे मामले में अभी तक खामोश हैं। उनके पास कई विकल्प मौजूद हैं। 

जयपुर. राजनीति और क्रिकेट में एक बात कही जाती है यहां कुछ भी असंभव नहीं है। राजस्थान में भी इन दिनों बगावत का खेल चल रहा है। एक तरफ हैं मुख्यमंत्री और राजस्थान की सियासत के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत तो दूसरी तरफ हैं कांग्रेस के स्टार प्रचारक और क्राउड कैचर लीडर सचिन पायलट। अभी तक अपनी सटीक राजनीतिक गुगली से विरोधियों को आउट करने वाले गहलोत इस बार अपनी ही गुगली में फंसते नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ पायलट बिना मैदान में उतरे माहौल को अपने पाले में ले जाने की जुगत में हैं। आइए जानते हैं राजस्थान के सियासी बगावत पार्ट-2 का मौन ऑफ दी मैच कौन होगा? सचिन पायलट के पास क्या विकल्प हैं।

क्या उल्टा पड़ गया गहलोत का दांव
अशोक गलहोत को सियासी जादूगर कहा जाता है। कई बार संकट में घिरी कांग्रेस को गहलोत अपनी राजनीतिक सूझबूझ से बाहर निकालकर ले आए हैं। चाहे गुजरात में अहमद पटेल का राज्यसभा चुनाव हो या फिर साल 2020 में सचिन पायलट की बगावत के बाद राजस्थान की सरकार को बचाना हो। अशोक गहलोत का निशाना हर बार विकेट पर लगा और विरोधी क्लीन बोल्ड हो गए।

 

अशोक गहलोत को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि वो आलाकमान के हर फैसले को मानते हैं लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चुनाव में उनका नाम आने के बाद वो बैकफुट पर आ गए। गहलोत ने राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हुए। इसके बाद गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की बात सामने आई। गहलोत राजस्थान में रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी हो पार्टी पर नियंत्रण गांधी परिवार का रहेगा। ऐसे में गहलोत अपने हाथ से राजस्थान को नहीं छोड़ना चाहते हैं वो चाहते थे कि अध्यक्ष बनने के बाद सीएम ऐसा हो जो इनके इशारे पर काम करे यही कारण है कि गहलोत खेमा सचिन पायलट के खिलाफ है। विधायकों द्वारा की गई बगावत का असर अशोक गहलोत के लिए निगेटिव हो गया और इसका अप्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है सचिन पायलट को।

पायलट खमोश
सचिन पायलट, राजस्थान में जारी सियासी बगावत में पूरी तरह से खमोश हैं। सचिन की खमोशी उनके लिए फायदेमंद हो सकती है। जानकार कहते हैं 25 सिंतबर को राजस्थान में जो हुआ उससे गहलोत की छवि को धक्का लगा है। ऐसे में पायलट खेमे को गहलोत के खिलाफ आलाकमान के सामने कमजोर करने का हथियार मिल गया है।

सचिन के पास क्या-क्या विकल्प

  • 1- विकल्पों की बात करे तो राजस्थान की सियासत के बीच सबसे ज्यादा विकल्प सचिन पायलट के पास ही हैं। गहलोत खेमे की बगावत पर अगर पार्टी हाईकमान सख्त फैसला लेता है तो सचिन पायलट के सीएम बनने के रास्ते अभी भी खुले हैं क्योंकि गहलोत के समर्थन में जो 80 विधायक हैं पार्टी की सख्ती के बाद उनमें से कई पाला बदल सकते हैं। सोमवार को विधायक गंगा देवी जो जयपुर के बगरू क्षेत्र से आती हैं और सीनियर हैं उन्होंने साफ कर दिया है कि वो किसी खेमे में नहीं है केवल कांग्रेस हाईकमान का आदेश मानेंगी। ऐसे में पायलट के सीएम बनने की अभी भी संभावना है।
  • 2- पार्टी हाईकमान इस पूरे मसले को निपटाने के लिए सचिन पायलट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बना सकता है और 2023 के विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ने का ऐलान कर सकता है। हीं, अशोक गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है और किसी तीसरे नेता को राज्य की कमान सौंपी जा सकती है। 
  • 3- सचिन पायलट, इस पूरे सियासी ड्रामे के बाद पार्टी बदलकर राजस्थान की राजनीति में भूचाल ला सकते हैं। उनके पास पार्टी छोड़ने का भी विकल्प है। क्योंकि उनके समर्थन में भी कुछ विधायक हैं।
  • 4- कांग्रेस हाई कमान राजस्थान के विवाद को सुलझाने के लिए सचिन पायलट को केन्द्र में बड़ी जिम्मेदारी देकर बगावत को शांत करा सकता है। हालांकि अजय माकन ने इस पूरे मामले में जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं। क्योंकि पायलट पहले ही साफ कर चुके हैं कि उन्हें राजस्थान में ही सियासत करनी है। 
  • 5- सचिन पायलट इस पूरे मामले में खमोश रहकर इंतजार कर सकते हैं। क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी अलाकमान के इस मामले में ऐसा फैसला लेना होगा जो राजस्थान की जनता को निराश ना करे। इसके साथ ही लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपनी कलह में किसी प्रकार का मुद्दा दिए बना पार्टी हाईकमान इसका हल निकालना चाहेगा। 

गहलोत भरेंगे कांग्रेस अध्यक्ष का नामांकन?
राजस्थान में हुए सियासी हंगामे के बाद अब माना जा रहा है कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से बाहर हो गए हैं। उनकी जगह अन्य नामों पर चर्चा की जा रही है। गहलोत खेमे की विधायकों की गुटबाजी के बाद हाईकमान अशोक गहलोत से नाराज है। लेकिन मौजूदा समय में कांग्रेस के पास बड़े राज्यों में केवल राजस्थान ही बचा है ऐसे में पार्टी अशोक गहलोत के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन लेने से बच सकती है हालांकि ये तय है कि इस पूरे सियासी ड्रामे से अशोक गहलोत की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही हैं।

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