सार

किताब के पेज 15 में ब्राह्मणों को आक्रांता आर्य लोगों का समूह बताया गया है। जो करीब पांच हजार साल पहले यूरेशिया से भारत पहुंचे थे। पेज नंबर 13 में बताया गया है कि ब्राह्मणों ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कई चालें चली जो बौद्धकाल से लेकर आज तक जारी है। ब्राह्मणों ने निहत्थे, अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम भी किया।

जयपुर : राजस्थान (Rajasthan) राजधानी जयपुर (Jaipur) में 20 दिसंबर को हुए आदिवासी विकास परिषद सम्मेलन में बांटी गई एक किताब अब विवादों में घिर गई है। इस किताब का नाम 'अधूरी आजादी' है और इसके लेखक हैं रिटायर्ड IRS रूपचंद वर्मा। इस किताब में ब्राह्मणों को यूरेशिया से आया हुआ आक्रांता बताया गया है। इतना ही नहीं महात्मा गांधी को किताब में दोहरे चरित्र का व्यक्ति और व्याभिचारी बताया गया है। जिसको लेकर विरोध शुरू हो गया है। बता दें कि इस सम्मेलन का उद्घाटन प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री परसादीलाल मीणा ने किया और बतौर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) आमंत्रित थे, हालांकि वह नहीं पहुंचे।  दो दिन तक चले इस सम्मेलन में कांग्रेस-बीजेपी के कई नेता शामिल हुए। मंगलवार को समापन सत्र में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हुए थे। 

ब्राह्मण आक्रांता-घुसपैठिए थे
इस विवादित किताब के पेज 15 में ब्राह्मणों को आक्रांता आर्य लोगों का समूह बताया गया है। जो करीब पांच हजार साल पहले यूरेशिया से भारत पहुंचे थे। वहीं पेज 11 पर संविधान सभा में जयपाल सिंह के एक कथन का हवाला देकर लिखा है कि सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास बताती है कि नवागंतुक आर्यों ने सिंधु सभ्यता को नष्ट करके आदिवासियों को मैदानों से दूर जंगलों में खदेड़ कर उन्हें बहुत प्रताड़ित किया, आज यहां बैठे अधिकतर लोग घुसपैठिए हैं। इसके साथ ही पेज नंबर 13 में बताया गया है कि ब्राह्मणों ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कई चालें चली जो बौद्धकाल से लेकर आज तक जारी है। ब्राह्मणों ने निहत्थे, अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम भी किया।

महात्मा गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग पर आपत्तिजनक टिप्पणी
किताब में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है। पेज नंबर 8 और 9 में महात्मा गांधी के बारे में लिखा है कि अंग्रेज गांधी को बहुत काइयां और दोहरी राजनीति करने वाला मानते थे। गांधी ने वर्ण जाति आधारित समाज को आगे बढ़ाते हुए ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया। पेज नंबर 9 पर लिखा है कि गांधी लंगोटी पहनकर फकीरी की दावेदारी करते थे और उद्योगपति बिरला के आलीशान बंगले में रहते थे और उन्हें ब्रह्मचर्य को साधने के लिए अपनी जवान पोती के साथ सोने में कोई आपत्ति नहीं थी। उनमें सच्ची संतवृत्ति नाम मात्र की भी नहीं थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने भी गांधी को दोहरे चरित्र का व्यक्ति बताया है। गांधी ने वर्ण जाति आधारित समाज का कट्टर समर्थक बनकर ब्राह्मणवाद बढ़ाया, लेकिन पश्चिमी दुनिया को दिखाने के लिए उदारवादी लोकतंत्रवादी बन गए थे।

पंडित नेहरू ने परिवारवाद-ब्राह्मणवाद को हवा दी
किताब में भारतीय लोकतंत्र पर हावी ब्राह्मणवाद चैप्टर में लिखा है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने आजाद भारत की बागडोर संभालते ही ब्राह्मणवाद और परिवारवाद को खूब हवा दी। नेहरू ने 1952 के आम चुनावों में 3.5 प्रतिशत ब्राह्मणों को 60 प्रतिशत टिकट देकर 47 प्रतिशत को जिताया। प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू चार दशकों तक देश की सत्ता पर काबिज रहे। इस दौरान ब्राह्मणों ने देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, संपत्ति पर वर्चस्व कायम कर लिया। मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित सभी पदों पर ब्राह्मण छा गए।

नेहरू ने किसी आदिवासी को मंत्री नहीं बनाया
 वहीं किताब में नेहरू पर किसी भी आदिवासी को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाने का भी आरोप लगाया गया है। किताब में लिखा है कि नेहरू ने अंबेडकर और जयपाल सिंह को धोखा दिया। किताब में आजादी को अधूरी बताते हुए लिखा गया है कि भारत में षडयंत्रकारी बंटवारा हुआ जिसके बाद नरसंहार देखने को मिला, करोड़ों लोगों की जान गई, ऐसे में गांधी की बिना खड़ग बिना ढाल की इस आजादी को अहिंसक आजादी नहीं कहा जा सकता है।

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