सार
राजस्थान में कई दिनों बाद सियासत की एक अच्छी तस्वीर सामने आई है। जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट करीब एक साल बाद एकसाथ सफर कर रहे हैं। दोनों नेता आज हिमाचल में नई सरकार के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए चार्टर प्लेन से रवाना हुए।
जयपुर/शिमला. हिमाचल प्रदेश में आज कांग्रेस की नवनिर्वाचित सरकार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम होने जा रहा है। भारत जोड़ो यात्रा को छोड़कर राहुल गांधी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्लेन के जरिए हिमाचल के रिज मैदान पहुंचे हैं। खास बात यह है कि इसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी शामिल होने गए हैं। पायलट और गहलोत दोनों ही राहुल गांधी के साथ एक ही प्लेन में सवार होकर गए हैं। इस टूर के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है।
गहलोत और पायलट के बीच की मिटी दूरियां
क्योंकि एक तरफ जहां हाल ही में करीब 1 महीने पहले अशोक गहलोत ने गुजरात चुनाव के दौरान सचिन पायलट को गद्दार तक बता दिया था।अब राहुल गांधी के आने के साथ ही पायलट और गहलोत के बीच की यह दूरियां समाप्त होती दिखाई दे रही है। लेकिन राजनीति के जानकारों की माने तो ऐसा ज्यादा समय तक नहीं होने वाला है। भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान से रवाना होने के बाद एक बार फिर दोनों गुटों की खींचतान देखने को मिल सकती है। फिलहाल दोनों ही गुट आलाकमान को खुश करने के लिए ऐसे हो रहे हैं कि कुछ हुआ ही नहीं है।
एक साल बाद फिर एक ही विमान में सवार हुए
गौरतलब है कि राजस्थान में 2020 में हुए सियासी घटनाक्रम के बाद से ही लगातार अशोक गहलोत कभी भी सचिन पायलट को आड़े हाथों लेने से नहीं छोड़ते हैं। हाल ही में जहां गहलोत ने पायलट को गद्दार तक करार दे दिया था तब भी पायलट ने कहा कि हर लड़ाई का समय नहीं बल्कि एकजुट रहकर पार्टी को जिताने का है। वही हाल ही में गुजरात और हिमाचल में हुए चुनाव के परिणाम पर बोलते हुए पायलट ने इशारों इशारों में यह जरूर कहा था कि गुजरात में इस तरह आना पार्टी के लिए शोभनीय नही है।
दोनों गुटों की खींचतान एक बार फिर जगजाहिर
आपको बता दें कि चुनावों के पहले सचिन पायलट को हिमाचल का ऑब्जर्वर और गहलोत को गुजरात का ऑब्जर्वर बनाया गया था। हिमाचल में तो कांग्रेस की सरकार बन गई लेकिन गुजरात में पिछली बार से भी काफी कम सीटें रह गई। ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा के बाद पार्टी सचिन पायलट की भूमिका करने पड़ेगी। ऐसे में गहलोत को एक बार निराशा हाथ लग सकती है। ऐसे में साफ है कि दोनों गुटों की खींचतान एक बार फिर जगजाहिर होगी।