सार
धर्म शास्त्रों के अनुसार माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार नर्मदा जयंती 1 फरवरी, शनिवार को है।
उज्जैन. नर्मदा का वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। इस नदी के तट पर रावण का युद्ध एक महाबली से हुआ था। इस युद्ध में रावण की हार हुई थी। ये प्रसंग इस प्रकार है। ऐसी ही एक कथा ये भी है-
रावण आया था नर्मदा के तट पर
- वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब राक्षसराज रावण ने सभी राजाओं को जीत लिया, तब वह महिष्मती नगर (वर्तमान में महेश्वर) के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की इच्छा से उनके नगर गया।
- उस समय सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे। रावण को जब पता चला कि सहस्त्रबाहु अर्जुन नगर में नहीं है तो वह युद्ध की इच्छा से वहीं रूक गया।
- नर्मदा की जलधारा देखकर रावण ने वहां भगवान शिव की पूजा करने का विचार किया। जिस स्थान पर रावण भगवान शिव की पूजा कर रहा था, वहां से थोड़ी दूर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा में मग्न था।
- सहस्त्रबाहु अर्जुन की एक हजार भुजाएं थीं। उसने खेल ही खेल में नर्मदा का प्रवाह रोक दिया, जिससे नर्मदा का पानी तटों के ऊपर चढ़ने लगा। जिस स्थान पर रावण पूजा कर रहा था, वह भी नर्मदा के जल में डूब गया।
- नर्मदा में आई इस अचानक बाढ़ के कारण को जानने रावण ने अपने सैनिकों को भेजा। सैनिकों ने रावण को पूरी बात बता दी। रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ।
- अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया। जब यह बात रावण के पितामाह (दादा) पुलस्त्य मुनि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास आए और रावण को छोड़ने के लिए निवेदन किया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को छोड़ दिया और उससे मित्रता कर ली।